- स्थानीय जन प्रतिनिधियों की उपस्थिति में आयोजित हुआ वनभोज
- वनभोज में विशेष आकर्षण का केंद्र रहा विश्व किर्तिमानधारी विद्वान डॉ बालभाष्करण का व्याख्यान
जगदलपुर। बस्तर ज़िला आंध्र समाज द्वारा लामनी पार्क में कार्तिक मास वन भोजनम् कार्यक्रम धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में आंध्र समाज के सदस्यों ने अपनी भागीदारी निभाई। तेलुगु भाषियों ने आँवले के पेड़ की पूजा कर भगवान से संतान एवं परिवार की सुख- समृद्धि की कामना की। यहाँ संसदीय सचिव एवं विधायक रेखचंद जैन, छग राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के अध्यक्ष मिथिलेश स्वर्णकार, इंद्रावती विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष राजीव शर्मा, महापौर सफ़ीरा साहू, पूर्व विधायक संतोष बाफना, सभापति कविता साहू, छग राज्य उर्दू विकास बोर्ड के डायरेक्टर सत्तार अलि आदि मंच में उपस्थित रहे। इस अवसर पर रेखचंद जैन ने विधायक निधि से आंध्र समाज द्वारा गंगामुंडा तालाब के पास प्रस्तावित सामुदायिक भवन के लिए 10 लाख़ रुपये देने की घोषणा की। इससे पूर्व अतिथियों ने अपने उद्बोधन में आंध्र समाज द्वारा वनभोजनम् कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए आभार जताते भरोसा दिलाया कि समाज की उन्नति और प्रगति की दिशा में सदैव आंध्र समाज के साथ खड़े हैं। समाज की ओर से अध्यक्ष पी.जयंत नायडू और उनकी समाजिक कार्यकारिणी व पदाधिकारियों ने अतिथियों सहित समाज के सदस्यों का आभार जताया। मंच संचालन समाज के सचिव सुब्बा राव ने किया। बता दें कि वन भोजनम् कार्यक्रम कार्तिक माह में मनाया जाता है, दांपत्य जोड़े में यह विशेष पूजा अपने संतान एवं पारिवार के सुख- समृद्धि के उद्देश्य से की जाती है। इस दिन आँवले के पेड़ की विशेष पूजा होती है, और आँवला पेड़ की छाँव तले भोजन भी ग्रहण किया जाता है। तेलुगू समाज द्वारा प्रतिवर्ष पूरे परिवार के साथ धूमधाम से पूजा विधान संपन्न किया जाता है। इसी क्रम में 2 वर्षों के कोविड काल के बाद जगदलपुर में आंध्र समाज द्वारा लामनी पार्क स्थित आँवले के पेड़ की पूजा की गई। आँवले के पेड़ की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा कर शास्त्रानुशार आँवला-पूजन के दिन वहीं वन में भोजन भी किया गया। आंध्र समाज के प्रस्तावित शिवालय की वास्तु रचना हेतु नियुक्त यूनिक वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज विख्यात वास्तुशास्त्री डॉ. बाल भास्करण जी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में आंध्र समाज के सेनापति नागभूषण राव, चप्पा श्रीनिवास, सेनापति राजु, इंटी श्रीनिवास, एम. कामेश, के. कामेश्वर, आर. वसंत, एस. राजेश, रविभूषण राव, राजरत्नम, मोहन राव, टी. नागेश्वर राव, किशोर, के. संतोष, राजेश्वर राव, के. अपन्ना, भाष्कर राव, अप्पल नायडू, वीर राजु आदि का विशेष योगदान रहा।
कार्तिक माह में क्यों की जाती हैं, आँवले के पेड़ की पूजा…
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वीं का भ्रमण कर रही थीं और वह एक साथ भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करना चाहती थीं। तब उन्हें ध्यान आया कि तुलसी और बेल दोनों के ही गुण जहां आंवले में पाए जाते हैं वहीं तुलसी भगवान विष्णु को और बेल भगवान शिव को अतिप्रिय है। इसके बाद माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और भगवान शिव का प्रतीक मानकर आवंले के वृक्ष की पूजा की गई थी। माना जाता है कि माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे ही बैठकर भोजन बनाकर भगवान शिव और भगवान विष्णु को भोजन भी कराया था और स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया था। इसी मान्यता अनुसार कार्तिक महीने में आंवले के पेड़ के नीचे ही बैठकर भोजन किया जाता है।
यूनिक वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज विख्यात वास्तुशास्त्री डॉ. बाल भास्करण जी के विषय में संक्षिप्त जानकारी-
विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ. बाल भास्करण स्थापति अपने वास्तु ज्ञान के आधार पर देश भर में लगभग 240 मंदिरों के निर्माण में अपनी महती भूमिका निभा चुके हैं। वे विश्व के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो भारतीय संस्कृति के अनुसार मंदिरों में वैदिक रिति रिवाज से पूजा विधि करने के शास्त्र आधारित ज्ञान अर्थात “आगमम” और “स्थापत्यम” के ज्ञाता हैं। यहाँ स्थापत्यम का अर्थ है धार्मिक सिद्धांतों का पालन करते हुए मंदिरों का निर्माण और डिजाइन करना, ऐसे विद्वान ही “स्थापति” की उपाधि से नवाज़े जाते हैं। इसी उपलब्धि के बूते यूनिक वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की बुक में उन्होंने स्थान पाया है। यहाँ यह जानना भी ज़रूरी है कि उनके पिता जगपालाचार्य तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम में सलाहकार के रूप में सेवा दे चुके हैं। बालभाष्करण ने बचपन से ही पंच सूत्र, विष्णुशास्त्र, लक्ष्मी अष्टोत्रम, नित्यार्चना आदि वैदिक विषयों का ज्ञान अर्जित कर लिया था। इंटरमीडिएट की शिक्षा पूरी करने के बाद वे टीटीडी से संबद्ध वेंकटेश्वर इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेडिशनल स्कल्पचर एंड आर्किटेक्चर की ओर से संचालित मूर्तिकला पाठ्यक्रम का गहन अध्ययन किया है। यहाँ उन्होंने चार वर्षों तक विजयनगरम, चोल, पल्लव, काकतीय आदि स्थापत्य शैलियों का ज्ञान अर्जित किया है।