(अर्जुन झा)
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अभी अठारह महीने का वक्त बाकी है। प्रतिपक्ष भाजपा राजधानी में रणनीतिक बैठकों में व्यस्त है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रदेश की सभी 90 विधानसभा क्षेत्र की परिक्रमा के लिए भेंट मुलाकात अभियान में गांव, कस्बे, शहर में विकास की सौगात बांटने के साथ ही जनता के दुख दर्द दूर कर रहे हैं। बीते रोज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जब बस्तर के सुदूर अंचलों का दौरा करने के बाद कोंडागांव विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों की बरसात कर रहे थे तब राजधानी रायपुर में भाजपा के प्रदेश मुख्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर के सभागार में चल रही भाजपा कार्यसमिति की बैठक के समापन सत्र में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और छत्तीसगढ़ में तीन बार मुख्यमंत्री रहे दिग्गज नेता डॉ. रमन सिंह ने ऐसा उद्बोधन दे दिया, जिससे कांग्रेस की राह और आसान हो गई समझी जा रही है। डॉ. रमन सिंह के बयान को लेकर बस्तर के आखिरी छोर से लेकर चारों दिशाओं से छत्तीसगढ़ की सीमाओं तक भाजपा में बेचैनी बढ़ गई। भाजपा में खलबली मच गई कि आखिर डॉ. रमन सिंह ने ऐसा क्यों कह दिया जिससे भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाये। डॉ. रमन सिंह जैसे वरिष्ठ नेता से यह उम्मीद की जाती है कि वे पार्टी के आम कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाएं। अब तक वे ऐसा कर भी रहे थे। दूसरे चरण के नगरीय निकाय चुनाव के दौरान वे भूपेश बघेल सरकार के आला अफसरों को चेतावनी दे रहे थे कि हिसाब लिया जायेगा, भाजपा के कार्यकर्ता रजिस्टर में सब लिख रहे हैं।
खैरागढ़ उपचुनाव में भी उन्होंने खूब जोश दिखाया। लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने कथित तौर पर यह स्वीकार कर लिया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। वैसे यह सत्य है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। बीते विधानसभा चुनाव में चारों खाने चित्त हो गए। लोकसभा चुनाव में भाजपा की केंद्रीय रणनीति ने असर दिखा दिया, अन्यथा कोई खास उम्मीद नहीं रह गई थी। नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव में हारने के साथ ही सभी विधानसभा उपचुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी तो यह सबको पता है कि भाजपा की स्थिति कैसी है। स्थिति ठीक नहीं है तो उसे ठीक करना किसकी जिम्मेदारी है? डॉ. रमन सिंह ने 15 साल यहां भाजपा की सरकार का नेतृत्व किया है तो 2018 के चुनाव में जो स्थिति सामने आई, उसकी जिम्मेदारी किसकी है? माना कि हार के कारण कई थे लेकिन नेतृत्व करने वाले पर क्या यह जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि वह हालात में सुधार करने के लिए संघर्ष करे। चुनाव में संगठन का संघर्ष मायने रखता है तो हार के बाद से ही भाजपा ने अगले चुनाव के लिए संघर्ष का शंखनाद क्यों नहीं किया? डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा का गुलशन उजड़ा तो इसे फिर से खिलाने के लिए मेहनत किसको करना चाहिए? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जनता के बीच जा रहे हैं तो रमन सिंह को क्या भाजपा ने रोक रखा है कि वे जनता के बीच न जायें? यहां तो आलम यह है कि डॉ रमन सिंह ने कथित तौर पर कबूल कर लिया कि जो तीन बार भाजपा की सरकार बनी, उसमें वोटों के बंटवारे का हाथ था। यानि रमन सिंह ने जिन तीन सरकार का नेतृत्व किया, वे भाजपा की अपनी दम पर नहीं बनी थीं। सत्य को स्वीकार करना चाहिए लेकिन राजनीति में यह खयाल रखना चाहिए कि अपनी कमजोरी को इस तरह उजागर न किया जाय कि भविष्य की सारी उम्मीद ही धूल में मिल जाये। डॉ रमन सिंह परिपक्व राजनेता हैं। वे राजनीति के तमाम दांवपेंच जानते हैं। इसके बावजूद यदि वे ऐसे बयान दे रहे हैं तो इसके पीछे गंभीर कारण होने से इंकार नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लगातार बढ़ती सक्रियता और लोकप्रियता के कारण वे निराश हैं अथवा चुनावी चेहरा न बनाने से उनका मन खिन्न है, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि रमन सिंह के बयान से ऐसा लग रहा है कि उन्होंने चुनाव के काफी पहले ही अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को हताश कर दिया है।