जगदलपुर… यह सच है कि किसान अन्नदाता होता है और यह भी सच है कि किसान की सुनने वाला कभी-कभी कोई नहीं होता यह हाल सिर्फ बस्तर का नहीं संभवतः पूरे देश में देखने को मिलता है जब किसान शासन प्रशासन से हार जाता है तो कई बार लाचारी और बेबसी के कारण आत्महत्या जैसे बड़े कदम उठाने हटता… शासन किसानों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए कई सारी योजनाएं बनाती हैं शासन की मंशा स्पष्ट होती है कि उनके राज्य अथवा देश के किसान समृद्ध शाली बने आत्मनिर्भर बने लेकिन जब शासन के अधीन प्रशासन के अधिकारी लापरवाही की चरम सीमा पर पहुंच जाएं तो किसान बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाता है |
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार वैसे तो किसानों की हित के लिए लगातार प्रयासरत दिखती है लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते छत्तीसगढ़ के किसान भी कभी-कभी परेशानी झेलने को मजबूर हो जाते हैं |
ताजा मामला बस्तर जिले के करंजी लैंप्स से जुड़ा हुआ है जहां के सैकड़ों किसान मक्का का उपार्जन कर फंस गए हैं दरअसल बात यह है कि मक्का खरीदी के लिए लैंप्स ने पंजीयन ही नहीं करवाया और किसान लाखों रुपए की मक्का पैदावार कर फंस गए हैं अब किसानों की सुनने वाला कोई नहीं रहा |
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार किसानों की समस्या को लेकर निश्चित तौर पर ही गंभीर दिखती है यही वजह है कि इस वर्ष भी वैश्विक महामारी कोविड-19 के भीषण दौर में भी सरकार ने राजीव गांधी ने योजना के माध्यम से किसानों की सुध लेते हुए उनके खातों में करोड़ों रुपए डालकर किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया और आपदा दा काल में भी किसानों को आत्मबल प्रदान किया… बावजूद इसके बस्तर में बड़ी प्रशासनिक लापरवाही के चलते सैकड़ों किसान इस वर्ष मक्का खरीदी से महरूम रह गए हैं इस संबंध में जब जिला स्तर के अधिकारियों से बात की गई तो सभी अधिकारी टालमटोल करते नजर आए और सिर्फ एक दूसरे पर आरोप लगाने के अलावा कुछ नहीं कर पाए |
किसानों की मक्का खरीदी के संबंध में जब जिले के खाद्य नियंत्रक अजय यादव से बात की गई तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए किसी और से जुड़ा हुआ मामला बताया और कहा कि इसमें हमारी कोई गलती नहीं है अगर साहब चाहते तो उक्त मामले में स्वयं संज्ञान लेकर संबंधित अधिकारियों तक मामले को पहुंचा सकते थे जिससे किसानों को बड़ी राहत मिल सकती थी लेकिन एसी कमरे के अफसरशाही की लत में मगन अधिकारी को किसानों की सूट लेने के लिए फुर्सत ही कहां अगर यह बात किसी राईस मिलर्स से जुड़ी होती तो साहब निश्चित तौर पर ही बात आगे बढ़ाते क्योंकि मामला किसानों से जुड़ा था इसीलिए साहब ने हाथ पीछे खींचना जरूरी समझा |
हमारी भी सुनो शासन और प्रशासन… हम छत्तीसगढ़ के अन्नदाता तो इतनी बेबसी क्यों…
किसानों ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि अगर हम छत्तीसगढ़ के अन्नदाता हैं तो हमारी भी कोई सुनने वाला क्यों नहीं है छत्तीसगढ़ की सरकार तो किसानों के हितों के लिए लगातार योजनाएं संचालित कर रही हैं फिर क्यों हमको इतनी यातनाएं झेलनी पड़ रही है उन्होंने छत्तीसगढ़ शासन और बस्तर जिला प्रशासन के मुखिया कलेक्टर रजत बंसल से मांग करते हुए कहा है कि किसानों की सुध लेते हुए कृपया 31 मई से पहले तक मक्का खरीदी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए और उन्हें अपने मक्का की उपज को बेचने के लिए किसी अन्य जगह पर ना जाना पड़े और करंजी लैंप्स कंपाउंड में ही मक्का खरीदी की व्यवस्था की जाए जिससे कि उन्हें फिर से कर्जदार होने की नौबत ना पड़े |
31 मई मक्का खरीदी की आखिरी तारीख… किसानों को सता रहा कर्जदार होने का डर
इस वर्ष तक छत्तीसगढ़ शासन ने 31 मई मक्का खरीदी की आखरी तारीख तय की गई है और ऐसी परिस्थिति में किसान बेहद परेशान हैं मई का महीना अपने अंतिम पड़ाव की ओर है और कुछ दिनों बाद ही वर्षा काल प्रारंभ होने को है और मक्का की खरीदी नमी मापक यंत्र के जांच उपरांत ही हो पाती है ऐसे में किसानों के पास उचित भंडारण की व्यवस्था ना होने के कारण भी मक्का को संरक्षित रखना बड़ी चुनौती है |
करंजी लैंप्स के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत पोटानार के किसान रमेश ठाकुर, अजय जोशी, प्रकाश पानीग्राही ने जानकारी देते हुए बताया कि सिर्फ उनके गांव में ही 1000 क्विंटल से भी ज्यादा मक्का जाम हुआ पड़ा है जिसे बेचने की तैयारी कर बैठे हुए हैं लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं अगर 31 मई के पहले तक उनका मक्का नहीं खरीदा गया तो वह फिर से कर्जदार हो जाएंगे पिछले वर्ष भी मजबूरी वश करंजी लैंप्स के किसानों को 1200 से 13 सौ रुपए में बिचौलियों को मक्का बेचना पड़ा था यही हाल इस वर्ष भी रहा तो बहुत ही तकलीफ में फंस जाने की बात किसानों ने कही |
इस पूरे मामले को लेकर करंजी लैंप्स के प्रबंधक का कहना है कि उन्हें इस वर्ष शासन की तरफ से मक्का खरीदी के लिए कोई भी आदेश नहीं मिला है इसीलिए मक्का खरीदी करना संभव नहीं है |