बस्तर में धड़ल्ले से खापाई जा रही है ओड़िशा की दुकानों की देसी -विदेशी शराब

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  • आबकारी अधिकारियों और ओड़िशा के शराब ठेकेदारों की मिलीभगत

अर्जुन झा

बकावंड छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में ओड़िशा की शराब धड़ल्ले से बिक रही है। छत्तीसगढ़ शासन के आबकारी विभाग के अधिकारियों और ओड़िशा की शराब लॉबी की सांठगांठ पर यह गोरखधंधा खूब फल फूल रहा है। बस्तर के सीमावर्ती इलाकों में छत्तीसगढ़ में सरकारी तौर पर बेची जाने वाली शराब की खपत न के बराबर हो रही है।

बस्तर संभाग के बकावंड विकासखंड के नलपावंड समेत कुछ अन्य गांव ओड़िशा की सीमा के बहुत ही करीब में स्थित हैं। इन्हीं गांवों के रास्ते ओड़िशा की शराब बस्तर में लाकर खपाई जा रही है। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ की अपेक्षा ओड़िशा में देसी और अंग्रेजी शराब काफी सस्ती है और वहां शराब की खपत बहुत कम होती है। लिहाजा वहां के शराब ठेकेदारों ने अपनी शराब को बस्तर के गांवों में खपवाना शुरू कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि इसके लिए ओड़िशा के शराब ठेकेदारों ने यहां के कुछ आबकारी अधिकारियों को सेट कर लिया है। ओड़िशा की शराब छत्तीसगढ़ में बिकवाने के बदले यहां के आबकारी अधिकारियों को मोटा कमीशन ओड़िशा के ठेकेदार देते हैं। वहीं बकावंड ब्लॉक के कई युवाओं को भी ओड़िशा के शराब ठेकेदारों ने अपना कोचिया नियुक्त कर रखा है। यही कोचिए ओड़िशा के सीमाई गांव – शहरों की शराब दुकानों से माल लाकर यहां गांव गांव में बेचने लगे हैं। चूंकि ओड़िशा की शराब कम क़ीमत पर मिल जाती है, इसलिए स्थानीय तलबगार वहीं की शराब का इस्तेमाल करने लगे हैं। बस्तर के आबकारी विभाग के अधिकारी और पुलिस वालों की मौन सहमति से यह काला कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। इस तिकड़ी की मिलीभगत से गांव गांव में ओड़िशा की दारू बेची जा।रही है।

*बॉक्स*

*खेतों में शराब की टूटी बोतलें*

विकासखंड बकावंड की ग्राम पंचायत नलपावंड में ओड़िशा की शराब की खपत बहुत ही ज्यादा हो रही है। नलपावंड ओड़िशा के बहुत ही करीब है। यहां ओड़िशा की दुकानों में बिकने वाली अंग्रेजी शराब आसानी से मिल जाती है। नलपावंड के खेतों में अंग्रेजी शराब की टूटी फूटी बोतलों की भरमार नजर आ रही है। बियर और विभिन्न ब्रांडो की अंग्रेजी शराब नलपावंड की बेतहाशा खपत हो रही है। टूटी बोतलों के टुकड़ों की बहुतायत इस बात की गवाही दे रहे हैं कि ओड़िशा से छत्तीसगढ़ में शराब की तस्करी कितने बड़े पैमाने पर हो रही है। खेतों में हल चलाते और काम करते समय किसान, मजदूर और उनके मवेशी कांच के टुकड़ों से लगातार जख्मी हो रहे हैं।