कोई देखे या न देखे, बस्तर देख रहा है…विधायक भी प्रशासनिक आतंकवाद के शिकार, एसडीएम के बाद कलेक्टर का कारनामा

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अर्जुन झा – जगदलपुर

माओवादी आतंक के शिकंजे में छंटपटा रहे बस्तर को विकास का गलियारा बनते देखने का सपना धूल धूसरित होता दिख रहा है, क्योंकि अब इस धरती के लोग आहिस्ता आहिस्ता अफसरी आतंक के साए में जीने की आदत डालने मजबूर किए जा रहे हैं। बस्तर ज्यादती कभी बर्दाश्त नहीं करता। स्वभाव के अनुरूप अफसरी आतंक का विरोध शुरू हो गया है। लेकिन अफसरशाही का बिगड़ैल घोड़ा सरकार के लिए कोई मुसीबत बन जाए, इसके पहले समय रहते लगाम कसनी ही होगी। अब तो आलम यह है कि बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानल्ला वाले अंदाज में नौकरशाही के छोटे बड़े तोपचंदों में स्पर्धा सी चल रही है कि कौन प्रशासनिक आतंकवाद का कितना बड़ा सूरमा बन कर दिखा सकता है।

जगदलपुर जिला मुख्यालय के एसडीएम जीआर मरकाम के प्रशासनिक आतंकवाद के किस्से कहानियों के बीच नारायणपुर कलेक्टर के कथित प्रशासनिक आतंकवाद को लेकर विधायक चंदन कश्यप ने मोर्चा खोल दिया है। सत्ताधारी दल के विधायक ने कलेक्टर की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि वह जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लिए बिना अपनी मनमर्जी चलाए जा रहे हैं। विधायक नारायणपूर कश्यप ने इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से शिकायत करने का फैसला लिया है। आदिवासी बाहुल्य बस्तर अंचल में सात जिले, बारह विधानसभा और दो लोकसभा क्षेत्र हैं। बस्तर की पूरी बारह सीटों पर कांग्रेस काबिज है तो बस्तर लोकसभा सीट भी बहुत मुद्दत के बाद कांग्रेस के खाते में आई है।

विधायक चंदन कश्यप

नगरीय निकाय और पंचायती राज में भी कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। इस लिहाज से जनता कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों की तरफ आशा भरी नजरों से देखती है। लेकिन जब जनता के यही नुमाइंदे प्रशासनिक आतंकवाद के शिकार होने लग जाएं तो फिर आम जनता के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचता है – बदलाव। अब या तो सरकार प्रशासनिक आतंकवाद फैला रहे नौकरशाहों को बदल दे या फिर जनता अपने तरीके से बदलाव का रास्ता चुन ले। बदलाव तो हर सूरत में होना ही चाहिए। बस्तर में प्रशासनिक अधिकारियों का तथाकथित आतंक जिस तरह सिर चढ़कर बोल रहा है, वह राजनीतिक नुकसान की आशंका की दूर से आ रही पदचाप के तौर पर महसूस कर लिया जाय तो यह कांग्रेस के हित में होगा। बस्तर के जनप्रतिनिधि प्रशासनिक अफसरों की कार्य संस्कृति, व्यवहार को अनुचित अनुभव कर रहे हैं, नारायणपुर कलेक्टर और नारायणपुर विधायक के बीच का मामला इसकी ताजा नजीर है।

गौरतलब है कि हाल ही जगदलपुर एसडीएम द्वारा बस स्टैंड में लोकतंत्र के प्रहरी पत्रकारों के साथ नोंक-झोंक करने का मामला ठंडा नहीं हुआ और नारायणपूर विधायक चंदन कश्यप और नारायणपुर कलेक्टर के बीच का नया मामला सामने आ गया। जन सरोकारों को लेकर जनप्रतिनिधियों और पत्रकारों का प्रशासनिक अफसरों से टकराव नहीं तालमेल अपेक्षित होता है, लेकिन बस्तर में नौकरशाही खुद को जागीरदार समझ बैठी है। इसलिए आए दिन कथित विवाद सामने आते रहते हैं और आखिरकार इस टकराव का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। भाजपा राज में कांग्रेस बस्तर विकास के दावों की पोल खोलने विकास की चिड़िया खोजने निकलती थी, बस्तर में चलते रहे अफसरशाही राज से तंग आकर जनता ने बस्तर को भाजपा मुक्त कर दिया, यह तथ्य और सत्य जेहन में रखकर बस्तर की जनता को यह अहसास दिलाना होगा कि वक्त बदल गया है। यदि सरकार के छोटे बड़े अफसरों का यही रवैया कायम रहा तो भरोसा डगमगा सकता है।