इन दिनों पूरे सेल में कर्मचारियों के बोनस को लेकर गहमागहमी बनी हुई है। प्रबंधन एक तरफ अपने कर्मचारी विरोधी रवैया को लेकर अडिग है और विगत वर्ष कंपनी के कर पूर्व रूपए 16,039 करोड़ एवं कर पश्चात रूपए 12,015 करोड़ के लाभ होने के बावजूद केवल रूपए 26,000/- बोनस अथवा एक्स ग्रेशिया के नाम पर कर्मियों को देने की बात कर रहा है। वहीँ दूसरी तरफ NJCS में शामिल विभिन्न श्रम संगठनों द्वारा जो मांगें रखी गयीं है वो इस प्रकार से हैं – (1) भा.म.सं. द्वारा S-01 और S-11 के एक महीने का औसत वेतन अर्थात लगभग रूपए 70,000/- (2) एटक द्वारा लाभ का 5%कर्मियों के बीच बांटने की मांग की गयी। (3) इंटुक द्वारा पिछले वर्ष से चार गुना अर्थात रूपए 84,000/-। (4) सीटू द्वारा पिछले वर्ष का तीन गुना अर्थात रूपए 63,000/ (5) एचएमएस द्वारा इंटुक की तरह मांग की गयी है। विगत दो बैठकों में NJCS में शामिल सभी श्रम संगठनों के केंद्रीय नेताओं ने आपस में बैठकर सहमति जताते हुए दिनांक 24.09.2022 को हुए बैठक में रूपए 45,000/- की आखरी मांग की जिसपर असहमति जताते हुए प्रबंधन ने दिनांक 10.10.2022 को पुनः बैठक रखने की बात की।
उक्त बैठक के उपरान्त प्रबंधन के इस कर्मी विरोधी रवैये एवं परम्परानुसार दुर्गा पूजा के पूर्व बोनस अथवा एक्स-ग्रेशिया राशि न मिलने से प्रत्येक इकाई में कर्मियों के बीच सेल प्रबंधन एवं अधिकारीयों को लेकर आक्रोश है और कहीं कहीं तो धरना प्रदर्शन एवं काम बंद करने की भी बात सामने आ रही है। इस तारतम्य में आज दिनांक 28.09.2022 को राजहरा खदान समूह में भी एटक, सीटू और सीएमएसएस द्वारा कुछ समय के लिए काम बंद करते हुए विरोध प्रकट किया गया। इस सम्बन्ध में भा.म.सं. की तरफ से बात रखते हुए खदान मजदूर संघ भिलाई के अध्यक्ष (केंद्रीय) एम.पी.सिंह ने स्पष्ट कहा कि जब किसी भी मुद्दे पर कोई चर्चा चल रही है तो ऐसे में उक्त मुद्दे को लेकर धरना-प्रदर्शन, हड़ताल करना या फिर काम बंद करना पूर्णतः गलत है और मात्र दिखावा के सिवाय और कुछ नहीं है। इससे पहले भी एक दो बार पूजा के बाद ही बोनस का भुगतान हुआ है ऐसे में इस बार अगर देर हो रही है और वार्ता जारी है तो फिर हड़ताल या काम बंद करने का क्या औचित्य है? वैसे भी स्थानीय स्तर पर सीटू/एटक आदि के नेतागण कर्मियों को सिवाय बरगलाने के और कुछ नहीं करते हैं। स्थानीय स्तर पर इनके द्वारा जो राशि मांगी जाती है उससे कहीं बहुत कम पर इनके ही केंद्रीय नेतागण NJCS में प्रबंधन के सामने घुटने टेक देते हैं। वेतन समझौता के समय भी जब सर्वसम्मति से 28% पर्क्स पर सभी नेताओं ने सहमति जताई थी तब बाहर आकर एटक और इंटुक ने 26.5% पर्क्स पर सहमति जताते हुए MOU पर हस्ताक्षर कर दिए और तर्क ये दिया कि पहले ही बहुत देर हो गयी थी इसलिए 26.5% पर तैयार हो गए। लेकिन इस बात का जवाब इन नेताओं के पास नहीं था कि जब कर्मी 05 साल तक एक बेहतर वेतन समझौते के लिए इन्तजार कर सकता है तो फिर क्या 28% पर्क्स के लिए कुछ समय और इन्तजार नहीं कर सकता था?
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इस पूरे प्रक्रिया में सबसे दोहरा चरित्र का परिचय सीटू ने दिया। उसने एक तरफ तो MOU पर हस्ताक्षर नहीं करते हुए विरोध करने का ढोंग किया तो दूसरी तरफ सब-समिति में प्रतिनिधि भेजकर MOU को स्वीकार कर लिया। जवाब मांगने पर सीटू के नेताओं ने कहा कि वार्ता में भाग लेकर ही अपनी बात रखी जा सकती है। ऐसे में हस्ताक्षर न करने का ढोंग क्यों किया गया इसका कोई जवाब आज तक सीटू के नेताओं ने नहीं दिया। अगर सीटू के नेताओं की बात मान ली जावे तो इन्ही के नेताओं और प्रबंधन ने अगली चर्चा के लिए पहले ही 10.10.2022 का तारीख तय कर दिया है। ऐसे में आज काम रोक कर इनके द्वारा जो किया गया है वो दरअसल में देश, कंपनी और कर्मियों के हितों के विपरीत है। अगर ये प्रबंधन पर अपने इस कार्य से कोई दवाब बनाना चाहते हैं तो इसके लिए पहले वे अपने उन शीर्ष नेताओं से बात कर उनपर दवाब बनाएं कि अगर सचमुच में उनके संगठन और उनके नेतागण NJCS में कर्मियों का हित चाहते हैं तो अपने द्वारा किये गए मांग पर पहले अडिग रहना सीखें। स्थानीय स्तर पर दिखावे और आने वाले चुनाव में वोट हासिल करने के लिए अनाप शनाप मांगें रखकर कर्मियों को बरगलाना छोड़ें या फिर अपने केंद्रीय शीर्ष नेताओं से स्पष्ट कहें कि जो मांगें उनके द्वारा प्रबंधन से की जा रही हैं उससे पीछे हटने के लिए वे तैयार नहीं हैं। पिछले वेतन समझौते में भी एक तरफ इनके नेताओं ने बायो मीट्रिक सिस्टम से हाजिरी के लिए लिखित सहमति दे दी तो स्थानीय स्तर पर दिखावा करते हुए इन्ही श्रम संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू किया लेकिन अपने नेताओं से ये नहीं पुछा कि ऐसा समझौता इन्होने क्यों किया?
जहाँ तक भा.म.सं. की मांग का प्रश्न है तो भा.म.सं की मांग स्पष्ट है किन्तु NJCS में अपने सहयोगी श्रम संगठनों के प्रबंधनपरस्त नेताओं के द्वारा वेतन समझौते के दौरान कर्मियों के साथ किये गए विश्वासघात से आहत होकर भा.म.सं. इस बार ज्यादा मुखर नहीं हो रहा है किन्तु उसका एक मत स्पष्ट है कि कर्मियों के हितों के साथ अगर इस बार भी ये नेतागण अपने प्रबंधनपरस्ती का परिचय देने का प्रयास करेंगे तो संघ चुप नहीं बैठेगा। वैसे भी इन श्रम संगठनों द्वारा किये गए विश्वासघात से कर्मियों को हुए नुकसान के भारपाई हेतु संघ माननीय ओडिशा उच्च न्यायलय में वाद दाखिल कर चुका है साथ ही प्रबंधन द्वारा कर्मियों के लिए किये गए ग्रेचुइटी सीलिंग के विरुद्ध भी माननीय ओडिशा उच्च न्यायलय में वाद दायर कर चुका है जिसपर सुनवाई की प्रक्रिया जारी है। ऐसे में सीटू द्वारा स्थानीय स्तर पर माननीय उप-मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर के कार्यालय में औद्योगिक विवाद दायर करने की बात कहना और उसे अखबार के माध्यम से प्रचारित करना कर्मचारियों को सिवाय बरगलाने के और कुछ नहीं है। पूर्व में भी इसी सीटू ने यह प्रचारित किया था कि उसके द्वारा ग्रेचुइटी सीलिंग के विरुद्ध कोलकत्ता हाई कोर्ट में वाद दायर की गयी है जो कि आज तक नहीं की गयी। ऐसे में यह सोंचने की बात है कि जब कोई प्रकरण माननीय उच्च न्यायलय में लंबित है तो उसी प्रकरण को उससे नीचे के किसी भी अदालत में कैसे दायर की जा सकती है?
भारतीय मजदूर संघ का स्पष्ट मानना है कि आज सेल में कर्मियों के हितों पर जो लगातार कुठाराघात हो रहा है उसके पीछे केवल दो मुख्य वजह हैं – (1) अधिकारीयों द्वारा खुलेआम किया जा रहा भ्रष्टाचार (2) श्रम संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा इसकी जानकारी होने के बावजूद चुप रहना। एम.पी.सिंह ने कहा कि अगर भा.म.सं ये आरोप लगा रहा है तो उसके पास इन आरोपों के समर्थन में पर्याप्त सबूत हैं। आये दिन समाचार पत्र में देखने को मिलते रहता है कि सेल के किसी इकाई के डायरेक्टर इंचार्ज तो कभी अधिशासी निदेशक तो कभी महाप्रबंधक स्तर के अधिकारीयों को CBI या CVC द्वारा भ्रष्टाचार के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है। राजहरा खदान समूह में भी भा.म.सं. ने भ्रष्टाचार का एक ऐसा प्रकरण उजागर किया जिसमें अट्ठारह महीने में रुपये 57,54,836.38 के ठेके में प्रबंधन के सहायक महाप्रबंधक स्तर से लेकर महाप्रबंधक स्तर के अधिकारीयों ने ठेकेदार के साथ मिलकर कंपनी के रुपये 11,83,976.55 का गबन किया। गबन की गयी उक्त राशि ठेके की कुल लागत का 20.5% है। संघ द्वारा लगाए गए उक्त आरोप सिर्फ आरोप ही नहीं हैं बल्कि गबन और भ्रष्टाचार के इस मामले के विरुद्ध संघ ने माननीय बिलासपुर उच्च न्यायलय में जनहित याचिका और रिट पेटिशन के माध्यम से वाद भी दायर की है। उक्त जनहित याचिका के जवाब में प्रबंधन के वकील ने भी यह स्वीकार किया कि सम्बंधित अधिकारी द्वारा उक्त गबन किया गया और संघ की शिकायत के उपरान्त प्रबंधन ने सम्बंधित अधिकारीयों के विरुद्ध कारवाई करते हुए किसी का एक इन्क्रीमेंट रोका है तो किसी को एडवाइजरी पत्र दिया गया है। किन्तु प्रबंधन के इस दलील से संघ सहमत नहीं है और उसके द्वारा माननीय उच्च न्यायलय से यह अपील की गयी है कि न केवल इस भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारीयों के विरुद्ध IPC की विभिन्न धाराओं के तहत FIR दर्ज की जावे बल्कि विगत पांच वर्षों में खदान में हुए समस्त मैन-पावर के ठेकों की भी एक स्वतंत्र समिति बनाकर जांच की जावे क्योंकि वर्तमान प्रकरण में बीएसपी के विजिलेंस विभाग के अधिकारीयों की भूमिका भी संदिग्ध रही है।
संघ का यह स्पष्ट मानना है कि आज सिर्फ राजहरा के खदानों में ही एक साल में एक से दो अरब या इससे अधिक का ठेका होता है। इन सभी ठेकों को ठेकेदार द्वारा विभागीय रेट से 15%-25% कम दर पर लिया जाता है और सफलता पूर्वक पूर्ण भी कर लिया जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर 15%-25% कम दर पर ठेका लिया जाता है तो फिर ठेकेदार लाभ कैसे कमाता है? इस प्रश्न का जवाब है गबन और भ्रष्टाचार का वह खेल जो यहाँ के अधिकारीगण ठेकेदार के साथ मिलकर खेल रहे हैं जिसका जीता जागता उदाहरण है माननीय उच्च न्यायलय में चल रहा प्रकरण और प्रबंधन की स्वीकारोक्ति। ऐसे में अब कर्मीगण और आम जनता खुद तय कर ले कि अगर सिर्फ राजहरा में ही एक साल में विभिन्न ठेकों के माध्यम से 300-400 करोड़ का गबन और भ्रष्टाचार हो रहा है तो पूरे सेल में क्या हो रहा होगा? सभी श्रम संगठन के नेताओं को इन बातों की जानकारी है लेकिन उनकी चुप्पी यही साबित करती है कि संभवतः इन श्रम संगठनों के स्थानीय स्तर से लेकर केंद्रीय स्तर तक के नेताओं को उनका समुचित हिस्सा मिल जाता है और इसीलिए यह चुप रहते हैं। भ्रष्टाचार के माध्यम से गबन किये गए ये पैसे आखिर किसके हैं? ये पैसा भी कर्मचारियों और श्रमिकों का है जो कि गबन किया जा रहा है। इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 2015-2017 तक भी सेल अगर घाटे में था तो उसका मुख्य वजह केवल और केवल यही भ्रष्टाचार था जिसका खामियाजा आम कर्मियों को भुगतना पड़ा लेकिन वेतन समझौते के समय NJCS में अन्य श्रम संगठनों के नेताओं ने प्रबंधनपरस्ती का परिचय देते हुए कर्मियों को उनके वाजिब हक से वंचित रखने का काम किया और आज भी काम बंद करके, हड़ताल करने की बात करके कर्मियों को केवल बरगलाने का काम कर रहे हैं और यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे ही कर्मियों के सच्चे हितैषी हैं। अंत में उन्होंने सभी कर्मियों से ऐसे प्रबंधनपरस्त और भ्रष्टाचार में सहयोगी श्रम संगठनों से कर्मियों को आगाह करते हुए कहा कि वे ऐसे नेताओं के बहकावे में आकर काम बंद करने, हड़ताल करने आदि जैसे कार्य में संलिप्त न हों। और नेताओं से ये जरूर पूछें कि पिछली जितनी भी हड़तालें ईनके द्वारा की गई है उसमें से नियमित कर्मचारियों की कितनी मांगें पूरी हुई है? आप सभी को पता है जब भी ईस तरह की हड़ताल हुई है खदान के भ्रष्ट ठेकेदार को ही लाभ हुआ है न कि किसी नियमित कर्मचारी को? अब आपको तय करना है कि राजनीति से प्रेरित हड़ताल में शामिल होना है कि नहीं।