- रहम की भीख मांगता रहा बेटा, नहीं पसीजे नक्सली
- क्या यही है नक्सलियों का आदिवासियों के प्रति प्रेम?
–अर्जुन झा-
जगदलपुर तालिबानियों और बस्तर संभाग में सक्रिय नक्सलियों के कारनामे एक जैसे ही हैं। जिस तरह तालिबानी बीच चौराहे पर लोगों को गोलियों से भून देते हैं, सर तन से जुदा कर देते हैं, वैसा ही कृत्य नक्सली भी कर रहे हैं। बीती रात बस्तर संभाग के बीजापुर जिले में नक्सलियों ने ऎसी ही करतूत कर दिखाई। एक बेटा रहम की भीख मांगता रहा, गिड़गिड़ाता रहा, मगर नक्सली नहीं पसीजे। उन्होंने बेटे के सामने ही एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी।
दिल को झकझोर देने वाले इस कृत्य को नक्सलियों ने बीजापुर जिले के बासागुड़ा थाना क्षेत्र के ग्राम तिम्मापुर में अंजाम दिया है। तिम्मापुर में स्थित सीआरपीएफ कैंप से महज 1 किमी की दूरी पर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लक्ष्मी पद्दम की बीती रात हत्या कर दी गई। इस घटना में नक्सलियों का हाथ होने की जानकारी मिली है। इस वारदात से क्षेत्र में दहशत का माहौल बन गया है। सूत्रों ने बताया कि घर से बाहर निकालकर बेटे के सामने रात करीब 8 बजे अज्ञात हमलावरों ने धारदार हथियारों से हमला कर हत्या की वारदात को अंजाम दिया। बीच बचाव करने पहुंचे बेटे के साथ हमलावरों ने हाथापाई की। बेटा अपनी मां के लिए नक्सलियों से रहम की भीख मांगता रहा, रो रोकर उनके पैर पकड़ गिड़गिड़ाता रहा, मगर नक्सलियों को जरा भी तरस नहीं आई। उन्होंने बेटे के सामने ही मां के शरीर को धारदार हथियारों से छलनी कर दिया। सूत्रों ने यह भी बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लक्ष्मी पद्दम को नक्सलियों द्वारा पहले भी दो बार धमकी दी चुकी थी। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से नक्सलियों द्वारा हत्या किए जाने आशंका जताई जा रही है। सूत्रों ने बताया आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का शव रात में घंटों घर के बाहर बरामदे में पडा़ रहा। यह बासागुड़ा थानाक्षेत्र के तिम्मापुर गांव की घटना है, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। खबर हमें विश्वस्त सूत्रों के हवाले से मिली है। परिजनों के अभी तक थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की हत्या क्यों की गई इसका कारण अज्ञात है। इस वारदात ने साबित कर दिया है कि नक्सलियों की हरकत तालिबानियों जैसी ही है। तालिबानी भी इसी अंदाज में लोगों की हत्या करते हैं। जन अदालत लगाकर खुद ही जज और वकील बनकर किसी पर भी पुलिस का मुखबिर होने का तोहमत लगाकर भरी सभा में उसे मौत के घाट उतार देते हैं। वे सामने वाले को अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं देते। नक्सली खुद को तो आदिवासियों का हितैषी बताते हैं और दूसरी ओर निरीह आदिवासियों के खून से अपने हाथ लाल भी करते जा रहे हैं।