कुंभ मेला लगने का प्रयोजन – संत राम बालक दास जी

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प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा किया गया, जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का प्रतिदिन समाधान प्राप्त कर रहे हैं
आज के सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने कुंभ मेले पर जिज्ञासा रखते हुए बाबा जी से प्रश्न किया कि इसके लगने का प्रयोजन क्या है, मेले की विशेषता को प्रकट करते हुए बाबा जी ने बताया कि कुंभ मेला हरिद्वार नासिक उज्जैन एवं प्रयागराज में संतों का आगमन
होना इसमें मेले का आयोजन होना विशेष महत्व का है क्योंकि इसके पीछे वेद पुराणों में कई

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कथाएं और घटनाओं का वर्णन हमें मिलता है समुद्र मंथन का होना,मंथन में अमृत घट का प्रकट होना,अमृत घट के लिए देव दानव का युद्ध होना जैसे देवासुर संग्राम भी कहा जाता है यह देवासुर संग्राम में जब अमृत के लिए युद्ध हुआ तो इसे लेकर दानव भागे जहां जहां पर देव दानव इकट्ठे होते इसके लिए संघर्ष होता तो वहां वहां पर कहते हैं कि अमृत की कुछ बूंदें भी गिर पड़ी इनमें मुख्य है हरिद्वार प्रयागराज नासिक और उज्जैन इन स्थानों पर अमृत कलश से छलका है और चारों जगह पर अमृत की बूंदें टपकी है इस तरह चार स्थानों पर कुंभ की संरचना हुई अमृत तो देव दानव में बांटा गया राहु केतु को मिला और इनका सर भी कटा तत्पश्चात देवों को इसका पान प्राप्त हुआ और ऋषि यों ने इसके पश्चात बैठक कर निर्णय लिया कर क्यों ना

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भारत को चार भागों में जोड़कर धार्मिक समरसता के लिए सामाजिक सद्भावना के लिए सभ्यता के प्रचलन व संस्कृति के विस्तार के लिए सनातन धर्म की रक्षा के लिए सर्व धर्म का पालन करने हेतु सर्व कल्याण हेतु एक ऐसा मेला लगे जिसमें संपूर्ण विश्व एक होकर भारत की संस्कृति का दर्शन करें यह केवल और केवल भारत की संत शक्ति ही कर सकती थी और जो कि सफल भी है कुंभ का निर्णय हुआ संतो का निर्णय समाजवाद विश्व कल्याण की भावना के लिए होता है संतों की वाणी जगत कल्याणी विश्व कल्याणी होती है अतः उत्तराखंड के हरिद्वार में मध्य खंड प्रयाग में मध्य खंड उज्जैन में और मध्य दक्षिण खंड नासिक में इस तरह से 4 भाग में भारत को चार खंडों में बांटा गया कुंभ का निश्चय किया गया और जहां जहां संत वहां वहां पर कुंभ जैसे तीर्थहुए जहां जहां संतों की वाणी हुई वहां वहां पर अमृत का पान हुआ इस तरह

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से चार कुंभ हुए अब कुंभ की व्यवस्था हुई संतों ने सेवा कैंप लगाए और सब वहां आने लगे स्नान भोजन हेतु वहां पर इकट्ठे होने लगे और उस समय के राजा महाराजाओं को भी यह अनुभव हुआ क्यों ना हम भी वहां अपने गुरुदेव को लेकर गंगा स्नान करें इस तरह लाखों लोगों का ऐसा समागम प्राप्त हुआ जहां सर्व समाज इकट्ठा होने लगा संतों का दर्शन प्राप्त होने लगा एक साथ भोजन भजन किया जाने लगा वह भी एक एक दो दो महीने तक पर्व को भी तय किया गया कौन-कौन सी पुण्य तिथियों पर गंगा जी गोदावरी जी और यमुना जी में स्नान हो यह तय किया गया राजा महाराजा इस कुंभ में अपने अपने गुरुओं के लिए ठाट से झांकी सजाकर आया करते कोई अपने गुरु को हाथी पर तो कोई रथ में बैठा कर तो कोई बाजे गाजे के साथ तो कोई चतुरंगी सेना के साथ शाही स्नान के लिए लाता था और वही परंपरा आज भी है शाही स्नान की लेकिन आज राजा परंपरा नहीं साधु संत बाबा जी अपने ही रथो को सजाते हैं और अपने अपने भक्तों के साथ यहां पर स्नान हेतु आते हैं |

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हमारे छत्तीसगढ़ से भी शाही स्नान जब जाता है तो पंथी नाचा राउत नाच पंडवानी रामधुनी एक साथ नाचते हुए आनंद लेते हुए आगे बढ़ते हैं और हमारे छत्तीसगढ़ का मंडप पूरे कुंभ में दर्शनीय होता है प्रति कुंभ छत्तीसगढ़ से भी श्री पाटेश्वर धाम तीर्थ द्वारा मंडप का आयोजन किया जाता है जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी लोगों के लिए निशुल्क भोजन भजन एवं रुकने की व्यवस्था की जाती है जिसका निर्णय इस वर्ष के लिए भी किया जा रहा है |

इसी सत्संग परिचर्चा पर विचार रखते हुए रिचा बहन ने जिज्ञासा रखी कि क्या केवल गंगा जी स्नान करने पर हमारे पाप धुल जाते हैं इस विषय को स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि गंगा मैया जितनी पवित्र है पूरे ब्रह्मांड में दूसरा कुछ नहीं है कलयुग में गंगा जल ही है जिसके कारण पाप हमें छू नहीं पा रहे हैं |

गंगा मैया जीसके कारण आज भारतवर्ष के लोग भी नास्तिक होने से बचे हुए है,पाप करने के बाद व्यक्ति सोचता है कि मेरा जीवन ही व्यर्थ हो गया और वह या तो आत्महत्या कर लेता है या पाप ही करते जाता है परंतु गंगा स्नान कर वह नए विचार सोचने लगता है वह सोचता है कि अब मेरे पुराने पाप धुल गए हैं अब कुछ अच्छा कर सकते हैं जैसे गौमाता हमें अन्न धन से पवित्र करती है वैसे ही गंगा मैया हमें सात्विकता प्रदान करती है शुद्धि से तन मन विचारों को पवित्र करती है गंगा मैया पाप जरूर धोती है परंतु पापियों के पाप नहीं धोती, जाने अनजाने में यदि कोई गलती कर देता है तो गंगा मैया उन्हें अपनी गोद में बैठाकर निर्मल धारा में झाड़-पोछ कर पवित्र कर देती है लेकिन पापियों के पाप जो कि जान सोचकर करते हैं मां गंगा भी ऐसे पापियों को कभी क्षमा नहीं करती जो व्यक्ति मन से पूर्णता पवित्र होकर मां के पास संकल्प लेता है कि वह कभी भी इस तरह के कृत्य नहीं करेगा मैं उसे अवश्य ही निर्मल कर देती है |
इस प्रकार आज का ज्ञान पूर्ण एवं आनंद में सत्संग पूर्ण हुआ
जय गो माता जय गोपाल जय सियाराम