नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छत्तीसगढ़ में राजस्थान सरकार की खनन परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी के खिलाफ आवेदन को, योग्यता और महत्व की कमी के कारण खारिज कर दिया है। राजस्थान सरकार के तीन महत्वपूर्ण कोल ब्लॉकों के लिए रास्ता साफ करते हुए, एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि ‘आवेदक द्वारा कोई भी सुसंगत सफाई दी नहीं गयी है।’
राजस्थान सरकार को लगातार उन विरोधियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो भारत के सबसे बड़े कोयला उत्पादक राज्य, छत्तीसगढ़ में खनन परियोजनाओं के लिए कानूनी बाधाएं पैदा करना चाहते हैं। स्टेट यूटिलिटी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को लगभग एक दशक पहले, परसा पूर्व और केंते बासन ब्लॉक के लिए पर्यावरण मंजूरी मिली थी, जो पहले से ही सालाना करीब 15 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर रहा है। हालांकि, निहित स्वार्थ वाले लोग, करीब 5,000 लोगों के लिए रोजगार का स्रोत बने इस विकास परियोजना को, पटरी से उतारने के लिए निरर्थक मामले दर्ज कर रहे हैं।
एनजीटी का यह अनुकूल आदेश, आरआरवीयूएनएल के लिए एक और जीत है, जिसने हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के समक्ष अपने ब्लॉक के खिलाफ पांच मामले जीते हैं। यह पांच केस भी माननीय कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पास कोई विधिमान्य दलील ना होने के कारण खारिज कर दी थी। राजस्थान हाई कोर्ट के पांच निर्णयों के साथ अब एनजीटी के भी सकारात्मक आदेश से, कथित आंदोलनकारीओ की मंशा को धक्का भी पहुंचा है और अब सरगुजा जिले में महत्वपूर्ण माइनिंग परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा सकेगा।
वर्तमान में, राजस्थान अपनी आधी कोयला जरूरतों को छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित अपने निजी पीईकेबी ब्लॉक से पूरा करता है, और अब वह दो अन्य परसा ब्लॉक और केते एक्सटेंशन ब्लॉक से भी कोयला उत्पादन शुरू करने की भी योजना बना रहा है। यह आदेश राजस्थान को परसा और केते एक्सटेंशन ब्लॉक के लिए माइनिंग प्रोजेक्ट्स की योजनाओ को भी आगे बढ़ाने में मदद करेगा। एक बार पूरी तरह से चालू होने के बाद, आरआरवीयूएनएल के तीन प्रोजेक्ट्स, छत्तीसगढ़ सरकार को महत्वपूर्ण टैक्स और रॉयल्टी राशि का योगदान देने के अलावा, लगभग 25,000 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करेंगे।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा, “आवेदन की शिकायत वर्ष 2011 और 2012 में दी गई पर्यावरण मंजूरी और पर्यावरण मंजूरी के बाद के पुनर्वैधीकरण से संबंधित है, जिसे एमओईएफ और सीसी द्वारा आदेश 25.06.2015 के तहत जारी किया गया था। इसमें आवेदक द्वारा कोई भी सुसंगत सफाई दी नहीं गयी है और पर्यावरण मंजूरी को चुनौती नहीं दी गई है।”
सरगुजा की उदयपुर तहसील में कोयला खनन के अनुदान को चुनौती देने के लिए भोपाल की एनजीटी की केंद्रीय जोनल बेंच के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था। जिसमे लोकल इकोलॉजी के हित में एक्सपर्ट कमेटी का गठन करके, अन्य लोगों के बीच कोल प्रोजेक्ट्स की मंजूरी को रद्द करने की मांग की थी । एनजीटी ने पाया कि आवेदन पोषणीय नहीं है क्योंकि न तो किसी प्रकार की सामग्री का खुलासा नहीं किया गया है और न ही पर्यावरण मंजूरी को चुनौती दी गई है।