नगरनार के बहाने भूमकाल के तराने…जुबां पे आज दिल की बात आ गई!

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अर्जुन झा – जगदलपुर।

भूमकाल यानी भूमि का कम्पन मतलब परिवर्तन बस्तर बस्तर्वासियों का है। भुमकाल का मकसद शोषण, बाहरी दखल, ठेकेदारी से बचाना।1910 में गुंडा धूर को रानी कुंवर ने आंदोलन का नेतृत्व सौंपा था |

अपनी जमीन बचाने अंग्रेजों से भिड़ गए थे बस्तर के आदिवासी…

छत्तीसगढ़ सरकार एनएमडीसी के नगरनार स्टील प्लांट को खरीदने तैयार है। विधानसभा में इस बाबत शासकीय संकल्प सर्वसम्मति से पारित हो चुका है। लेकिन इस पर चर्चा के दौरान जो प्रसंग सामने आए हैं, उससे एक बार फिर साबित हो गया है कि अपनी जमीन के लिए अंग्रेजों से भिड़ जाने वाले बस्तर के लोग अपना इतिहास नहीं भूले हैं। वे अपनी सामर्थ्य को अच्छी तरह जानते और पहचानते हैं। यही कारण है कि नगरनार स्टील प्लांट के डिमर्जर की सूरत में भूमकाल की पुनरावृत्ति की बात की जा रही है। बस्तर अंचल के चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम ने नगरनार डी- मर्जर मामले में बड़ा बयान देते हुए विधानसभा में कहा है कि नरेंद्र मोदी आदिवासियों को हल्के में न लें।

यदि नगरनार स्टील प्लांट डी-मर्जर मामले में केंद्र सरकार अपने निर्णय वापस नहीं लेती तो आदिवासी फिर दूसरा भूमकाल करने से नहीं चूकेंगे। इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि केंद्र सरकार की कमेटी ने नगरनार इस्पात संयंत्र के विनिवेश को मंज़ूरी दी थी। 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा था कि यदि विनिवेश किया गया तो नक्सलवाद को काबू करना मुश्किल हो जाएगा। सीएम बघेल ने प्रतिपक्ष भाजपा पर निशाना साधते हुए यह भी बता दिया कि टाटा प्लांट से जमीन लेकर हमने किसानों को लौटाई है। आज वहाँ के आदिवासी किसान सारे लाभ उठा रहे हैं।

बीते दो सालों से हम बस्तर के आदिवासियों का विश्वास जीतने का काम कर रहे हैं, चाहे जमीन लौटाने की बात हो, चाहे तेंदूपत्ता बोनस देने की बात हो, चाहे नौकरी देने की बात हो. यही वजह है कि बस्तर में नक्सली पॉकेट में सिमट गए हैं. ये लोग बोल नहीं पा रहे हैं कि ये बस्तर के आदिवासियों के साथ हैं या केंद्र सरकार के साथ। नगरनार इस्पात संयंत्र छत्तीसगढ़ सरकार ख़रीदेगी। मंत्री रविंद्र चौबे ने भी भाजपा पर हमला बोला कि सरकार ने उदारता के साथ ज़मीन का अधिग्रहण किया था। बस्तर के लोगों ने भी उम्मीद के साथ लाल आतंक वाले इलाक़े में इसकी सहमति दी थी। लोगों ने पब्लिक सेक्टर के संयंत्र के लिए इसकी मंज़ूरी दी थी। उद्योग के लिए 610 हेक्टेयर ज़मीन का अधिग्रहण किया गया था, इसमें से केवल क़रीब सौ हेक्टेयर ज़मीन का ही हस्तांतरण एनएमडीसी को किया गया है शेष ज़मीन अब भी राज्य सरकार के अधीन है। पब्लिक सेक्टर के लिए नगरनार संयंत्र को तमाम तरह की मंज़ूरी दी गई थी न कि निजी सेक्टर के उद्योग के लिए ये अनुमति दी गई। उन्होंने यह भी बता दिया कि ये इलाक़ा पेसा क़ानून प्रभावित इलाक़ा है।

स्थानीय आदिवासी यदि इस निजीकरण का विरोध करेंगे तो हमारे लिए भी मुमकिन नहीं हो पाएगा। कांग्रेस विधायक राजमन बेंजामिन ने कहा कि नगरनार इस्पात संयंत्र के लिए आदिवासियों ने अपनी ज़मीन दी है, यदि वहाँ विनिवेश हुआ तो बस्तर में एक और भूमकाल आंदोलन होगा. बस्तर का आदिवासी अपने हक़ की लड़ाई लड़ेगा। राजमन ने बस्तर के तमाम लोगों और उनके नुमाइंदों की आवाज बुलंद की तो बस्तर के सभी विधायकों ने नगरनार स्टील प्लांट को खरीदने के फैसले पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रति आभार व्यक्त किया है। उद्योग मंत्री कवासी लखमा के नेतृत्व में बस्तर अंचल एवं अन्य इलाकों के विधायकों एवं जनप्रतिनिधियों के प्रतिनिधि मंडल ने सीएम से सौजन्य मुलाकात कर बस्तर के नगरनार स्थित इस्पात संयंत्र को आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा खरीदने के निर्णय के लिए मुख्यमंत्री का आभार जताया। सीएम ने प्रतिनिधि मंडल को आश्वस्त किया है कि छत्तीसगढ़ सरकार बस्तर अंचल में रोजगार सृजन के अवसर को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। बस्तर में उद्योगों की स्थापना से स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ने और रोजी-रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों में जाने से रोकने में मदद मिलेगी।

इस अवसर पर संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी, जगदलपुर विधायक रेखचन्द जैन, चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम, केशकाल विधायक संतकुमार नेताम, दंतेवाड़ा विधायक श्रीमती देवती कर्मा, अंतागढ़ विधायक अनूप नाग, नगरी सिहावा विधायक डॉ. लक्ष्मी ध्रुव, मनेन्द्रगढ़ विधायक डॉ. विनय जायसवाल, भरतपुर-सोनहत विधायक गुलाब कमरो, क्रेडा अध्यक्ष मिथिलेश स्वर्णकार सहित सत्तार अली एवं अवधेश गौतम उपस्थित थे। यानी पूरे बस्तर ने नगरनार मामले में अपनी भावना स्पष्ट कर दी है। जहां तक दूसरे भूमकाल आंदोलन की बात है तो बस्तर के लोग इससे सहमत ही होंगे, यह चर्चा के दौरान मंत्री चौबे के इशारे से भी ध्वनित हो गया। भूम काल का अर्थ भूमि के कम्पन अर्थात परिवर्तन से है। व्यवस्था के खिलाफ ऐसे आंदोलन से है, जो बस्तर को शोषण से बचाने के लिए हो। बस्तर बस्तर वासियों का है। अपनी जमीन बचाने के लिए आदिवासी अब से एक सौ दस साल पहले अंग्रेजी हुकूमत से भिड़ गए थे। गुंडा धूर के नेतृत्व में हुआ आंदोलन याद दिलाया जा रहा है। यहां खास बात यह है कि नक्सली समस्या से जूझ रहा बस्तर अब विकास के लिए प्रतिबद्ध है। यह विकास निजीकरण से नहीं हो सकता। बल्कि इससे लाल आतंक को रोक पाना मुश्किल होगा। यह बात भाजपा सरकार के तात्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी पार्टी की केंद्र सरकार को बता चुके हैं। कायदे से केंद्र सरकार को इससे सहमत हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो अब छत्तीसगढ़ ने जो प्रस्ताव दिया है, उस पर फैसला लिया जाए।