- जल्द ही निजी हाथों में चला जाएगा नगरनार स्टील प्लांट
- स्वामित्व परिवर्तन की तैयारियां अंतिम चरण में होने की चर्चा
- कर्मचारी हितों की रक्षा के लिए कमर कसकर तैयार हैं सांसद बैज और विधायक जैन रेखचंद जैन
अर्जुन झा
नगरनार छत्तीसगढ़ के वनप्रांतर बस्तर की रत्नगर्भा धरती पर बनकर तैयार बेहद महत्वपूर्ण नगरनार इस्पात संयंत्र का स्वामित्व जल्द ही राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के हाथों से फिसलकर निजी हाथों में जाने के स्पष्ट आसार नजर आ रहे हैं। चर्चा है कि इसके लिए तमाम तैयारियां अंतिम चरण में हैं। नगरनार स्टील प्लांट के स्वामित्व हस्तांतरण की प्रक्रिया जल्द शुरू होने वाली है और अब कभी भी इसके लिए निविदा जारी हो सकती है। बस्तर की जन चर्चाओं से लेकर छत्तीसगढ़ के कारोबारी गलियारे तक में आम तौर पर यही संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस सौदे में विख्यात औद्योगिक घराना अडानी समूह बाजी मार सकता है। निविदा प्रक्रिया सम्पन्न होने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि किसकी लॉटरी लगी, लेकिन जिस बस्तर की यह लोकसंस्था सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में जाने वाली है, उस बस्तर को यह पूर्वाभास हो गया है कि क्या होने वाला है ? बस्तर के लोगों ने बड़ी उम्मीदें पाल रखी थीं कि सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम बनकर नगरनार इस्पात संयंत्र पढ़े लिखे बस्तरिहा युवाओं तथा यहां के मजदूरों को तगड़ी पगार वाला रोजगार उपलब्ध कराएगा, इस वनांचल में औद्योगिक क्रांति लाएगा और बस्तर भी भिलाई, राउरकेला, विशाखापत्तनम जैसे औद्योगिक नगरों की श्रृंखला की एक कड़ी बन जाएगा। मगर अब लगने लगा है बस्तर की ये उम्मीदें धरी की धरी रह जाएंगी। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद अजीत जोगी के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार के दौर में एनएमडीसी के नगरनार प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी गई। तब छत्तीसगढ़ ने इसे बस्तर के विकास की दिशा में एक बेहतरीन पहल समझकर इसका दिल खोलकर स्वागत किया था। नगरनार का स्टील प्लांट विकसित होते होते जब उत्पादन के लिए तैयार हो गया, तब इसे नजर लग गई। केंद्र सरकार ने इस प्लांट में विनिवेश की दिशा में कदम बढ़ा दिए।
साफ है कांग्रेस का नजरिया
नगरनार प्लांट के निजीकरण के विरोध में कांग्रेस ने तब बड़ा आंदोलन किया था, जब वह विपक्ष में थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से उस आंदोलन का नेतृत्व करते हुए नगरनार से पदयात्रा निकाली थी। यह भी कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार के इस निजीकरण की सोच की कीमत बस्तर में भाजपा को चुकानी पड़ी। आज बस्तर की सभी बारह विधानसभा सीटों के साथ ही बस्तर लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस का परचम लहरा रहा है और भाजपा मुरझा सी गई है। इसकी एक बड़ी वजह बस्तर के मन में यह भावना समा जाना है कि भाजपा कुछ देने के बजाय बस्तर की जनता से बहुत कुछ छीनने पर आमादा है।प्रभावित होंगे स्थानीय हित
माना कि प्लांट जहां है, वहीं रहेगा, लेकिन सार्वजनिक उपक्रम के रूप में विकसित संस्थान का स्वामित्व बदल जाने से स्थानीय लोगों के हित प्रभावित होंगे, यह आशंका तो बरकरार है। कांग्रेस इस निजीकरण के विरोध में है। उसने विधानसभा में संकल्प पारित कराया कि इसे निजी हाथों में न दिया जाए। भाजपा ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन विधानसभा में किया। छत्तीसगढ़ चाहता है कि नगरनार का संचालन छत्तीसगढ़ को दिया जाए, किंतु बात नहीं बनी। बस्तर सांसद दीपक बैज ने भी अपने स्तर पर भरपूर प्रयास किया। सब कुछ केंद्र सरकार पर निर्भर है। केंद्र सरकार नगरनार स्टील प्लांट को निजी क्षेत्र के सुपुर्द करना चाहती है। ऐसे में बस्तर के सांसद दीपक बैज और जगदलपुर के विधायक रेखचंद जैन के सामने यही विकल्प शेष रह गया है कि ऐसी स्थिति में नगरनार के कर्मचारियों के हितों को बलि चढ़ने से बचाया जाए। ये दोनों जनप्रतिनिधि इसके लिए प्रतिबद्ध भी नजर आ रहे हैं।
आगे की सोच
जिस तरह हाल ही में नगरनार संयंत्र के कर्मचारियों के हितों की रक्षा के नाम पर मजदूर संगठनों ने बेमुद्दत हड़ताल शुरू की और वह हड़ताल रंग लाने के पहले ही विधायक रेखचंद जैन के प्रयास से समाप्त हो गई। मौजूदा प्रबंधन ने डीमर्जर के बाद भी कर्मचारियों के हित प्रभावित न होने का आश्वासन दिया। इससे स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि मामला अब किस मोड़ पर पहुंच चुका है। यहां एक बात लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि जब निजीकरण की स्थिति में मौजूदा प्रबंधन ही मूल स्वरूप में नहीं रह जाएगा, तब वह स्थानीय हितों की रक्षा का भरोसा किस आधार पर दे रहा है? अभी हाल ही ट्वीटर का स्वामित्व परिवर्तन होने के बाद क्या हुआ, वह सबको पता है। धंधा आखिर धंधा होता है। कारोबारी अपने हित के लिए कारोबार करता है। कोई सौदागर नगरनार प्लांट का सौदा कोई भंडारा आयोजित करने के लिए नहीं कर रहा। ऐसे में इस तरह के आंदोलन, समर्थन, आश्वासन कोई अहमियत नहीं रखते।