छत्तीसगढ़ : कांग्रेस के बाड़े में, उतरे दो मल्ल अखाड़े में, आगे आगे देखिए होता है क्या..

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रायपुर। दीवाली से पहले छत्तीसगढ़ कांग्रेस में धमाका! वैसा नहीं, जैसी की हलचल तेज हुई थी। लेकिन जो छोटा धमाका हुआ है, वह आने वाले समय में बड़े धमाके का सबब बन जाय तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। अब तक कांग्रेस की सत्ता में कथित आंतरिक संघर्ष की खबरों का बोलबाला चल रहा था। अब सत्ता और संगठन में मनमुटाव के नजारे सामने आ रहे हैं। सत्ता के गलियारे में प्रवेश कर चुके पूर्व सचिव सुशील सन्नी अग्रवाल को प्रदेश महामंत्री अमरजीत चावला से प्रदेश अध्यक्ष के सामने ही मीडिया की मौजूदगी में अभद्र व्यवहार के आरोप में निलम्बित कर दिया गया है। यह मामला आगे चलकर रंग दिखाएगा, ऐसा कहा जा रहा है कि सत्ता और संगठन में अनबन का यह खुला संकेत है। बात निकली है तो दूर तलक जायेगी। सवाल यह भी है कि क्या सत्ता से जुड़े व्यक्ति के संगठन की सदस्यता से निलम्बन के बाबत सत्ता प्रमुख भूपेश बघेल से सलाह ली गई अथवा नहीं?

अब देखना है कि कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से निलम्बित अग्रवाल को सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल के अध्यक्ष पद पर बनाए रखा जाएगा अथवा उनकी वहां से भी छुट्टी होगी? प्रदेश कांग्रेस संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला द्वारा जारी बयान में बताया गया कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने प्रदेश महामंत्री अमरजीत चावला के साथ किये गये अभद्र व्यवहार के कारण प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव, भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण मंडल के अध्यक्ष सुशील सन्नी अग्रवाल को पार्टी संगठन की धारा-6 (ग) के अंतर्गत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। पीसीसी महामंत्री प्रशासन रवि घोष द्वारा जारी निलम्बन आदेश में कहा गया कि प्रदेश अध्यक्ष के समक्ष, मीडिया की मौजूदगी में प्रदेश महामंत्री अमरजीत चावला के साथ अभद्र व्यवहार के कारण तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है।

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इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी नलिनीश ठोकने का कहना है कि खुलेआम सड़क पर एक दूसरे से मारपीट करना, गाली गलौज करना और वह भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राष्ट्रीय पदाधिकारियों की उपस्थिति में, यह कांग्रेस की ही संस्कृति हो सकती है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश की जनता ने अपेक्षा की थी कि सरकार में आने के बाद कांग्रेस को जिम्मेदारी का एहसास होगा, लेकिन जो जिम्मेदारी कांग्रेस को जनता ने दी, उसमें भी वह खरी नहीं उतरी। कांग्रेस से किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी की अपेक्षा करना बेमानी ही होगी। राज्य और कैबिनेट मंत्री दर्जा जैसे पदों पर रहते हुए इस तरह की भाषा का प्रयोग करना, अपनी वाणी में संयम न बरतना यह कांग्रेस की ही संस्कृति में हो सकता है। बात-बात पर मारपीट करना, किसी को जान से मारने की धमकी देना, गुंडागर्दी करना, ऐसा कर कांग्रेस के लोग न सिर्फ अपनी संस्कृति का परिचय दे रहे हैं बल्कि प्रदेश की शांत सौहाद्रपूर्ण पहचान को भी धूमिल कर रहे हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं। उन्होंने कहा है कि इससे पहले कवर्धा, फिर जशपुर, महासमुंद और राजधानी रायपुर में भी इस तरह की घटना होना यह बताता है कि प्रदेश सरकार से कांग्रेस के कार्यकर्ता भी खुश नहीं हैं तो जनता कैसे खुश रहेगी। भाजपा ऐसे प्रसंग पर जिस तरह की प्रतिक्रिया दे रही है, यह अवसर उसे कांग्रेस की ओर से ही उपलब्ध हुआ है।

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वैसे भाजपा भी कदाचित यह अनुमान नहीं लगा पाई है कि यह मामला सिर्फ यही नहीं है, जो सामने आया है। अगर भाजपा इस मामले की गहराई में झांक पाती तो वह इसे कांग्रेस में बड़े तूफान के संकेत की तरह महसूस करती और इसे उस स्तर की जंग के तौर पर प्रचारित करती, जिस स्तर के द्वंद्व का यह वाकया इशारा कर रहा है। सत्ता और संगठन में खींचतान भाजपा के राज में भी हुई थी, जब रेणुका सिंह मंत्री और शिवप्रताप सिंह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे। कलह इतनी बढ़ी कि रेणुका का विभाग लता उसेंडी को मिल गया था और शिवप्रताप की भी अध्यक्ष पद से बर्खास्तगी हो गई थी। ऐसे प्रसंगों के संदर्भ में कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है। तो क्या वही मंजर अब कांग्रेस में सम्भव है? राजनीति में सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल को जरूरी बताया जाता है लेकिन राज्यों के स्तर पर सत्ता ही संगठन पर भारी महसूस होती है। सत्ता काल में संगठन गौण और सत्ता प्रधान हो जाती है। संगठन का काम सत्ता के कामकाज का प्रचार प्रसार ही रह जाता है। दोनों के बीच छत्तीसगढ़ में यह अपेक्षित तालमेल अब तक बेहतरीन माना जाता रहा है। किंतु अब हालात बदले से नजर आने की शुरुआत हो गई, समझ में आ रही है। बिलासपुर कांग्रेस का द्वंद्व पहले भी चर्चित हो चुका है अब तो मुख्यालय में अध्यक्ष के सामने ही तमाशा हो गया। पीसीसी चीफ मरकाम ने अनुशासन का हंटर फटकार तो दिया है लेकिन यह रस्साकशी आगे चलकर नया विवाद खड़ा कर सकती है। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि ऐसा आभास हो रहा है कि आने वाले समय में संगठन में बदलाव हो सकता है।

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