अपनी किस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया….फूलोदेवी और दीपक के सवालों का जवाब है नगरनार स्टील प्लांट डी-मर्जर

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जगदलपुर। अर्जुन झा
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सांसद फूलोदेवी नेताम और बस्तर सांसद दीपक बैज द्वारा इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण न होने देने की मांग की थी। उन्हें इसका जवाब इस प्लांट के डी-मर्जर के तौर पर मिला है। नगरनार स्टील प्लांट को निजी हाथों में देने का जो कुचक्र रचा गया है, उसका मजदूर संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है। अब इस मामले में राजनीति गरमाएगी, यह बहुत स्वाभाविक है।

यहां इस तरह के मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जय प्लांट के निजीकरण की ओर बढ़ना ही था, तो सरकारी संस्थान के तौर पर उसे निर्मित और विकसित ही क्यों किया गया। आमतौर पर देखा गया है कि बस्तर की रतनगर्भा धरती पर उद्योग लगाने के लिए जमीन का अधिग्रहण किया जाता है और फिर निजी क्षेत्र के औद्योगिक संस्थान हाथ खींच लेते हैं ऐसी स्थिति में यदि सरकारी उपक्रम के माध्यम से किसी प्लांट को तैयार किया जाए। और आगे चलकर उसे निजी हाथों में सौंपने की तैयारी हो जाए तो इसका आखिर क्या अर्थ है बस्तर में उद्योग लगाने के लिए पिछली सरकार के समय टाटा ने जमीन का अधिग्रहण किया था वह अधिग्रहण काफी विवादित रहा लेकिन किसानों की जमीन अधिग्रहित करने के बाद वहां प्लाट नहीं लगाया गया और आखिरकार नई सरकार ने अपने वादे के मुताबिक किसानों को उनकी जमीन लौटा दी इसी तरह एस्सार ने भी माई केद्वार आने की घोषणा की थी लेकिन क्या इस तरह के संस्थान यहां आयाद हो सक? अब नगरनार स्टील प्लांट तैयार है और इस में कार्यरत लोग इसे संचालित करते हुए एक नया अध्याय लिखने तत्पर हैं तब नगरनार स्टील प्लांट के निजी करण का मार्ग खोजा गया है बल्कि खोला गया है तो स्पष्ट है कि सरकारी युनियाद पर खड़ी इमारत का इस्तेमाल निजी क्षेत्र के लोग करेंगे आशय यह कि एनएमडीसी द्वारा विकसित नगरनार स्टील प्लांट जनता की बजाय पूंजीपतियों की धरोहर बन जाएगा यदि निजीकरण को बढ़ावा देना है औद्योगिक संस्थानों को प्रोत्साहन देना है तो उन्हें संसाधन उपलब्ध करा कर सरकार उन्हें स्वतंत्र रूप से प्लांट लगाने में मदद कर सकती है लेकिन यह कौन सा तरीका है कि सरकारी उपक्रम के रूप में किसी प्लांट को तैयार किया जाए और उसके बाद वह निजी हाथों की शोभा बढ़ाए!

राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा नगरनार स्टील प्लांट की आधारशिला रखा है और इसके लिए निस्प कंपनी बनाई गई तथा अब इसको एनएमडीसी से स्टील मंत्रालय पृथक कर रहा है जिसकी मोहर भी लग गई। इन सबके बीच जि एक बार आंदोलन की रूपरेखा एनएमडीसी मजदूर संगठनों द्वारा तय की जा रही है। बस्तर सांसद दीपक बैज द्वारा संसद में स्टील मंत्रालय से नगरनार स्टील प्लांट विनिवेशीकरण के संबंध में लोकसभा में धारा 377 के तहत 17 सितम्बर 2020 को प्रश्न लगाया गया था और इस्पात मंत्री ने लिखित में जवाब देने का वायदा किया था किंतु वह जवाब यस्तर सांसद दीपक बैज तक पहुंच भी नहीं पाया है

और डी-मर्जर को हरी झंडी मिल गई। सरकार के इस फैसले से मजदूर संगठन आंदोलित हैं। इसी प्रकार सांसद फूलों देवी नेताम ने भी पत्र लिखकर इस्पात मंत्रालय से जवाब मांगा है लेकिन जवाब मिलने से पहले ये फैसला आ गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बस्तर के विकास के सपने दिखाते हुए कहा था कि नगरनार स्टील प्लांट से बस्तर के लोगों और बस्तर इलाके का विकास होगा यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा नगरनार स्टील प्लांट बस्तर विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा यहां तो उल्टा हो रहा है नौबत यह है कि नगरनार स्टील प्लांट पूंजीपतियों के विकास का राष्ट्रीय राजमार्ग बन पड़ा है। बड़े-बड़े उद्योगपति जाएं और एनएमडीसी द्वारा तैयार नगरनार संयंत्र का अपने तरीके से संचालन करें क्या यही सपना बस्तर और छत्तीसगढ़ ने देखा था? बस्तर की भोली-भाली जनता इतनी समझदार तो है कि उसे नगरनार स्टील प्लांट स्थापना के शुरुआती दौर में ही यह एहसास हो गया था कि आगे चलकर क्या होने वाला है शायद इसीलिए उस समय आशंकित लोगों ने इस प्लांट की स्थापना का विरोध किया था लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने तरह-तरह के भरोसे दिलाए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने जिस तरह से नगरनार स्टील प्लांट की स्थापना में रुचि दिखाई थी उससे ऐसा लग रहा था कि वाकई बस्तर विकास की दिशा में कुछ किया जा रहा है लेकिन अब जो हालात सामने आए हैं।

वह बस्तर के विकास की संभावनाओं के अनुकूल जान नहीं पड़ते बेहतर होगा कि अगर निजीकरण को बढ़ावा देना है तो निजी क्षेत्रा अपने प्लांट खुद विकसित करें और जनता के धन पर जो प्लाट विकसित हुए हैं उन्हें पनपने का पर्याप्त मौका दिया जाए अन्यथा ऐसे में देश के तमाम सरकारी नियंत्रण वाले औद्योगिक संस्थान निजी हाथों में चले जाएंगे और तब इन संस्थानों की स्थापना का उद्देश्य पूरी तरह भटक कर रह जाएगा साथ ही जो दुष्परिणाम भोगने होंगे यह तो सरकारी नीतियों के चलते मूल के साथ व्याज के तौर पर सामने आना ही है |