कांग्रेस वर्सेज आरएसएस होगा चुनाव

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  • छत्तीसगढ़ में बड़ी ही मजबूत पैठ बना चुका है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
  • संघ के बड़े नेताओं के छ्ग प्रवास के बाद जुट गए मैदानी कार्यकर्त्ता
  • भाजपा की खोई हुई साख को लौटाने के लिए कवायद हुई तेज

अर्जुन झा

जगदलपुर : छत्तीसगढ़ विधानसभा का अगला चुनाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वर्सेज कांग्रेस होगा. राज्य में लगातार दस साल तक शासन कर चुकी भाजपा को पिछले चुनाव में मिली करारी हार की भरपाई इस दफ़े के विधानसभा चुनावों में आरएसएस के दम पर करने की तैयारी चल रही है. यह कदम कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत का सबब बन सकता है.छत्तीसगढ़ में आरएसएस काफ़ी गहरी जड़ें जमा चुका है. हाल ही में हुए आरएसएस के बड़े नेताओं के छ्ग प्रवास के बाद इस संगठन की सभी ईकाइयों के मैदानी कार्यकर्ताओं की सक्रियता काफ़ी बढ़ गई है. ख़ासकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्वयं सेवकों की सक्रियता देखी जा सकती है. छत्तीसगढ़ वनवासी और आदिवासी बहुल राज्य है. छ्ग के बस्तर, सुकमा, कांकेर, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, बालोद, कवर्धा, राजनांदगांव, कोरिया, जशपुर, सरगुजा, मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी, सरगुजा व कुछ अन्य जिले आदिवासी बहुल हैं. यही जिले इस सूबे की सत्ता की दशा और दिशा तय करते हैं. इस राज्य की सत्ता की चाबी वनवासियों और आदिवासियों के हाथों में ही रहती है. सत्ता – शीर्ष तक पहुंचने के लिए इन दोनों वर्गों के मतदाताओं को साधना जरुरी होता है. इसी को केंद्र में रखते हुए भाजपा ने आगामी चुनावों में आरएसएस के कंधे पर सवार होकर सत्ता शीर्ष तक पहुंचने की मंशा पाल रखी है. जानकारों का कहना है कि ऐसे हालात में छत्तीसगढ़ की सत्ता सम्हाल रही कांग्रेस को चुनौतियों से जूझना पड़ सकता है. भाजपा हमेशा चुनावी मोड पे रहने वाली पार्टी मानी जाती है. यही वजह है कि इस पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता हरदम मतदाताओं के संपर्क में रहते हैं. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव के बस्तर व अन्य जिलों के दौरे को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है. बताया गया है कि निकट भविष्य में भाजपा के कई शीर्ष नेताओं का छत्तीसगढ़ दौरा प्रस्तावित है.
आदिवासी क्षेत्रों में संघ की पैठ वनांचलों और आदिवासी बाहुल्य इलाकों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गहरी पैठ बन चुकी है. पूरे देश में संघ के 50 लाख से भी अधिक सदस्य हैं, देशभर में प्रतिदिन संघ की 61 हजार शाखाएं लगती हैं. संघ ने वनवासियो और आदिवासियों के उत्थान की दिशा में अपना ध्यान विशेष रूप से केंद्रित कर रखा है. देश के 12 हजार गांवों में विद्या भारती शिक्षण संस्थान संघ द्वारा संचालित किए जा रहे हैं, जहां 32 लाख विद्यार्थी ज्ञानार्जन कर रहे हैं. 52 हजार गांवों में संचालित वनवासी कल्याण आश्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वनवासियों और आदिवासियों के हित में काम कर रहा है. इसके अलावा देशभर में आदिवासी बच्चों के लिए 10 हजार 400 स्कूल चलाए जा रहे हैं. इन स्कूलों में 18 लाख से भी ज्यादा बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. आरएसएस देश के 27 राज्यों में गरीब विद्यार्थियों के लिए छह हजार एकल विद्यालय तथा गरीबों और आदिवासियों को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पांच हजार सेवा भारती हेल्थ केयर सेंटर भी संचालित कर रहा है. छत्तीसगढ़ में भी आरएसएस के ऐसे कई प्रकल्प संचालित हैं. जिसका लाभ चुनावों में भाजपा को मिल सकता है. कांग्रेस भी हुई मजबूत
ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में सिर्फ आरएसएस और भाजपा का ही ग्राफ बढ़ा है, बल्कि कांग्रेस की स्थिति भी अपेक्षाकृत काफ़ी मजबूत हुई है. अन्य पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने तथा आदिवासी नेता मोहन मरकाम के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की साख बढ़ी है. आदिवासी महिला फूलोदेवी नेताम को प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने से भी कांग्रेस के पक्ष में सकारात्मक असर दिख रहा है. मरकाम बस्तर संभाग की कोंडागांव सीट से विधायक हैं. वहीं फूलोदेवी नेताम भी बस्तर से ही हैं. लिहाजा पार्टी को इसका दोहरा लाभ बस्तर में मिल सकता है. सीएम भूपेश बघेल ने वनवासियों, आदिवासियों, महिलाओं और किसानों के हितार्थ जो योजनाएं चला रखी हैं वे भी बेहद असरकारी सिद्ध हो सकती हैं. भूपेश बघेल केबिनेट में बस्तर को पर्याप्त जगह मिली है. सुकमा के आदिवासी नेता एवं विधायक कवासी लखमा को आबकारी व उद्योग मंत्री बनाया गया है. पड़ोसी बालोद जिले की आदिवासी नेत्री अनिला भेड़िया को महिला एवं बाल विकास मंत्री, जगदलपुर के विधायक रेखचंद जैन को संसदीय सचिव बनाकर सीएम श्री बघेल ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि आसन्न विधानसभा चुनावों में दोनों दलों के बीच मुकाबला बेहद रोमांचक होगा |