राजनीति के नफे नुकसान में देश का बंटाधार

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लेखक- एन.डी.मानिकपुरी

अध्यक्ष पदुम लाल पुन्ना लाल बख्शी शोध पीठ

राष्ट्र के नाम संबोधन में 20 अप्रैल 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था के दृष्टिगत लॉकडाउन अंतिम विकल्प है। दवाई, वैक्सीन, ऑक्सीजन समेत सभी आवश्यक वस्तुओं की समुचित व्यवस्था के निर्देश दिए गए हैं, देशवासियों को घबराने की आवश्यकता नहीं है, इस संकट की घड़ी में वे धैर्य से काम लें। परंपरागत तरीके से प्रधानमंत्री ने डॉक्टर्स, सफाई कर्मचारी, पुलिस प्रशासन समेत इमरजेंसी ड्यूटी कर रहे शासन से जुड़े लोगों की सराहना की और कोरोना से दिवंगत व उनके परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट की। फिर प्रधानमंत्री ने मन की बात में आजादी के बाद के 70 साल पर भारी अपना 07 साल का ज्ञानानुभव उड़ेलाकर व्याकुल देशवासियों के दिल पर मरहम लगाया।

प्रधानमंत्री की इन दिनों की बातें केवल एक फिलॉस्फर और मोटिवेशनल गुरु की तरह लगने लगी है, जो केवल सैद्धांतिक रूप से कर्णप्रिय लगती हैं, लेकिन व्यावहारिक व प्रायोगिक रूप से बेहद कर्कश और कठिन हैं। चारों तरफ लाशों की ढेर, अपनों को खोने का गम, इलाज के नाम पर लूट, लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, बर्बाद हो चुके लोग, इसमें भी आत्ममुग्ध सरकार, देखकर हृदय बैठ जाता है। प्रधानमंत्री की आपदा में अवसर की प्रासंगिकता इन दिनों चारों तरफ दिखाई दे रही है। लॉकडाउन को प्रधानमंत्री ने जो अंतिम विकल्प वह आज प्रथम विकल्प हो गया है, क्योंकि आत्मावलोकन व सक्षम नीति निर्माण की कमी की वजह से केंद्र सरकार ने प्रारंभिक विकल्प के अवसर को पहले ही खो दिया है।

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आज प्रधानमंत्री को मानवता व मनुष्यता के बजाय अर्थव्यवस्था की चिंता हो रही है, जबकि पिछले वर्ष अर्थव्यवस्था की चिंता होनी थी, तब नहीं की। कोरोना दूसरे चरण में केंद्र सरकार का व्यवहार स्पष्ट रूप से उसकी दूरदर्शिता को परिलक्षित करता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रधानमंत्री के बताएं अंतिम विकल्प को प्रथम विकल्प के रूप में अपनाया। इसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सराहना की जा सकती है। उन्होंने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उन जिलों पर पहले लॉकडाउन किया, जहां कोरोना के मरीज कम थे और फिर चरणबद्ध तरीके से संपूर्ण छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन किया जबकि दिगर भाजपा शासित प्रदेश व कांग्रेसी गठबंधन वाले प्रदेशों की सरकार ने निर्णय लेने में विलंब कर दिया इससे स्थिति और भी बिगड़ गई। छत्तीसगढ़ में अगर समय रहते लाजबाव नहीं लगाई गई होती तो स्थिति और भी भयावह होती।हालांकि समय रहते जिगर राज्यों सीमा को सील कर दिए होते तो स्थिति और भी बेहतर होती।

बाद में छत्तीसगढ़ सरकार ने यह भी किया। छत्तीसगढ़ सरकार की तर्ज पर ही केंद्र सरकार को यह निर्णय संपूर्ण देश में लेना था जिसमें केंद्र सरकार पीछे रह गई।

फरवरी 2020 में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने करोना को लेकर जब आगाह किया तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन समेत केंद्र सरकार ने उनकी बातों को हल्के में लिया। उस समय कोरोना का प्रथम चरण संपूर्ण विश्व के लिए चिंता का विषय था। देश में आने जाने वालों का ना ही स्वास्थ्य परीक्षण किया गया और ना ही इस बीमारी को गंभीरता लिया गया। जब देश में कोरोना पांव पसार रहा था और मध्यप्रदेश के इंदौर शहर को निगलना शुरू कर दिया था, तब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह मध्य प्रदेश के कमलनाथ सरकार को गिराने में लगे थे। जब तक मध्य प्रदेश में वे सरकार गिराते तब तक देश में कोरोना की भयावह स्थिति हो गई थी। तब प्रधानमंत्री ने आनन-फानन में संपूर्ण देश में लॉक डाउन कर दिया।

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बिना तैयारी के लॉकडाउन से देश में हजारों लोग मर गए, बेघर हो गए, बर्बाद हो गए और देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। जैसे-तैसे देश उबरना शुरू किया था और व्यवस्थाएं धीरे-धीरे सुधरने लगी। मुख्यमंत्री रहते देश के नेतृत्व पर सवाल खड़े करने वाले नरेंद्र मोदी स्वयं केंद्रीय नेतृत्व में आके अपने ही कथनों को भूल गए। प्रधानमंत्री एवं उनकी टीम को लगा कि कोरोना का संकट चला गया है। अब दोबारा नहीं आएगा जबकि विश्व स्तर पर पहले ही आगाह कर दिया गया था कि निकट भविष्य में कोरोना की दूसरी लहर भारतवर्ष में आने वाली है। चेतावनी के बावजूद केंद्र सरकार ने कोई तैयारी नहीं की जब कोरोना का द्वितीय लहर देश में फैलने लगा तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पश्चिम बंगाल समेत विभिन्न राज्यों के चुनाव में व्यस्त हो गए। कोरोना से निपटने के लिए देश में जब उचित रणनीति व सुविधाएं की आवश्यकता थी, तब वे चुनावी समर भूमि में पार्टी के नफे नुकसान व राजनीतिक सुविधा की रणनीति बना रहे थे। केंद्रीय नेतृत्व ने आपदा से निपटने के लिए कभी भी सर्वदलीय बैठक बुलाना उचित नहीं समझा। स्टार प्रचारक बनकर चुनाव में व्यस्त प्रधानमंत्री भूल गए कि वे किसी राजनीतिक दल और औद्योगिक घराने के नहीं बल्कि देश प्रधानमंत्री हैं। उन्हें किसी राजनीतिक दल या औद्योगिक घराने के लिए काम नहीं करनी है उन्हें देश की जनता के लिए काम करनी है।

प्रधानमंत्री और गृह मंत्री कुछ चाहिए था कि वे अपनी पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी को संबंधित राज्य के चुनाव की जिम्मेदारी देकर देश संभालते। केंद्रीय नेतृत्व में मिली शक्ति, संसाधन और अधिकार का उपयोग देश की भलाई और विकास में लगाते हैं ना कि किसी राज्य में सरकार बनाने में।

दूसरे चरण के आगमन से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आने जाने वाले लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करना था। दवाई, अस्पताल, ऑक्सीजन, की व्यवस्था करनी थी। देश के लोगों को पहले वैक्सीन लगना था, निर्यात होता तो बेहतर था। इलाज के लिए पर्याप्त दवाइयों का आयात नहीं किया गया तो क्या देश में बनी दवाइयों का स्टेंडर्ड उससे बेहतर यह भी विचार करना होगा। वैक्सीन को लेकर पूरे देश में भ्रम की स्थिति है केंद्रीय नेतृत्व ने यह फैसला राज्यों पर छोड़ दिया। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो 18 वर्ष से 45 वर्ष आयु वर्ग के लगभग एक करोड़ 30 लाख लोगों को निःशुल्क वैक्सीन लगाने का निर्णय ले लिया है, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से वैक्सीन की उपलब्धता एवं कीमत पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

केंद्र सरकार की सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाने, सभी वर्ग के लिए वैक्सिंग, दवाई और इलाज की समुचित व्यवस्था की बातें “आग लगने पर कुआं खोदने जैसी” है। शायद केंद्र सरकार के पास कोई जादू की छड़ी है, जिससे यह सब कुछ पल में संभव है। यदि समय रहते यह तैयारियां की गई होती तो लोग इलाज के लिए अस्पताल में और अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में नहीं लड़ रहे होते। सुबह चुनावी रैली और शाम को देश के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री का करोना गाइड लाइन को लेकर विरोधाभास रहा है। सुबह की भीड़ खुशी और शाम के ज्ञान में सोशल डिस्टेंस का पालन का आह्वान उनकी कथनी और करनी के अंतर को स्पष्ट करता है। अब नरेंद्र मोदी की बातें प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुकूल नहीं लग रही हैं।

कोरोना के दूसरे चरण के आगमन से पहले राजनीतिक दलों की सर्वदलीय बैठक और राज्यों से उचित संबंध में स्थापित किया जाना था, लेकिन हठधर्मिता और स्वयं की नीति को ही सर्वोत्तम नीति मानकर चलने वाली केंद्र सरकार की घनघोर लापरवाही के कारण देश आज इस स्टेज पर खड़ा है। केंद्रीय नेतृत्व ने गरिमा के विपरीत संवैधानिक ढांचे को छिन्न-भिन्न करने तक का प्रयास करती रही। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, सीबीआई ईडी, चुनाव आयोग आदि जैसी संस्थाएं वर्तमान कार्यशैली की कारण सवालों के घेरे में है। दरअसल इन संस्थाओं में सर्वोच्च पद पर आसीन पीठासीन अधिकारी सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर उपकृत हो रहे हैं। इससे एक भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है और उनकी गतिविधियों पर सहज ही प्रश्नचिन्ह लग रहा है। न्यायिक संस्थाओं में भी राजनीतिक दल की तरह वैचारिक मतभेद हो गए जो उनके कार्य की व्यावहारिकता से झककने लगी है।

70 साल की दुहाई देकर 7 साल तक केंद्र सरकार ने केवल अपनी मनमानी की। परिणाम स्वरूप जाति, धर्म, क्षेत्रवाद की वैमनस्यता गांव-गांव, शहर-शहर में देश के भविष्य और युवा पीढ़ियों के दिलोदिमाग में घर कर रहा है। जिस संचार क्रांति से देश के लोगों में बौद्धिक विकास होना था अब वही अपभ्रम फैलाने का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है। संचार माध्यम से स्वास्थ्य प्रचार और स्वस्थ आलोचना दोनों ही देश के लिए अच्छे हैं, लेकिन दूषित आलोचना और दूषित प्रचार देश के लिए घातक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे कार्यकाल का अवलोकन करें तो स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण प्रधानमंत्री आवास की राशि बढ़ाना तथा जम्मू कश्मीर से 370 हटाने के अलावा कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। इसमें शौचालय निर्माण एवं प्रधानमंत्री आवास निर्माण पूर्ववर्ती सरकार की योजना है, जिसे अपडेट किया गया है जबकि पूर्ण बहुमत की सरकार होने के कारण जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना एक साहसिक और सराहनीय कार्य है। इसके अलावा कोई विशेष उपलब्धि नहीं है।

पूर्ण बहुमत की सरकार होने का केंद्र ने औद्योगिक घरानों को खुश करने के लिए करोना काल में भी अन्नदाताओं के खिलाफ संसद में विवादित बिल पास किए। किसान आंदोलन के खिलाफ तरह-तरह के हथकंडे और दमनकारी नीति केंद्र सरकार के पूर्ण बहुमत के अहंकार को दर्शाता है। इससे देशभर के अन्नदाता हूं के आंखभर आए हैं। भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल और केंद्र सरकार नीतियों समर्थन में खड़े लोग देश की हर छोटी-बड़ी उपलब्धि का श्रेय देश के प्रधानमंत्री को देते हैं। प्रधानमंत्री भी देश की विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सफलता, वैज्ञानिकों की कोई खोज व शोध, व्यापार और व्यापारियों की तरक्की,सेना का शौर्य, खिलाड़ी का मैडल से लेकर हर कला और संस्कृति के क्षेत्र में मिलने वाली उपलब्धि के पीछे स्वयं को ही कारक मानते हैं, तो आज कोरोना के आपदा में उपजी भयावह स्थिति के कारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों नहीं?