- लगातार नक्सलियों को हो रही है जन धन की क्षति
- लड़ाकों की कमी से जूझ रहे हैं नक्सली संगठन
अर्जुन झा
जगदलपुर बस्तर की फिजा तेजी से बदल रही है। जो नक्सली कभी पुलिस और फोर्स पर भारी पड़ते थे, उन पर अब फोर्स भारी पड़ रही है। पुलिस और सुरक्षा बलों का जोश हाई है। जवानों ने आक्रामक रुख अपना लिया है और वे मांद में घुसकर नक्सलियों का सफाया करते चले जा रहे हैं। नक्सली संगठनों के बड़े लड़ाके और शार्प शूटर मारे जा रहे हैं। अब आलम यह है कि नक्सली संगठनों को लड़ाकों और शार्प शूटर्स की कमी के संकट से जूझना पड़ रहा है। यही वजह है कि अब वे मांद से निकलकर सुरक्षित ठिकानों की ओर पलायन कर वहां अपनी उपस्थिति का अहसास कराने में लगे हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि पूर्व की कांग्रेस सरकार का रुख नक्सलियों के प्रति थोड़ा लचीला और नर्म रहा है। जबकि राज्य में भाजपा की सरकार आने के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस, सशस्त्र बलों और केंद्र सरकार की सीआरपीएफ, बीएसएफ, कोबरा बटालियन समेत अन्य केंद्रीय सुरक्षा बलों के बंधे हाथ खुल गए हैं।केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने पुलिस सुरक्षा बलों को लगभग फ्री हैंड कर दिया है। इसके सकारात्मक परिणाम भी लगातार सामने आ रहे हैं। हाल ही में बस्तर संभाग के कांकेर जिले में मुठभेड़ के दौरान 29 नक्सलियों का का मारा जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। नक्सलियों के खिलाफ जंग में पुलिस और सुरक्षा बलों को लगातार कामयाबी मिल रही है। 2024 के चार माह के दौरान ही पुलिस और सुरक्षा बलों के हाथों 86 नक्सली हलाक हुए हैं। कांकेर के छोटे बेठिया और हापाटोला में नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मिली बड़ी कामयाबी का श्रेय निसंदेह कांकेर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आई. कल्याण एलिसेला को जाता है, जिनकी सार्थक रणनीति में मुठभेड़ को अंजाम अंजाम दिया गया। छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार एकसाथ 29 नक्सली मारे गए। नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच अब सीधी लड़ाई चल रही है। इससे नक्सलियों को भारी नुकसान हो रहा है और ग्रामीणों की मौत का ग्राफ नीचे गिरा है तथा जवानों की शहादत में भी कमी आई है। केंद्र और प्रदेश में डबल इंजन वाली सरकार ने बस्तर में चल रही नक्सलवाद से लड़ाई में बाजी पलट दी है। पिछले तीन माह में सुरक्षा बल की ओर से आक्रामक अभियान चलाए जाने के बाद से नक्सली अब पूरी तरह बैकफुट पर आ गए हैं। नक्सल मोर्चे पर सीधी लड़ाई में नक्सलियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। दो दशक बाद बस्तर में परिस्थितियां काफी बदली हुई दिखाई दे रही हैं। नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों की हत्या और जवानों के बलिदान की घटनाओं में भी कमी आई है। सुरक्षा बल सीधे नक्सलियों के गढ़ में घुसकर प्रहार कर रहे हैं।पुलिस विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य गठन के बाद 2001 से लेकर 2024 तक नक्सलवाद के खिलाफ जारी युद्ध में 1179 नक्सली मारे गए हैं और 1285 जवान वीरगति को प्राप्त हुए हैं। नक्सलियों ने बस्तर के शांत वातावरण को अशांत बनाने कोई कसर नहीं रखी थी और जनता के हित की बात करने वाले नक्सलियों ने अपना वर्चस्व व भय का माहौल बनाए रखने के इरादे से 1721 निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की है। इसकी तुलना में बस्तर में अब सुरक्षा बल हावी दिख रहे हैं और नक्सली बैकफुट पर जाते नजर आ रहे हैं। इससे बस्तर की फिजा में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। इस वर्ष अब तक सुरक्षा बलों ने सीधी लड़ाई में 86 नक्सलियों को मार गिराया गया है। इनमें से 80 के शव मिले हैं, जबकि छह और के मारे जाने की बात खुद नक्सलियों ने स्वीकार की है। इस अवधि में सुरक्षा बल के नौ जवान शहीद हुए, जबकि नक्सली हमले में 19 आम नागरिकों की जान गई है। स्पष्ट है कि बस्तरki जंग में बाजी अब सुरक्षा बलों के पाले में चली गई है।
कई शार्प शूटर नक्सली हुए ढेर
सन 2024 नक्सलियों के लिए मुसीबत का पैगाम लेकर आया है। इस साल जनवरी से लेकर अब तक नक्सली संगठनों के कई शार्प शूटर लड़ाके मारे गए हैं। जनवरी माह की 12 तारीख को बीजापुर में एक लाख की इनामी जन मिलिशिया कमांडर तोया पोटाम को मार गिरया गया। दंतेवाड़ा में पांच लाख के इनामी नक्सली डिप्टी कमांडर रतन कश्यप को ढेर कर दिया गया।बीजापुर में दो महिला और एक पुरुष नक्सली मार गिराए गए। फरवरी में दंतेवाड़ा में आठ लाख के ईनामी नक्सली हलाक कर दिया गया। कुख्यात नक्सली
चन्द्रन्ना, डिप्टी कमांडर नागेश पुनेम, शंकर राव समेत अन्य बड़े नक्सली नेताओं के मारे जाने से नक्सलियों की कमर टूट गई है।
नक्सली आदिवासी हितैषी नहीं
आंकड़े बताते हैं कि 2019 से लेकर 2023 तक सत्ता में रही कांग्रेस ने नक्सलवाद के विरुद्ध उदार नीति अपनाई, जिससे इस अवधि में नक्सलियों और सुरक्षा बल के मध्य संघर्ष कम हुआ। इस अवधि में हुई मुठभेड़ों में 206 नक्सली मारे गए, 203 आम नागरिकों की हत्या नक्सलियों द्वारा की गई।पृथक राज्य बनने के बाद अब तक 1,179 नक्सली मुठभेड़ में मारे गए हैं और 1,285 जवान इस लड़ाई में शहीद हो गए। वहीं नक्सलियों ने 1,721 आम नागरिकों की हत्या कर दी। मारे गए ज्यादातर नागरिक आदिवासी समुदाय के हैं। इससे नक्सलियों के उस दावे की कलई स्वतः खुल जाती है, जिसमें नक्सली कहते हैं कि वे आदिवासियों के हित में और उनके हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। 2013 से लेकर 2018 के मध्य सुरक्षा बलों ने 428 नक्सलियों को ढेर किया था। नक्सलियों ने 329 आम नागरिकों की हत्या की थी और सुरक्षा बलों के 305 जवान शहीद हुए थे।
मिल रही अच्छी कामयाबी
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. मानते हैं कि नक्सलियों के खिलाफ जारी युद्ध में पुलिस और सुरक्षा बलों को बड़ा लाभ मिल रहा है। सुरक्षा बल की क्षमता में विस्तार होने के साथ ही हमारे जवान युद्ध कौशल में पारंगत भी हुए हैं। नक्सलियों के आधार क्षेत्र में में हमारे जवान सुरक्षा कैंपों की स्थापना व राजनीतिक इच्छाशक्ति से नक्सलियों के विरुद्ध आक्रामक अभियान चला रहे हैं।