कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता…बस्तर में उद्योग आना चाहते हैं मगर लगेंगे कहां?

0
155

(अर्जुन झा)

जगदलपुर। एक फिल्मी नगमा छत्तीसगढ़ के बस्तर में औद्योगिक विकास के मुद्दों पर याद आ रहा है। कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता..! बस्तर में औद्योगिक विकास की बहुत सी संभावनाएं हैं। भूपेश बघेल सरकार हर हाल में यहां का विकास चाहती है ताकि यहां के लोगों को रोजगार मिले। बस्तर में औद्योगिक विकास होगा तो यहां के लोगों को काम मिलेगा। शर्त केवल यही है कि उद्योग के लिए आदिवासियों की जमीन नहीं दी जायेगी। राजस्व भूमि पर ही उद्योग स्थापना हो सकती है। यह बहुत अच्छी बात है कि उद्योग के लिए आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। पिछली सरकार ने टाटा के लिए आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण किया। लेकिन उस पर उद्योग स्थापित नहीं किया गया। कांग्रेस के चुनावी वायदे के मुताबिक भूपेश बघेल सरकार ने आदिवासियों की जमीन वापस लौटा दी। अब बस्तर में सहायक उद्योग स्थापित करने के लिए औद्यौगिक घराने आगे आ रहे हैं। सात सहमति पत्र हस्ताक्षरित होने की खबर के संदर्भ में अब यह चर्चा चल रही है कि इनके लिए जमीन कहां से आयेगी? उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने हाल ही स्पष्ट किया है कि आदिवासियों की जमीन दिए बिना औद्यौगिक विकास होगा। राजस्व भूमि पर उद्योग स्थापित किए जाएंगे। मगर दिक्कत यह है कि इतनी राजस्व भूमि उपलब्ध नहीं है। एक उद्योग स्थापित करने के लिए कम से कम 50 एकड़ जमीन एक साथ उपलब्ध होना चाहिए। बस्तर में एक साथ इतनी जमीन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में औद्यौगिक विकास को बढ़ावा कैसे मिलेगा, यह चिंतन का विषय है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उद्योग मंत्री कवासी लखमा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप बस्तर के औद्यौगिक विकास की संभावनाएं तलाशने काफी मेहनत कर रहे हैं और उनका साफ तौर पर कहना है कि आदिवासियों की जमीन पर अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। तब यह बहुत जरूरी जान पड़ रहा है कि जमीन का इंतजाम किया जाय। यह कैसे संभव है, यह एक चुनौती है। कठिन काम ही करने योग्य होता है। मुख्य्मंत्री भूपेश बघेल का मंत्र है कि जहां चाह वहां राह और मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए..! तो अब देखना यह है कि कितने जल्द बस्तर की जमीन पर औद्योगिक फसल लहलहाएगी।