भाजपा में बिल्ली के भाग से सींका टूटने का इंतजार…

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जगदलपुर/रायपुर (अर्जुन झा)। छत्तीसगढ़ की सियासत में अब धीरे -धीरे भाजपा सत्ताधारी कांग्रेस से आमने – सामने की लड़ाई लड़ने की तैयारी करती दिख रही है। लेकिन दोनों ही दलों की दिक्कत यही है कि पार्टी में उपेक्षित अथवा किनारे किये जा रहे नेता और कार्यकर्ता धीमी गति के जंगजू नज़र आ रहे हैं। इस सियासी वायरस का शिकार अब सत्तादल भी होने लगा है और विधानसभा चुनाव के अभी दो वर्ष भी पूर्ण नही हुए हैं कि दोनों ही जगह हतोत्साहित कार्यकत्ताओं तथा नेताओं की कतार लगने लगी है। इस कारण नेतृत्वकर्ता सीधी कार्यवाही करने से बच रहे हैं। पार्टी के प्रमुख नेतृत्वकर्ता मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधान सभा अध्यक्ष.डा. चरणदास महंत, मंत्री टीएस सिंह देव , वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा , वरिष्ठत नेता मोती लाल वोरा तथा प्रभारी महासचिव पीएल पुनिया अपने अपने पंसदीदा लोगों को संसदीय सचिव व निगम मंडलों में नियुक्त कराने में सफल हुए हैं | लेकिन पार्टी के प्रति निष्ठावान प्रतिवद्ध और अनुभवी लोग उपेक्षा के शिकार हो गये क्योंकि कांग्रेस में व्यक्तिनिष्ठा रखने वालों को ही प्रश्रय दिया जाता है၊ परन्तु सत्तादल में मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, प्रभारी महामंत्री तथा मंत्री द्वय टी एस. सिंह देव, मोहम्मद अकबर सत्ता प्रतिष्ठान के प्रमुख सिपहसलार व भागीदार बनकर उभरे हैं। प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह, प्रभारी संगठन मंत्री सौदान सिंह, नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक तथा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु देव साय की चौकड़ी न तो आक्रमक भूमिका में है और न ही उनमें वो तीखापन है, जो विपक्षी दल के नेतृत्वकत्ताओं में होना चाहिए ၊ हलांकि दिग्गज भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल ने भुपेश सरकार के विरुद्ध सत्ता पार्टी के अन्दर के ही आक्रोश का खुलासा कर भाजपा द्वारा भूपेश सरकार पर पैनी निगाह रखे जाने की तरफ इशारा कर सत्तादल के अन्दर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी। परन्तु राजस्थान और मध्य प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रमों से सबक लेते हुए मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने विधायकों और अपने समर्थकों को संसदीय सचिव व निगम मंडलों में नियुक्ति कर भाजपा की सेंधमारी करने के किसी भी तरह के प्रयासों पर पूर्ण विराम लगाने का राजनीतिक व कूटनीतिक प्रयास किया है।
पिछले दिनों रायपुर आकर भाजपा के वरिष्ठ नेता, रायगढ़ के भूतपूर्व सांसद नन्दकुमार साय ने जब यह कहा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा का नेतृत्व ओजपूर्ण नहीं है तो उससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि जब कोई नेता उपेक्षित चल रहा हो तो सबका ध्यान आकर्षित करने के लिए वो पार्टी के अन्दर की कमजोर नस पर हाथ रखने के लिए कुछ इसी तरह का बयान देता है। आश्चर्य तो तब हुआ कि पूरी भाजपा को कठघरे में खड़े करने के बाद उनके गृह जिले जशपुर और रायगढ़ जिले में भाजपा से श्री साय के बयान को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। ऐसी स्थिति में क्या यह न समझा जाये कि भाजपा ने उनके बयान को स्वीकार कर लिया है ? इसी प्रकार जशपुर और रायगढ़ जिले में कांग्रेस ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन कांग्रेस ने भाजपा के ऊपर गोले दागने का सुनहरा अवसर गंवा दिया । दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इशारे के बिना बयान देना भी प्रवक्ता गण उचित नहीं समझते हैं၊नन्दकुमार साय के इस तरह का बयान दिए जाने के पीछे यह तुलना करना था व बताना था कि प्रतिपक्ष में रहते हुए उन्होंने प्रदेश में सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई थी और विधानसभा का घेराव करने के दौरान पुलिस की लाठी की मार से उनका पैर टूट गया था और वे पैर पर प्लास्टर चढ़ा रहने के बावजूद बैसाखी के सहारे पूरे प्रदेश में घूमे थे लेकिन भाजपा की सर्व१ाक्तिमान चौकड़ी विपक्ष की भूमिका ठीक से नही निभा रही है।
छ्त्तीसगढ भाजपा के अन्दरखाने सौदान सिंह को लेकर फिर सुगबुगाहट है। भाजपा में श्री सिंह को लेकर एक बहुत बड़ा वर्ग असहज है क्योंकि उन्होंने छ्त्तीसगढ़ भाजपा को एक चौकड़ी के हवाले कर दिया है और वे इसी चौकड़ी के निर्माता, निर्देशक और संरक्षक की भूमिका पिछले दो दशक से निभा रहें है। श्री सिंह की मेहरबानी का भरपुर लाभ भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. रमनसिंह, महामंत्री सांसद सरोज पाण्डे, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कौशिक और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु देव साय को मिलता रहता है। वे २० वर्षो से प्रदेश भाजपा के नीति निर्धारक हैं। जो देश में एक नया रिकार्ड है। उनके छत्तीसगढ़ प्रेम को लेकर भी नये पुराने किस्से कहानियां हवा में तैरती रहती हैं। भाजपा की रमन सरकार के समय तो विदिशा में उनके द्वारा निर्मित महलनुमा निवास को लेकर भी खूब चर्चा हुई है और कुछ समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित भी हुआ। भाजपा में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो सौदान सिंह और रमन सिंह को प्रदे१ा में पार्टी की बुरी तरह पराजय और दुर्दशा के लिए जिम्मेदार मानते हैं၊ भाजपा में कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में सौदान सिंह अंगद के पांव की तरह जमे रहेंगे। क्योंकि उनको हिलाने -डुलाने की हिम्मत भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी नहीं कर सकता। यही कारण है कि छ्त्तीसगढ़ में जिलाध्यक्षों जिसमें दुर्ग, भिलाई, रायपुर शहर, रायपुर. ग्रामीण भी शामिल है, की घोषणा नहीं हो रही है। परन्तु भाजपा अपनी वर्तमान दुर्दशा से सबक नही लेकर सत्तादल के अन्दर असंतोष उभरने और बगाबती तेवर उभरने की प्रतीक्षा करने में लगी है। क्योंकि दोनों सिंहों की जुगल जोड़ी और सरोज पाण्डे की सहमति के बिना भाजपा में पत्ता भी नहीं हिल सकता है? हलांकि पिछले दिनों भाजपा के दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल और सांसद सरोज पाण्डे ने कांग्रेस के अन्दरूनी असंतोष को लेकर तो बकायदा बयान ही जारी किया है। देखना होगा कि सत्तादल के अन्दर पनप रहा असंतोष क्या रंग लाता है और भाजपा उसका किस तरह फायदा उठाती है?
छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिवों, प्राधिकरणों, निगम, मंडलों में नियुक्ति के बीच ही अविभाजित म.प्र. के मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की अचानक यात्रा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, छग सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी.एस. सिंहदेव से अलग अलग मुलाकात तथा पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी की पत्नी विधायक डॉ. रेणु जोगी और अमित से मुलाकात की छग के राजनीतिक हल्को में चर्चा है। बहरहाल छत्तीसगढ़ में भी मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम की पुनरावृत्ति हो सकती है। ऐसी भविष्यवाणी पहले भाजपा सांसद सरोज पांडे, फिर प्रेम प्रकाश पांडे के बाद हाल ही में वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने की है। इसकी पुष्टि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने कुल 69 विधायकों में से 45 को पद देकर उपकृत करने से भी हुई है । मुख्यमंत्री सहित 12 तो मंत्रिमंडल में शामिल हैं, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत एवं उपाध्यक्ष मनोज मंडावी भी कांग्रेस से ही हैं। 15 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया है। 6 विधायकों को प्राधिकरणों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनाया है तो 4 विधायकों को निगम-मंडल में समायोजित किया है। इसके पहले 6 विधायकों को बस्तर तथा सरगुजा विकास प्राधिकरण में शामिल किया है। इस तरह 69 में 45 विधायक पदों पर हैं, संसदीय सचिवों को छोड़कर बाकी विधायकों को कबीना- राज्यमंत्री का दर्जा भी हासिल है। वहीं निगम-मंडल की एक और सूची भी प्रस्तावित है उसमें भी कुछ विधायकों को समायोजित करने की चर्चा है।हलांकि मात्र 14 विधायको को लेकर भाजपा म.प्र. तथा राजस्थान की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी उम्मीद पालें बैठे हैं। वर्तमान में कांग्रेस के पास 69 विधायक हैं, 14 भाजपा तथा 6 जोगी-बसपा के विधायक हैं, मरवाही विधानसभा अजीत जोगी के निधन के बाद रिक्त है। यदि कांग्रेस के पद पाये 45 विधायकों को छोड़ दिया जाए तो बचते हैं 24 विधायक। यदि जोगी कांग्रेस-बसपा भी भाजपा को समर्थन कर दे तो भी भाजपा के पास कुल संख्या होगी 44 जो पर्याप्त नहीं है। वैसे भाजपा को उम्मीद है कि कांग्रेस नेताओं के असंतोष का लाभ लेकर फायदा उठाया जाए । फिलहाल तो ऐसी गुंजाइश दिखाई नहीं दे रही है पर भाजपा नेताओं के लगातार भूपेश सरकार के स्थायित्व पर लेकर बयानबाजी को हल्के में भी नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि जब आग जलती है तभी धुंआ दिखता है?
भाजपा की रमन सिंह सरकार के समय संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक जाने वाली कांग्रेस ने संसदीय सचिव बना दिये । प्रकरण अभी भी सर्वोच्य न्यायलय में लम्बित ह्रै। यह बात और है कि इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा नहीं रहेगा। संसदीय सचिव न तो मंत्रालय में बैठेंगे, ना ही किसी सरकारी फाइल में ही हस्ताक्षर करेंगे। न ही कोई निर्णय कर सकेंगे। उन्हें अपने विभागीय मंत्री पर ही निर्भर रहना होगा। एक बात और है कि कुछ निगम-मंडल के अध्यक्ष -उपाध्यक्ष को जरूर मंत्री का दर्जा हासिल होगा पर संसदीय सचिव चूंकि विधायक होते हैं इसलिए प्रोटोकाल में उनका दर्जा ऊपर होगा। बस जो विधायक किसी मंडल- निगम के अध्यक्ष बने हैं उन्हें प्रोटोकाल के हिसाब से संसदीय सचिव से ऊपर का दर्जा हासिल होगा।
दरअसल संसदीय सचिवों की परंपरा ब्रिटिश हाऊस ऑफ कामन्स से चली आ रही है। आजादी के बाद कुछ प्रदेशों की मंत्रिमंडल में कबीना मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री तथा संसदीय सचिव इस तरह 4 स्तरीय परंपरा होती थी। पहले मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या निर्धारित नहीं होती थी पर संविधान के संशोधन 91 में बने। अधिनियम 2003 में यह प्रावधान किया गया कि अनुच्छेद 75 की धारा (1) में कुछ धाराएं जोड़ी गई जिसमें 1 ए के अनुसार मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या सदन की संख्या से 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। यह संशोधन गृह विभाग की स्थायी समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया। इसमें 12 मंत्रियों की संख्या सिर्फ मिजोरम, सिक्किम और गोवा के लिए थी क्योंकि इन विधानसभाओं की सदस्य संख्या ही 40 है। दरअसल भारी मंत्रिमंडल राजकोष पर अनावश्यक भार के कारण जनता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था इसलिए सभी राजनीतिक दल संविधान संशोधन से सहमत दिखे और यह पारित भी हो गया। छग में 68 विधायक जीतने (उपचुनाव में एक बढऩे के बाद 69) के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री से मंत्रिमंडल की तय सीमा 15 से 20 प्रतिशत करने का अनुरोध भी किया था पर ऐसा संभव नहीं है। इसीलिए विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर किसी तरह समायोजित किया गया है। यह बात और है कि केवल सरकारी बंगला, गाड़ी तथा सुरक्षा कर्मी के दायरे संसदीय सचिव बनने पर विधायकों को मिल गया।
चलते-चलते
गत दिनों मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमत्री सांसद दिग्विजय सिंह निज प्रवास पर रायपुर आये।वे पूर्व मुख्यमत्री स्व. अजीत जोगी के पारिवार से भी मिले और संवेदना प्रकट की। श्री सिंह की यह पहल उनके श्रेष्ठ आचरण और भारतीय परम्परा का पोषण करता है। हलांकि जोगी परिवार के साथ उनके सम्बन्धों में भी बदलाव संभव है, जिसका संकेत अमित जोगी ने अपने ट्वीट से दे दिया है।
इधर मरवाही विधानसभा से प्रस्तावित उपचुनाव में अमित जोगी के चुनाव लडने का रास्ता साफ हो गया है क्योंकि हाईकोर्ट ने नंदकुमार साय और संतकुमार नेताम की जोगी की जाति को लेकर लगाई याचिका खारिज कर दी है। अब जोगी की जाति को लेकर जारी विवाद समाप्त हो गया है। अतः अब देखना शेष है कि जोगी कांग्रेस् की दिशा क्या होगी?
छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता पूर्व केन्द्रीय मत्री स्व. विद्याचरण शुक्ल के दोनों बहुचर्चित लख्ते जिगर राजेन्द्र तिवारी और सुभाष घुप्पड़ को महत्वपूर्ण निगम/ मंडल में नियुक्त कर भूपेश सरकार ने कांग्रेसियों को एक तगड़ा संकेत दिया है। दोनों ही नेता राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले स्व अर्जुन सिंह के घोर विरोघी रहे हैं और अनेक अवसरों पर उन्हें निज तौर पर अपमानित करने की हद तक से गुजरते रहे है। राजेन्द्र तिवारी को आखिर कम प्रभाव वाला निगम-मंडल क्यों सौंपा गया है? वहीं उनके साथी रह चुके सुभाष धुप्पड़ जरूर रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के तौर पर प्रभावशाली बनकर उभरे हैं ।
छत्तीसगढ़ की राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में निगम – मंडलों में अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति वाली सूची का इन्तजार हो रहा है ၊ बताया गया है कि प्रभारी महामंत्री पी एल पुनिया ने बड़ी मेहनत करके सूची तैयार की है और उसकी स्वीकृति के लिए. कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को सौंपा गया है। इसके सामने आने के बाद ही अन्दाजा लगाया जा सकेगा कि कांग्रेस की आगे की रणनीति और राजनीति क्या है?