अपने चहेतों को काम दिलाने जनप्रतिनिधियों और जिले के बड़े अधिकारियों ने रची साजिश…

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करोड़ों के काम बांटकर शासन को लगाया लाखों के राजस्व का चूना

साजिश… करोड़ों के काम लेने जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों समेत ठेकेदारों की चली मिलीभगत

जगदलपुर : बस्तर एक ऐसा क्षेत्र जो अपने अस्तित्व से लेकर आज तक जल जंगल जमीन और अपनी संस्कृति को बचाए रखने लगातार संघर्ष करता रहा है समय के साथ साथ इस क्षेत्र ने लगातार विकास के नए आयाम भी तय किए हैं सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रहे सभी दलों की यही मानसिकता रही है कि सत्ता की चाबी बस्तर से होकर ही गुजरती है यही वजह रही है कि बस्तर के विकास के लिए भी सरकारें लगातार गंभीरता दिखाती रहती है परंतु इस क्षेत्र के लोगों का दुर्भाग्य ही समझा जाना चाहिए कि जिन नेताओं और नौकरशाहों पर क्षेत्र के विकास की बड़ी जिम्मेदारी होती है वही लोग ही रक्षक ही भक्षक के कहावत को चरितार्थ करने में और आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभा रहे हैं

बस्तर को प्रतिवर्ष क्षेत्र के विकास के लिए डीएमएफटी फंड के रूप में करोड़ों रुपए आवंटित होते हैं जिनका इस्तेमाल क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए होने वाले कार्यों पर खर्च होना रहता है जिसकी जिम्मेदारी जिले के अफसरों पर होती है डीएमएफटी के माध्यम से प्राप्त होने वाली यह राशि क्षेत्र के खनिज संपदा के दोहन के बदले क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार उपलब्ध कराती है लेकिन इसी राशि का अधिकतर हिस्सा विकास कार्यों के नाम पर भ्रष्टाचार कर डकार लिया जाता है |

ऐसा ऐसा ही एक मामला संभाग मुख्यालय जगदलपुर से लगे ग्राम पंचायत आशना में देखने को मिल रहा है जहां पर पर्यावरण मंडल द्वारा निर्मित आसना मोटल को बस्तर जिला प्रशासन द्वारा आधिपत्य में लेते हुए इसका जीर्णोद्धार कार्य डीएमएफटी फंड की राशि के माध्यम से कराया गया जिसमें जनपद पंचायत जगदलपुर के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत आसना को निर्माण एजेंसी जिम्मेदारी सौंपी गई और करोड़ों की लागत से होने वाले इस पूरे काम के लिए आवश्यक नियमों को दरकिनार करते हुए आनन-फानन में ग्राम पंचायत को एजेंसी बना दिया गया कहीं ना कहीं जिले के बड़े अफसरों की लापरवाही को दर्शाता है जबकि नियमानुसार ग्राम पंचायत को 20 लाख रुपए से ज्यादा की कार्य करने का अधिकार ही नहीं है इस पूरे मामले में जिले के आईएएस जैसे बड़े पदों पर बैठे प्रशासनिक अधिकारियों ने विशेष दिलचस्पी दिखाई क्योंकि उन्हें आदिवासी संस्कृति के सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने की जल्दी रही और सत्ता पक्ष से संभवतः शाबाशी पाने की लालसा रही जिसकी वजह से करोड़ों की लागत से होने वाले कार्य को छोटे-छोटे काम दर्शाते हुए पंचायत को एजेंसी के रूप में कार्य करने की छूट दी गई |

इस पूरे मामले में क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और जिले के अफसरों ने कूट रचना रखते हुए अपने चहेते लोगों को काम दिलाने नियमों को शिथिल कर आनन-फानन में अनुभवहीन घटिया ठेकेदारों से भी काम कराने से गुरेज नहीं किया गया जिससे पूरे निर्माण कार्य पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं बस्तर एकेडमी ऑफ डांस एंड लिटरेचर (बादल)के नाम से बने इस पूरे परिसर में भ्रष्टाचार स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है आधे अधूरे निर्माण के बावजूद आनन-फानन में इसका जिला प्रशासन द्वारा बड़े ही तामझाम के साथ प्रदेश के मुखिया के माध्यम से उद्घाटन भी करा लिया गया है जबकि कई कार्य भी अधूरे पड़े हैं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ठेकेदारों को भी पूरी राशि की भुगतान कर दी गई है छोटे-छोटे कॉटेज के रूप में बनाए गए भवनों में निर्माण के चंद महीनों में ही दीवारों में पानी रिसने की बात कही जा रही है साथ ही साथ भवन के अंदर रेलिंग लगाने का कार्य भी अधूरा होना बताया गया है |

इस पूरे मामले में जनपद पंचायत जगदलपुर के अधिकारियों कर्मचारियों के अलावा साथ ग्राम पंचायत आसना के सरपंच और पंचायत सचिव और ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के इंजीनियरों की भूमिका संदेहास्पद है |

करोड़ों रुपए से होने वाले कार्य का मूल्यांकन मापदंडों को किनारे करते हुए किया गया है जिसमें काम पूरा होने के बाद भी इंजीनियर का तबादला भी कर दिया गया है इसके अलावा आशना के पंचायत सचिव का भी स्थानांतरण अन्यत्र कर दिया गया है वही कुछ दिनों बाद ही जनपद पंचायत जगदलपुर के सीईओ यतींद्र कुमार पटेल का भी रिटायरमेंट होना है ऐसी परिस्थिति में इस पूरे मामले में जांच की जगह पर पर्दा डालना लगभग तय है अब जांच भी कौन करें जब जिला प्रशासन की भूमिका ही इस पूरे मामले में शुरुआत से ही संदेहास्पद है |

अगर पूरे निर्माण कार्यों की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग अथवा ग्रामीण यांत्रिकी विभाग को स्वतंत्र एजेंसी के तौर पर सौंपी जाती तो विभाग भी ठेकेदारों से गुणवत्ता युक्त कार्य कराने को लेकर जवाबदार रहता और शासन को भी टेंडर के माध्यम से लाखों रुपए का राजस्व प्राप्त होता लेकिन जिले के भ्रष्ट अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के चलते शासन को चुना लगाया गया है जिसकी जांच करने वाला फिलहाल कोई नहीं है अब देखना यह है कि इस पूरे मामले में कोई जांच हो पाती है या भ्रष्टाचार के अन्य मामलों की तरह ही जांच के नाम पर सिर्फ फाइलें बनाकर बंद कर दी जाती है |