युग बदला, गाथाएं बदलीं, पर बस्तर की पीर वही है…जोगी राज से जारी नौकरशाही आतंकवाद से कब मिलेगी मुक्ति

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जगदलपुर। दशकों के पिछड़ेपन और सरकारी उपेक्षा के साथ ही नौकरशाही के आतंक के साए में अभिशप्त जीवन जीने वाले भोले भाले आदिवासियों के हक में चाहे सरकारें और राजनीतिक दल कितनी भी जुबानी उदारता दिखाते रहे हों लेकिन तस्वीर आज भी नहीं बदली है। शोषण से मुक्ति दिलाने के नाम पर नक्सलवाद सिर्फ इसीलिए पनपा क्योंकि सरकार की नौकरशाही जनता को यह भरोसा नहीं दिला सकी की वह उसके साथ है।

यही वजह है कि लाल आतंक ने लगातार अपना दायरा बढ़ाया। सरकारी स्तर पर विकास के दावे के साथ ही नक्सली उन्मूलन को लेकर ढेर सारे वादे और दावे देखे जा चुके हैं लेकिन जिन कारणों से बस्तर विकास की राह पर आगे नहीं बढ़ सका और जिस वजह से नक्सलवाद को उसके पनपने के लिए उपजाऊ खाद मिलता रहा है उन विसंगतियों को तब तक दूर नहीं किया जा सकता जब तक कि नौकरशाही के कान खींच कर उसे जनता के काम पर न लगा दिया जाए। विडंबना यह है कि छत्तीसगढ़ निर्माण के साथ राज्य की पहली अजीत जोगी सरकार के समय जिस तरह से प्रशासनिक आतंकवाद की संस्कृति का जन्म हुआ वह 15 साल के रमन राज के बाद अब कांग्रेस राज में भी बदस्तूर जारी है। कांग्रेस ने 15 साल का वनवास भोगने के बाद नारा दिया था वक्त है बदलाव का। जनता ने इस नारे का समर्थन किया और बस्तर में पूरा का पूरा बदलाव कर डाला। लेकिन बस्तर के प्रशासनिक आतंकवाद की स्थिति में बदलाव करना जनता के हाथ में नहीं बल्कि उस सरकार के हाथ में है, जिसे बस्तर ने संपूर्ण समर्थन दिया है।

रमन सरकार के कार्यकाल में प्रशासनिक आतंकवाद का रोना रोने वाले कांग्रेसियों को भूपेश बघेल सरकार के प्रशासनिक आतंकवाद के नजारे नज़र नहीं आ रहे। जिसके कारण जनता की नजर में कांग्रेसियों की कद्र पर असर पड़ रहा है। जनता कांग्रेस राज के प्रशासनिक आतंकवाद से त्रस्त है। जिन नौकरशाहों पर कानून पालन की जिम्मेदारी है, वे ही प्रशासनिक आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। हालात सत्ता पक्ष के लोगों से छिपे नहीं हैं, लेकिन वे भी यह लीला देखकर वह मौन हैं। विपक्षी भाजपा इस स्थिति में नहीं है कि इस आतंक के खिलाफ आवाज उठा सके। चर्चा आम है कि बस्तर जिले के जगदलपुर अनुविभागीय अधिकारी जी.आर.मरकाम की कारगुज़ारियों से आम जनता के साथ पत्रकार और वकील भी भय खा रहे हैं और इनके मातहत दबी जुबान से इनके किस्से सुनाते हुए जिला कलेक्ट्रोरेट में कहीं भी मिल जाएंगे। एसडीएम तबसे सुर्खियों में हैं जब उन्होंने कोविड-19 के दौरान एक वकील के साथ मारपीट की घटना को अंजाम दिया और उसके बावजूद उन पर तत्कालीन कलेक्टर द्वारा कार्यवाही नहीं करने से उनके हौसले बुलंद हो गये।

इन सबके बीच जब कोई व्यक्ति एसडीएम से टेलीफोन या व्यक्तिगत तौर पर अपनी समस्याओं को सामने रखता है तो उसका निपटारा करने की बजाय वह धमकाते हुए देखे जा सकते हैं।इसी प्रकार कई अन्य मामलों की जानकारी भी कलेक्टर रजत बंसल को लगी है किंतु इन पर कार्रवाई न होने से एसडीएम के हौसले बुलंद हैं। एसडीएम की कारगुज़ारियों की जानकारी सत्तारूढ़ कांग्रेस कमेटी के जिम्मेदारों को भी है किंतु वह सब खामोशी की चादर ओढ़े हुए है तो भाजपाई हार के मातम से अभी तक उबर नहीं पा रहे हैं या फिर जनसरोकार से मुंह मोड़ लिया है। प्रशासनिक आतंकवाद का बोलबाला फिर हिलोरें मार रहा है। यदि अभी सरकार या उच्च प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो फिर से यह चिंगारी कहीं दावानल न बन जाए। पिछली सरकार के समय प्रशासनिक आतंकवाद को लेकर छत्तीसगढ़ विधानसभा ठप्प कराई गई थी लेकिन अब कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के समय भी यही आतंक फैला हुआ है, तब भाजपा हाथ पर हाथ रख कर बैठी है।