(अर्जुन झा)
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल तक राज करने के बाद बस्तर में पूरे सफाए सहित सत्ता से बुरी तरह बाहर हुई भारतीय जनता पार्टी बस्तर में तीन दिवसीय चिंतन शिविर के जरिए अगले चुनाव में जीत हासिल करने की रणनीति तैयार कर रही है। इधर हालात ऐसे हैं कि भाजपा की चिंता बढ़ गई है कि अगर पुराने नेताओं को दरकिनार कर रणनीति बनाई जायेगी तो नीति कम रण ज्यादा होगा। खबर है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल और पंद्रह साल तक राज्य में वरिष्ठ मंत्री रहे अमर अग्रवाल और राजेश मूणत को चिंतन शिविर से दूर रखा जाना ऊपर तक चर्चित हो गया और प्रदेश भाजपा प्रभारी डी पुरंदेश्वरी की नीतियों पर सवाल खड़े हो गए। ये तीनों नेता पिछ्ले विधानसभा चुनाव में हार जरूर गए थे लेकिन क्या अब भाजपा को उनकी कोई जरूरत नहीं है, यह सवाल उठ रहा है। कहा जा रहा है कि इन तीनों नेताओं को निमंत्रण भेजा गया था लेकिन बाद में न आने का संदेश पहुंचा दिया गया। इस मामले की खबर राष्ट्रीय संगठन महामंत्री तक पहुंच गई है और पूर्व अध्यक्ष अमित शाह तक भी शिकायत जा सकती है। पार्टी के भीतर सवाल उठ रहा है कि क्या एक चुनाव हारने के बाद कोई नेता अप्रासंगिक हो जाता है? यदि ऐसा है तो जिनके नेतृत्व में हुए चुनाव में भाजपा मात्र पंद्रह सीटों पर सिमट गई, क्या वे पार्टी में प्रासंगिक रह गए हैं? मौजूदा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के संगठन नेतृत्व में भाजपा बुरी तरह हारी। लेकिन पार्टी ने उन्हें विधायक दल का नेता बनाया। तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सत्ता नेतृत्व में भाजपा साफ हो गई। किंतु डॉक्टर साहब की महत्ता से परिचित नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। तब आखिर क्या कारण है कि तीन समर्पित नेताओं को इस तरह किनारे कर देने की नौबत आ गई? वैसे भाजपा प्रभारी डी पुरंदेश्वरी सहित तमाम दिग्गज चिंतन करने में जुट गए हैं। अब सवाल यह भी है कि भाजपा उजड़े चमन में फूल खिलाएगी कैसे? माना कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 11 में से 09 सीटों पर जीत हासिल कर ली। मगर इसमें राज्य इकाई का कितना योगदान रहा? लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी हुए। यदि केंद्रीय नेतृत्व ने पूरे घर के बदल डालूंगा वाले अंदाज में यहां की सूची खारिज न की होती तो विधानसभा चुनाव जैसी हालत की आशंका जताई ही जा रही थी। खैर, बीती बात भूलकर आगे की सुध लेना है तो अतीत की गलतियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ना होगा। भाजपा के चिंतन शिविर को लेकर कांग्रेस भी खूब निशाना साध रही है।
बस्तर सांसद दीपक बैज के प्रतिनिधि और युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव सुशील मौर्य ने सवाल उठाया है कि जगदलपुर के सबसे बड़े और आलीशान होटल में बैठ कर भाजपा के नेतागण चिंतन शिविर में क्या किसान हित की बात करेंगे? निजीकरण की आड़ में अपने पसंदीदा चंद उद्योगपतियों को लाभ देने के लिए सरकारी उपक्रमों को आधे से भी कम दाम में नीलामी पर इन्हें कोई चिंता नहीं है। मौर्य ने भाजपा के चिंतन शिविर को पब्लिसिटी स्टंट बताते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ व बस्तर से अपने खत्म हुए जनाधार को बचाने के लिए भाजपा आखिरी कोशिश कर रही। भाजपा के नेताओं में टिकिट की दौड़ के लिए अभी से अंदरूनी घमासान मचा हुआ है। ऐसे में भाजपा अपने चिंतन शिविर में क्या किसानों के हित की बात करेगी? यह चिंतन शिविर महज एक ढोंग है। एक तरफ पूरा देश कोविड महामारी के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों से बढ़ती हुई महंगाई से पूरा देश त्रस्त है। भाजपा इन ज्वलंत मुद्दों पर चिंता करने की बजाय सत्ता हासिल करने की चिंता में डूबी हुई है।