सबसे हटके है जगदलपुर में प्रचलित बस्तर गोंचा रथयात्रा पर्व, तुपकी से दिया जाता है भगवान को गार्ड ऑफ ऑनर

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  • आज भी जारी है रियासत काल की अनूठी परंपरा
  •  जगदलपुर में धूमधाम से निकाली गई रथयात्रा 

-अर्जुन झा-

जगदलपुर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा वैसे तो पूरे भारत में जगह जगह निकाली जाती है, मगर बस्तर में निकलने वाली रथयात्रा थोड़ी अलग है। यहां भगवान जगन्नाथ को तुपकी (छोटी तोप) चलाकर गार्ड ऑफ ऑनर देने की अनूठी परंपरा है। रियासतकालीन इस परंपरा का निर्वहन इस साल भी किया गया। जगदलपुर में रियासत काल से निकलती आ रही भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को बस्तर गोंचा महापर्व के नाम से जाना जाता है।

इस साल भी बस्तर गोंचा महापर्व सदियों पुरानी मान्यताओं एवं रियासतकालीन परंपराओं का निवर्हन करते हुए श्री बस्तर गोंचा रथयात्रा उत्सव धूमधाम से मनाया गया। तूपकी चलाकर भगवान जगन्नाथ को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों द्वारा विधि विधान से पूजा अर्चना कर भगवान के विग्रहों को रथारूढ़ किया गया। इसके उपरांत राजसी वेशभूषा धारण किए हुए बस्तर राजा कमलचंद भंजदेव द्वारा भगवान श्री जगन्नाथ रथयात्रा का छेरा पहारा पूजा विधान पूरा किया गया। श्री बस्तर गोंचा रथयात्रा का मुख्य आयोजन गोल बाजार सिरहासार चौक स्थित जगगन्नाथ मंदिर में हुआ। मंदिर में हजारों की संख्या मे श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पहुंचे थे। रथ परिक्रमा के पश्चात भगवान श्री मंदिर से गुंडि़चा मंदिर सिरहासार भवन में सभी श्रृद्धालुओं के दर्शनार्थ विराजित हो गए। इस दौरान लगातार नौ दिनों तक विभिन्न आयोजन किए जाते रहे। भगवान जगन्नाथ के 22 विग्रहों का एकसाथ एक ही मंदिर में स्थापित होना, पूजित होना तथा इन विग्रहों की एकसाथ तीन रथों में रथारूढ़ कर रथयात्रा की शताब्दियों पुरानी परंपरा बस्तर गोंचा महापर्व को विश्व में सबसे अलग पहचान दिलाती है। इस दौरान भगवान श्री जगन्नाथ के सम्मान में तुपकी चलाकर सलामी देने की जो परंपरा है, वह विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलती है। ओड़िशा के पुरी धाम और मध्यप्रदेश के पन्ना समेत कुछ अन्य स्थानों पर पुलिस जरूर भगवान जगन्नाथ को गार्ड ऑफ ऑनर देती है। मगर तुपकी चलाकर सलामी देने की परंपरा सिर्फ और सिर्फ जगदलपुर में ही देखने को मिलती है।