भगवान श्री गणेश जी के द्वारा लिखित एवं भगवान वेदव्यास जी के द्वारा वर्णित श्रीमद् भागवत गीता के अद्भुत ज्ञान से परिपूर्ण ऑनलाइन सत्संग का आयोजन प्रतिदिन सीता रसोई संचालन ग्रुप में श्री राम बालक दास जी के द्वारा किया जा रहा है |
बाबा जी ने सभी को आमंत्रण देते हुए बताया कि बहुत ही दुर्लभ घड़ी के हम भविष्य में साक्षी बनने जा रहे हैं हमारे छत्तीसगढ़ में विश्व की सबसे बड़ी गौशाला राजस्थान पथमेड़ा, के संरक्षक संचालक प्रमुख ” संत श्री परम पूज्य गौ ऋषि श्री स्वामी दत्त शरणानंद जी” का आगमन मंगलम भवन हनुमान मंदिर के सामने गुढ़ियारी रायपुर में हो रहा है जिन का प्रवचन संध्या 6:00 से रात्रि 9:00 तक सुनने का सौभाग्य हमें प्राप्त होने वाला है, दोपहर 2:00 बजे राजनांदगांव राम मंदिर चौक से उनकी अगुवाई संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा की जाएगी आप सभी परिवार व मित्रों के साथ वहां अपनी अपनी कार से पहुंच कर इस यात्रा में शामिल हो सकते हैं |
आज की सत्संग परिचर्चा में श्रीमद भगवत गीता की, लेखन प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि भगवान वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की तो प्रथम उन्होंने,उसे अपने स्मरण में स्थापित किया तब उन्हें ज्ञात हुआ कि इतने अद्भुत महाभारत को कोई अद्भुत लेखक ही लिख सकता है जो ज्ञानी हो जिसको इसके विषयों पर तर्क कुतर्क की आवश्यकता ना हो वह भ्रमित ना हो तो वेदव्यास जी ने ऐसे लेखक की तलाश करनी प्रारंभ कर दी जो बीच में कुछ भी ना बोले केवल ओर केवल लिखें, यह कार्य केवल वही व्यक्ति कर सकता था जो अद्भुत ज्ञान का भंडार हो जिससे किसी प्रकार की जिज्ञासा की कोई आशा ना हो इस गुण में दक्ष श्री गणेश जी जिन्होंने माता-पिता की परिक्रमा कर प्रथम पूज्य देव की उपाधि प्राप्त की ऐसे महानायक
गणनायक गणपति जी ने महाभारत कथा का लेखक बनना स्वीकार किया जो स्वयं विघ्नहर्ता थे, तो वह विघ्न कैसे आने देते, वेदव्यास जी यही चाहते थे कि एक बार जब मैं बोलूं तो रुकूंगा नहीं और यदि रुक गया तो फिर नहीं बोलूंगा तो ज्ञान ऐसा ही होता है जो ज्ञान के मार्ग में एक बार चल पड़ता है तो वह चलता ही रहता है और जो एक बार रुक गया वह रुक गया, इस प्रकार आज बाबा जी ने पंचम वेद महाभारत लेखन की प्रक्रिया पर सविस्तार उद्बोधन सत्संग में जुड़े सभी सत्संगी भाई बहनों को सुनाया और सभी ने इसके लिए बाबा जी का आभार व्यक्त किया |
त्रिकाल संध्या के महत्व को विदित करते हुए बाबा जी ने बताया कि त्रिकाल संध्या उसी मनुष्य को प्राप्त होती है जो आलस्य को त्याग कर जीवन के प्रत्येक पल का आनंद लेना चाहता है जीवन का प्रत्येक पल तीन संध्यों को करने वाले को प्राप्त होता है प्रथम प्रातः काल उठकर जिस का समय 4:00 से 6:00 बजे का होता है जो अमृतवेला में सूर्योदय से पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ प्रदान करता है और नमन कर उनके ऊष्मा को अवशोषित करता है उसको मस्तिष्क की सभी कोशिकाएं खुल जाती है और वह असीम ऊर्जा को ग्रहण करता है ऐसा हमारे विभिन्न ग्रंथों में वर्णीत है |
सत्संग परिचर्चा को आगे बढ़ाते पाठक परदेसी जी ने नारद जी की वीणा के विषय में ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा बाबाजी के समक्ष की बाबाजी ने इस विषय को उद्धृत करते हुए बताया कि जिस प्रकार ब्रह्मा जी की प्रेरणा से भगवान शिव ने कृष्ण जी को बांसुरी प्रदान की और बांसुरी दीक्षा भी प्रदान की वैसे ही माता सरस्वती जी ने नारद जी को वीणा प्रदान की और उनको भगवान विष्णु के गुणगान के लिए प्रेरणा प्रदान की, वीणा के द्वारा छेडे गए तान से तीनों ही लोक में गुंजित होते हैं, और वीणा उनके विवेक व ज्योत्स्ना के जागरण का केंद्र है
इस प्रकार आज की सत्संग परिचर्चा पूर्ण हुई |
आप भी इस अद्भुत ऑनलाइन परिचर्चा में जुड़ने हेतु 9425510729 पर मैसेज करें
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम