चंद किलोमीटर की दूर अतिआवश्यक नोटिस पंहुचाने में पुलिस विभाग ने लगा दिया एक महिना

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हमारे छत्तीसगढ के गरियाबंद की पुलिस को “अतिशीघ्र जाति प्रमांण पत्र प्रस्तुत करने जारी करने किए गये नोटिस ” को संबंधित तक पहुंचाने में एक महिना लगा दिया-? जिसका रहस्य सुलझाने में विधि के जानकार जुटे हुए हैं। बताया जाता है कि-23-02-2021 को जारी पत्र कार्यालय से महज चंद दूरी पर रहने वाले जूली देवार पति स्व. संतोष देवार तक पहुंचाने में पुलिस ने ठीक एक महिना 23-03-2021 लगा दिया गया था …?? आश्चर्यजनक बात यह भी है कि -जिस तारीख को पुलिस विभाग द्वारा नोटिस प्राप्तकर्ता को नोटिस पहुंचाया गया उसी दिन गंभीर आरोप एवं अपराध में फरार चलने वाले पुलिस वालों ने गरियाबंद की बजाय रायपुर में समर्पंण किया और उसी दिन जमानत भी मिल गया – ??जिसे सहज सामान्य नहीं माना जा सकता। संतोष देवार की मौत के मामले को दबाने के लिए और उसके बाद न्यायालय के आदेश पर अपराध कायम करने के बाद आरोपियों को गिरफ्तारी से बचाते रखने एवं फरार रहने में ,उसके बाद समर्पंण एवं ससम्मान जमानत में पुलिस विभाग के रहुनमाओं ने अपराध में फंसाने और अपराध से बचाने में सिद्धहस्त पुलिस ने जिस तरह से अपने कर्तव्य का पालन किया है उस पर अब सवाल दर सवाल उठने लगा है।

पुलिस विभाग ने अपने विभाग के लोगों को बचाने के लिए खुद को सवालों के कटघरे में ला खड़ा करने के सांथ सरकार के लोक अभियोजक (सरकारी अधिवक्ता )एवं न्यायालय के द्वारा एस एसी एक्ट में दिये गये जमानत पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करवा देने का कृत्य कर /करवा दिया – ??? जो अब जनचर्चा का विषय बन गया है। गंभीर आरोप एवं अपराध में घिरे पुलिस वालों पर अपराध कायम होने के बाद लगभग लगातार 2 वर्ष तक फरार रहने के बावजूद विभाग द्वारा कोई कार्रवाई न किया जाना और जमानत मिलने के बाद उन्हें ससम्मान पदस्थ कर देने को लेकर भी हैरत जाहिर करते यह सवाल खड़ा किया जा रहा है-??? ? क्या -पुलिस इसी तरह से आमजनता एवं आम आरोपी अभियुक्त को भी इसी तरह से खास रियायत देती है जिस तरह से छुरा थाना में संतोष देवार की मौत को लेकर दर्ज अपराध में किया गया -? अपनी कर्तव्यनिष्ठता पर सवाल खड़ा कर प्रतिष्ठा को धूल धूसरित करने वाली पुलिस ने अपने विभाग के सांथ-सांथ ” कानून एवं न्याय व्यवस्था ” पर गंभीर चिंतनिय सवाल खड़ा कर /करवा दिया हैे ! मामले में अपराध कायम करने से लेकर अभी तक जिस तरह से पुलिस ने अपनी भूमिका अदा किया है उसकी समीक्षा करते हुए लोग पुलिस पर भेदभाव पक्षपात का आरोप मढ़ने के सांथ पुलिस व्यवस्था और कानून एवं न्याय व्यवस्था पर भरोसा टूटने की बात कहने लगे हैं जो सही नहीं माना जा सकता क्योंकि अपने चंद ब्यक्ति के लिए पूरे विभाग और कानून व न्याय व्यवस्था के साख एवं ईज्जत पर बट्टा लगाना दुर्भाग्यजनक दूरगामी दुष्परिणांमजनक होगा |