आदिवासी जमात और सियासी बिसात…वो तोड़ रहे, ये जोड़ रहे

0
412

(अर्जुन झा)

जगदलपुर। बस्तर अंचल में चिंतन शिविर आयोजित कर भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ की आदिवासी जमात तक यह पैगाम पहुंचाने की कोशिश की कि भाजपा इस वर्ग के करीब है। एक तरह से भाजपा ने आदिवासी वर्ग को अगले चुनाव के मद्देनजर साधने के प्रयासों की शुरुआत की है। वह अपने प्रयोजन में कितनी सफल हुई, यह तो सवा दो साल बाद ही पता चलेगा लेकिन कांग्रेस ने अभी से यह इशारा कर दिया है कि वह भाजपा का मनोरथ सिद्ध नहीं होने देगी। भाजपाई चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस ने न केवल बस्तर बल्कि पूरे राज्य के आदिवासियों के बीच आत्मीयता और एकजुटता का रोडमैप तैयार करने में कोई विलंब न करते हुए बस्तर के सर्व आदिवासी समुदाय की मुख्यमंत्री आवास में आवभगत का सिलसिला शुरू कर दिया। प्रभारी मंत्री और दिग्गज आदिवासी नेता कवासी लखमा की मौजूदगी में बस्तर अंचल की सभी बारह सीटों के इलाकों में बसे आदिवासी समाज के हर वर्ग के लोगों का मेला रायपुर स्थित मुख्यमंत्री आवास में लग रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इनसे आत्मीयता से मुलाकात कर रहे हैं। आदिवासी समाज के सभी अंगों को साथ लेकर उनकी बातें सुनी जा रही हैं। अपनी बात कही जा रही है। बस्तर के चप्पे चप्पे के विकास पर मंथन किया जा रहा है। आदिवासियों की भावना के अनुरूप उनके क्षेत्र के विकास की प्रतिबद्धता के जरिए आदिवासियों को एक सूत्र में बांधा जा रहा है। बस्तर के बाद सरगुजा अंचल के आदिवासियों से भी आत्मीय मिलन की संभावनाएं प्रबल हैं।

इस तरह कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में उनके सहयोगी मंत्री कवासी लखमा सहित बस्तर संभाग के सभी कांग्रेसी जनप्रतिनिधि आदिवासी समुदाय को कांग्रेस के और निकट लाने सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेस ने आदिवासी समाज का भरोसा जीतने में बहुत मेहनत की। नतीजा यह है कि बस्तर की सभी बारह सीटों पर कांग्रेस काबिज है तो बस्तर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की युवा शक्ति के प्रतीक दीपक बैज रोशनी फैला रहे हैं। दूसरी तरफ बस्तर अंचल भाजपा के लिए उजड़ा चमन बन गया है। दूसरी तरफ भाजपा के स्थानीय क्षत्रप पता नहीं किस मुगालते में आदिवासी जमात के बीच वर्ग भेद को प्रश्रय देकर अपनी ही सूख रही जड़ों में मट्ठा सींचने में व्यस्त हैं। भाजपा ने दक्षिण मूल की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को कमान सौंपी है। भाजपा में गुट विशेष को ठिकाने लगाने का काम करके वे आम कार्यकर्ता में उत्साह तो भर सकती हैं लेकिन आदिवासियों में भाजपा के प्रति उत्साह कैसे उत्पन्न करेंगी, यह जिज्ञासा का विषय है। भाजपा आदिवासियों को रिझाने के उपक्रम के दौरान यह भूल रही है कि आज़ाद फितरत के पंछी किसी पिंजरे मे कैद नहीं होते। जहां प्यार से दाना पानी मिलता है, वह वहां ठहर जाते हैं। भाजपा को यह समझ नहीं आ रहा कि धर्मांतरण और मूर्ति पूजा आदिवासी समाज के लिए कोई व्यावहारिक अहमियत नहीं रखता।