अर्जुन झा
रायपुर। ढाई – ढाई साल के कार्यकाल की अटकलबाजियों का बाज़ार बंद होने के बाद अब मानसून सत्र के पहले छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के दिल्ली दौरे ने राज्य में सियासी पारा बढ़ा दिया है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा की गई एक घोषणा के बारे में खुलकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव का यह दिल्ली दौरा राजनीतिक कारणों से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ग्रामीण क्षेत्र की निजी अस्पतालों को राहत देने का जो ऐलान किया है उससे स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव सहमत नहीं हैं। हालांकि कांग्रेस के नेता मुख्यमंत्री बघेल के फैसले को सही ठहरा रहे हैं और उनका मानना है कि मुख्यमंत्री इस तरह की घोषणा करने का अधिकार रखते हैं और उन्होंने लोक हित में ही यह ऐलान किया है। दूसरी तरफ सिंहदेव के दिल्ली दौरे के मद्देनजर यह समझा जा रहा है कि वह इस दौरे में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करके अपना पक्ष रख सकते हैं। वैसे उन्हें दिल्ली से कोई बुलावा नहीं आया बताया जा रहा है लेकिन वह अपनी ओर से आलाकमान को अपनी भावनाओं से अवगत कराने के मूड में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व इन दिनों आंतरिक खींचतान से भारी परेशान है। कांग्रेस गिने-चुने राज्यों में सत्ता में है और ऐसे में भी जहां उसकी राज्य सरकारें हैं, उन प्रदेशों में माहौल कोई अच्छा नहीं चल रहा है।
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच की तनातनी ने पहले ही पार्टी आलाकमान को असमंजस में डाल रखा है। इन दोनों के बीच सुलह के लिए बाकायदा कमेटी बनी है लेकिन इस दौरान जिस तरह से सिद्धू ने दिल्ली दरबार में धूम मचाई और उसके बाद कैप्टन साहब भी दिल्ली में मोर्चा साध रहे हैं उससे पार्टी नेतृत्व के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। इसके साथ ही राजस्थान में भी कांग्रेस के भीतर के हालात काफी बेचैन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच जो चल रहा है उससे भी आलाकमान के सामने मुश्किलें बढ़ रही हैं। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच के टकराव ने क्या गुल खिलाया, वह तो पहले ही सामने आ चुका है । ऐसे में अब छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव का दिल्ली दौरा क्या पार्टी नेतृत्व की मुसीबत बढ़ा पाएगा अथवा वह जिस तरह अब तक शांति के साथ रहते आए हैं उसी तरह आगे भी संयम बरतते रहेंगे, इस पर राजनीतिक पंडितों की निगाह ठहर गई है। अब तक दिल्ली दरबार में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का वजन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा के साथ भूपेश बघेल की बेहतरीन ट्यूनिंग है। राहुल कई मौकों पर लगातार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तारीफ करते रहे हैं और कांग्रेस की ओर से उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी ज़िम्मेदारी दी गई। जाहिर है कि कांग्रेस आलाकमान की नजर में भूपेश बघेल का काम न केवल संतोषजनक है बल्कि उसने केंद्रीय नेतृत्व को भरपूर प्रभावित भी कर रखा है। अभी पिछले दिनों जब भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री काल के ढाई साल पूरे हुए तो ढाई ढाई साल के फार्मूले का काफी हल्ला मचा था लेकिन कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रभारी पीएल पुनिया ने साफ कर दिया की ऐसा कुछ नहीं है और खुद सिंहदेव ने भी कहा था कि वह भूपेश सरकार के मंत्री हैं। ऊपर से भी खुलकर इशारा मिल गया की भूपेश बघेल के कार्यकाल में किसी तरह का कोई बटवारा नहीं होने वाला। राजनीतिक हालात भी ऐसे हैं कि भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के बीच अगर कुछ मतभेद हैं भी तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन इससे राज्य में पार्टी की साख पर असर पड़ने की आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से सिंहदेव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर भूपेश बघेल ने बेहद मेहनत की थी। बघेल के संगठन नेतृत्व में कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की तो मुख्यमंत्री पद उन्हें हासिल हुआ। कांग्रेस नेतृत्व ने भूपेश बघेल को जिस उम्मीद के साथ चुनाव और उसके बाद सरकार की कमान सौंपी, उस पर बघेल एकदम खरे उतरे हैं। नगरीय निकाय चुनाव से लेकर ग्रामीण सत्ता के चुनाव सहित तमाम उपचुनाव में उन्होंने कांग्रेस का सिर और ऊंचा किया है। भूपेश बघेल सबको साथ लेकर चल रहे हैं संगठन के साथ उनका बेहतर से भी बेहतर तालमेल है जिसकी वजह से राज्य में कांग्रेस को सफलता मिल रही है। अपवाद के तौर पर लोकसभा चुनाव के परिणाम एक अलग मामला है। ऐसे में भूपेश बघेल की कार्यशैली से भी केंद्रीय नेतृत्व संतुष्ट है। उन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा से बस्तर सीट छीन कर यह तो साबित किया ही है कि जिस बस्तर में उन्होंने सभी 12 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा कराया, उसी रणनीति के तहत बस्तर लोकसभा सीट भी कांग्रेस के पाले में ले आए। राज्य में कांग्रेस के 70 विधायक हैं। यह सफलता किसी चमत्कार से कम नहीं है। आरंभिक संघर्ष में भूपेश बघेल ने जो दमखम दिखाया, उसका ही नतीजा है कि कांग्रेस को छप्पर फाड़ कर सफलता मिली। अब अगर ढाई ढाई साल के किसी फार्मूले की चर्चा भी की जाए तो उसका कोई तुक नहीं है। सिंहदेव के दिल्ली दौरे से भूपेश बघेल की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है। लेकिन अगर सिंहदेव ने दिल्ली में राज्य के मुद्दों को लेकर कड़ा संकेत दिया तो इससे राज्य में विपक्ष को कांग्रेस और उसकी सरकार को राजनीतिक रूप से घेरने का मौका जरूर मिल जाएगा।