सुलग रहा बस्तर कहीं बलौदा बाजार की तरह दहक न उठे, अब जागना होगा सरकार को

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  • बस्तर संभाग के कई जिलों में लंबे समय से चल रहे हैं सामाजिक आंदोलन
  • कहीं माड़ बचाना, कहीं रोजगार तो कहीं धर्मान्तरण है आंदोलन का मुद्दा
  • सभी आंदोलनों के केंद्र में हैं बस्तर के आदिवासी ही

अर्जुन झा

जगदलपुर क्या हमारा बस्तर संभाग भी बलौदा बाजार की तरह दहकने वाला है? अगर ऐसा हुआ, तो चारों ओर आग की लपटें ही लपटें दिखाई देंगी। तब न फिर वह जंगल बचेगा, न वह जमीन बचेगी और न वह जल बचेगा, जिसे बचाने की लड़ाई लड़ी जा रही है। ऎसी आशंका इसलिए उठ रही है, क्योंकि संभाग की चारों दिशाओं में अलग अलग मांगों को लेकर लंबे समय से आंदोलन चल रहे हैं और इन सभी आंदोलनों के केंद्र में आदिवासी ही हैं।

बलौदा बाजार की घटना ने छत्तीसगढ़ महतारी के दामन पर जो दाग लगाया है, उसका निशान सालों साल तक नहीं मिटने वाला है। वहां की घटना से छत्तीसगढ़ का हर अमन पसंद नागरिक मर्माहत और व्यथित है। बाबा गुरु घासीदास के प्रति आस्था के प्रतीक पवित्र जैतखाम को क्षति पहुंचाना सर्वथा निंदनीय है। वहीं बलौदा बाजार की घटना को भी हरगिज जायज नहीं ठहराया जा सकता। भले ही क्यों न उसे समाज के लोगों ने अंजाम दिया हो, या फिर असामाजिक तत्वों ने। वैसे इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि हर जातीय समाज में कुछ न कुछ लोग विघ्न संतोषी और उपद्रवी किस्म के जरूर होते हैं। वहीं दूसरी ओर ऐसे आंदोलनों में अगर राजनीतिक लोगों की घुसपैठ हो जाती है तो फिर आंदोलन का परिदृश्य ही बदल जाता है। शायद बलौदा बाजार की घटना के पीछे यही कारक हो। अब आइए बस्तर के मुद्दे की ओर।

माड़ बचाओ आंदोलन

बस्तर संभाग के नारायणपुर जिला अंतर्गत अबूझमाड़ के ओरछा में सालभर से माड़ बचाओ आंदोलन चल रहा है। इसकी शुरुआत 2 फरवरी 2023 को हुई थी, जो आज भी अनवरत जारी है। माड़ बचाओ मंच संयुक्त मोर्चा के बैनर तले जारी यह आंदोलन मुठभेड़ों में आदिवासियों की हत्या, सुरक्षा बलों के कैंप स्थापना, पीड़िया मुठभेड़ के विरोध में किया जा रहा है।इस आंदोलन को जारी रहते सवा साल से अधिक का समय गुजर चुका है। इसमें करीब 1000 महिला, पुरुष युवा एवं बच्चे शामिल हैं। इन सबके सोने, खाने, पीने का सारा इंतजाम आंदोलन स्थल पर ही हो रहा है। धरना स्थल पर विशाल छांवदार शेड पेड़ों की डंगालों और पत्तों से तैयार किया गया है। ताकि गर्मी, बरसात, ठंड से बचाव हो सके। इसका मतलब यह है कि ये लोग लंबे आंदोलन की तैयारी के साथ वहां पर जमा हुए हैं।

हल्के में न लें नगरनार मसले को

इधर बस्तर जिले के नगरनार में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा स्थापित इस्पात संयंत्र में शर्तों के मुताबिक स्थानीय बेरोजगारों और ट्रांसपोर्टरों को नौकरी और परिवहन का काम नहीं दिया जा रहा है। जबकि संयंत्र स्थापना के लिए नगरनार समेत आसपास की 11 ग्राम पंचायतों के किसानों और ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित की गई है। इनमें ज्यादातर किसान और ग्रामीण आदिवासी समुदाय से आते हैं। नौकरी, रोजगार और परिवहन के कार्य देने की मांग को लेकर नगरनार में लंबे समय से आंदोलन चल रहा है। अभी पांच दिनों से जय झाड़ेश्वर परिवहन सहकारी समिति के बैनर तले क्रमिक भूख हड़ताल की जा रही है। दो दिन पहले आंदोलनकारियों ने प्लांट के गेट नंबर 2 को ब्लॉक करने की घोषणा कर दी थी। तब एनएमडीसी के शीर्ष प्रबंधन ने अपने हैदराबाद स्थित मुख्यालय में आपात बैठक कर आंदोलनकारियों की सारी मांगें मानने की बात कहते हुए इसकी जानकारी कलेक्टर बस्तर को दी और उनसे आंदोलन समाप्त कराने का आग्रह किया। कलेक्टर ने एनएमडीसी प्रबंधन की बातों पर यकीन करते हुए परिवहन समिति से चर्चा की और गेट ब्लॉक करने के फैसले को वापस करवाया था। मगर प्रबंधन अपने वादे से पलट गया है। एनएमडीसी प्रबंधन का यह रवैया केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है।

धर्मांतरण बड़ा पेचीदा मसला

दूसरी ओर बस्तर संभाग में धर्मांतरण बड़ा मुद्दा रहा है। धर्मांतरण से आदिवासियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के अस्तित्व पर बड़ा संकट पैदा हो गया है। क्योंकि धर्मांतरित आदिवासियों को अपनी अनुवांशिक पहचान को पीछे छोड़कर ही दूसरे धर्म में जाना पड़ता है। धर्मांतरण ने आदिवासियों बीच बड़ी खाई बना दी है। यही वजह है कि आदिवासियों के एक समूह ने असंवैधानिक धर्मांतरित जनजातियों की पहचान की मांग को लेकर आज 14 जून को भरी दोपहरी बस्तर संभाग के कोंडागांव जिला मुख्यालय में संवैधानिक अधिकार सभा एवं ज्ञापन रैली का आयोजन किया। यहां भी बड़ी संख्या में आदिवासियों की उपस्थिति रही। इस सभा व रैली का आयोजन जनजाति सुरक्षा मंच कोंडागांव ने किया था। इस संगठन ने नारा दिया है कि जो भोलेनाथ का नहीं, वो हमारी जात का नहीं। यहां यह बताना भी लाजिमी है कि धर्मांतरण ने बस्तर में आदिवासियों के बीच वर्ग संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी है। खासकर धर्मांतरित आदिवासियों के मृत परिजनों के अंतिम संस्कार के दौरान अक्सर यहां विवाद की स्थिति निर्मित होती रहती है।बस्तर लोकसभा क्षेत्र के सांसद महेश कश्यप और कांकेर लोकसभा क्षेत्र के सांसद भोजराज नाग जनजाति सुरक्षा मंच संस्था के संयोजक और सह संयोजक हैं। मामला बहुत संवेदनशील है राज्य सरकार को फौरन संज्ञान में लेना होगा, वैसे भी सरकार के लिए गंभीर चेतावनी बनकर बलौदा बाजार की घटना उभरी है। किसी भी मामले में जांच के मुद्दे को विचाराधीन रखना अक्सर बड़ा ही घातक परिणाम दे जाता है। मामला चाहे राज्य सरकार से जुड़ा हो या केंद्र सरकार से, इस पर

त्वरित निर्णय और कार्यवाही अब जरूरी हो गया है। लोगों में असहनशीलता बढ़ती जा रही है। बस्तर के विभिन्न जिलों में आदिवासी संगठन, सर्व आदिवासी समाज अपनी अपनी बातों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार को चाहिए कि समाज के प्रतिनिधियों के साथ गंभीरता पूर्वक चर्चा करे और जितनी जल्दी हो सके समस्या का निराकरण करे। अगर मामला लंबे समय तक विचारथीन रहा तो बस्तर संभाग में चिंगारी अब तक दबी हुई है वह कहीं शोला न बन जाए।