जगदलपुर। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने रायपुर जिला संगठन की बैठक में पार्षदों को सदस्य बनाने का जो टारगेट दिया है ,उसके बाद एक नई बहस छिड़ गई है क्या बस्तर जिले के पार्षदों पर भी यह लागू होगी? क्योंकि पार्षद चुनाव जीतकर ही महापौर व सभापति यह बने हैं किंतु अब उनकी संगठन में दिलचस्पी कम और सत्ता में भागीदारी बढ़ रही है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिम्बाल पर चुनाव लड़कर सत्ता सुख भोगने वाले पार्षद संगठनात्मक गतिविधियों में शामिल नहीं हो रहें हैं। महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि जैसे कार्यक्रमों से भी यह दूरी बना रहें हैं जबकि पार्षद बड़े नेताओं के पहुंचने पर उनके आगे पीछे घुमते रहते हैं। इस बात की शिकायतें सरकार की खुफिया एजेंसी सहित कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से शिकायत के रुप में पहुंच रही है। विगत राष्ट्रीय सचिव सप्तगिरी उल्का व चंदन यादव को फोटोग्राफ सहित शिकायत किया गया है। यह बात ब्लाक व जिला अध्यक्षों ने भी बताया कि सदस्यता अभियान से पार्षदों ने किनारा किया है और तो और फोन भी वह नहीं उठाते। इस मामले को प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने बड़ी ही गंभीरता से लिया है जिसके कारण रायपुर में संगठनात्मक बैठक में खड़ा संदेश देना पड़ा।
जगदलपुर के कांग्रेस पार्टी से जुड़े कुछ पदाधिकारियों ने बताया कि यहां भी स्थिति रायपुर की तरह है ,कुछ लोगों की ही दिलचस्पी कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक कार्यों में हैं। आप लाइन में भी दो दो बुक भी अभी तक पार्षद जमा नहीं कर पाए हैं और ऑनलाइन के लिए उन्हें मनोनीत भी नहीं किया गया है। कुछ पार्षद तो चौक चौराहा में कांग्रेस पार्टी की बुराई करते हुए भी देखे जा सकते हैं जिसका असर संगठन के दूसरे लोगों पर पड़ रहा है। पार्षद के सिंबल पर लड़ने वाले अब कार्यकर्ता बनाने में दिलचस्पी यहां भी नहीं दिखा रहे हैं जिसकी वजह से जगदलपुर में संगठनात्मक कार्य अध्यक्ष एवं ब्लॉक अध्यक्षों पर ही निर्भर हो गया है जबकि पार्षद ही महापौर और सभापति जैसे पदों पर शोभायमान है क्योंकि अप्रत्यक्ष प्रणाली से इस बार महापौर सभापति का चुनाव हुआ है। इसी प्रकार मनोनीत पार्षदों की भी यही स्थिति है वह भी सत्ता सुख भोग रहे हैं और संगठन के कार्यों की और उनकी दिलचस्पी नहीं है।