राज्योत्सव में छाई रही बस्तर की कॉफी, लोगों को भा गया स्वाद

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राज्योत्सव में धूम मचाने के बाद पूरी दुनिया में पहचान बनाने तैयार

जगदलपुर। आदिम संस्कृति, समृद्ध आदिवासी विरासत और प्राकृतिक सुंदरता के अलावा बस्तर जिले की एक और पहचान कायम हो रही है। इसका जीवंत उदाहरण रायपुर में आयोजित राज्योत्सव में देखने को मिला। वहां कृषि विकास विभाग द्वारा लगाए गए स्टॉल में बस्तर की कॉफी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बन रही। लोगों से बस्तरिहा कॉफी को अच्छा रिस्पांस मिला। कॉफी के स्टॉल में उपस्थित अधिकारियों के मुताबिक अब तक लगभग 2 हजार लोग बस्तर की कॉफी का आनंद ले चुके हैं।

हार्टिकल्चर कॉलेज के वैज्ञानिक टीपी सिंह ने बताया कि बस्तर में कॉफी की खेती की संभावना को देखते हुए सरकार द्वारा इस क्षेत्र में नवाचार किया गया। टीपी सिंह ने कहा कि बस्तर के आदिवासी किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और जिला प्रशासन की पहल पर किसानों के लिए कॉफी उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग तक की व्यवस्था की गई है। ताकि किसान कॉफी के सिर्फ रॉ मटेरियल को न बेचें बल्कि कॉफी की मार्केट वैल्यू भी हासिल कर सकें। आज सरकार की इस पहल का फायदा किसानों को मिल रहा है। कॉफी की सफलता को देखते हुए बस्तर के दरभा, मुंडागढ़, डिलमिली जैसे अति दुर्गम क्षेत्रों में 74 किसान 300 एकड़ में कॉफी की बागवानी कर रहे हैं। बस्तर की कॉफी की गुणवत्ता के बारे में सिंह ने बताया कि कॉफी बोर्ड के माध्यम से कॉफी पैरामीटर पर बस्तर की कॉफी को 7.2 पैरामीटर दिया गया है। जिसका मतलब है, कॉफी के सभी मापदंडो पर अच्छी कॉफी होना।


राज्योत्सव में आए राजधानी के युवा आशीष ने कहा कि बस्तर की कॉफी का टेस्ट काफी अच्छा है। उन्हें 1 कप की कीमत 20 रुपए देनी पड़ी। हार्ड कॉफी के रूप में टेस्ट मुझे पसंद आयी। बस्तर की कॉफी के बारे में पता नहीं था, पर यहां इसके बारे में जानकर खुशी हुई।
बता दें प्रयोगिक तौर पर वर्ष 2016-17 में बस्तर के डिलमिली, उरूगपाल एवं मुंडागढ़ की पहाड़ियों में कॉफी के पौधे लगाए गए थे। जिसमें उत्पादन विगत वर्ष से प्राप्त हो रहा है। कॉफी के लिए बस्तर की दरभा क्षेत्र की जलवायु अनुकूल पाई गई है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसानों को कॉफी की खेती से आर्थिक मजबूती मिल रही है। वहीं अब बस्तर की कॉफी सिर्फ एक उत्पाद नहीं बल्कि ब्रांड बनने की राह पर है।
चला बस्तरिहा भात का भी जादू


राज्योत्सव में लगा “बस्तरिया भात” स्टॉल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। आदिवासी संस्कृति से जुड़े व्यंजन की डिमांड लगातार बढ़ रही है। बस्तर के ग्राम हल्बा कचोरा से पहुंची जय बजरंग महिला स्वसहायता समूह की मंगली बघेल, माधुरी देवांगन, चंदा देवांगन ने बताया कि राज्योत्सव में तीन दिनों में ही उन्होंने अपने स्टॉल बस्तरिया भात से 32 हजार से अधिक की कमाई कर ली है। उनके द्वारा परोसे जा रहे बस्तरिया खाने को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं। महुआ लड्डू की डिमांड इतनी ज्यादा है कि स्टॉक ही खत्म हो गया। हमने बस्तरिया थाली में भात, चीला, आमट, बास्ता सब्जी, माड़िया पेज, बोबो, चाउर भाजा, चपोड़ा चटनी, तिखूर बर्फी जैसे व्यंजनों के साथ में महुआ की चाय भी परोस रही हैं। उन्होंने बताया कि चापड़ा यानि लाल चींटी की चटनी की मांग छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में काफी है। आदिवासियों का मानना है कि लाल चींटी की चटनी खाने से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में लाल चींटी के औषधीय गुण के कारण इसकी बहुत मांग हैं। चापड़ा उन्हीं चींटियों से बनाया जाता है जो मीठे फलों के पेड़ जैसे आम पर अपना आशियाना बनाती हैं। आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत से मिली है। बस्तर में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में चापड़ा के शौकीन इसे खूब खरीदते हैं। इसी तरह आमट बस्तर में बनने वाली पारंपरिक सब्जी हैं। इसका स्वाद लाजवाब होता हैं। इस सब्जी में कई सब्जियों का मिश्रण होता है। आमट बिना तेल का बनाया जाता है।
बास्ता को लोग औषधीय सब्जी के रूप में पसंद करते हैं इसलिए मांग अधिक है। गुर बोबो बस्तर में बहुत ज्यादा प्रचलित है। गुर बोबो का अर्थ होता गुड़ का भजिया। यह बोबो आटे और गुड़ से बनाया जाता है। बोबो सामाजिक कार्यक्रम जैसे जन्म संस्कार, विवाह, मृत्यु संस्कार एवं पारम्परिक तीज त्योहार में उपयोग किया जाता है।