छिटक चुके आदिवासियों को खुश करने में जुटी है भाजपा

0
288
  • नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाने के साथ ही आदिवासी बहुल इलाकों पर फोकस कर रही है पार्टी

अर्जुन झा

बस्तर भाजपा से छिटक चुके छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को फिर से अपने पाले में करने के लिए पार्टी के नेता कमर कस चुके हैं। इसके लिए भाजपा द्वारा आदिवासियों के बीच कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। केंद्र की भाजपा सरकार ने भी आदिवासियों के कल्याण और वनांचलों तथा आदिवासी बहुल इलाकों में विकासपरक योजनाएं संचालित कर गांवों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के 25 मार्च को प्रस्तावित बस्तर जिले के दौरे को भी ऐसी ही कोशिशों की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि श्री शाह सीआरपीएफ के कार्यक्रम में हिस्सा लेने बस्तर आ रहे हैं।आदिवासी समुदाय शुरू से ही कांग्रेसका सबसे बड़ा वोट बैंक रहा है। बाद के वर्षों में अपने अभ्युदय के साथ ही बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस के इस वोट बैंक में सेंध लगा दी, मगर आदिवासियों के बीच बसपा का तिलिस्म ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रह सका। वैसे भी छत्तीसगढ़ में बसपा अपना वजूद कायम करने में कामयाब साबित नहीं हो सकी, मगर भारतीय जनता पार्टी जरूर कांग्रेस के गढ़ आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में अपनी मजबूत पैठ बनाने में सफल हो गई। एक समय ऐसा भी आया, जब कांग्रेस की स्थिति इस संभाग में पूरी तरह चरमरा गई। राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद पहले और दूसरे कार्यकाल में भाजपा का परचम बस्तर संभाग में लहराता रहा। तीसरे कार्यकाल में संभवतः भाजपा के नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को यह गुमान हो गया कि अब आदिवासियों को भाजपा से कोई भी ताकत अलग नहीं कर सकती। यह गुमान भाजपा के लिए आत्मघाती साबित हुआ। अगर डॉ. रमनसिंह ने मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल तो सफलता पूर्वक पूरे कर लिए, मगर वे सियासी चौका लगाने से चूक गए। चौका न लगा पाने का मलाल डॉ. रमन सिंह को ताजिंदगी रहेगा। छत्तीसगढ़ के, खासकर बस्तर संभाग के भाजपा नेताओं और कार्यकर्त्ताओं ने अगर अपने नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह से जरा बहुत सियासी तालीम सीख ली होती, तो भाजपा को छत्तीसगढ़ में आज के जैसे बुरे दिन देखने को नहीं मिलते। नरेंद्र मोदी और अमित शाह बारहों माह, सातों दिन, चौबीस घंटे जिस तरह से चुनावी मोड में रहते हैं, उसी तरह छत्तीसगढ़ के शीर्ष भाजपा नेता और बस्तर संभाग के पार्टी नेता व कार्यकर्त्ता भी रहते, तो भाजपा को कम से कम बस्तर की सभी 11 विधानसभा सीटें और एक लोकसभा सीट गंवानी नहीं पड़ती। डॉ. रमनसिंह के तीसरे कार्यकाल की समाप्ति तक भाजपा के नेता और कार्यकर्त्ता चैन की बंसी बजाते रहे, जब उनकी आंख खुली तो सब कुछ लुट चुका था।

देर से टूटी है भाजपाइयों की नींद

अब प्रदेश के और बस्तर के भाजपा नेता नींद से जाग उठे हैं। हालांकि उनकी नींद टूटने में बड़ी देर हो गई है। खैर देर आए, दुरुस्त आए। भाजपा के प्रदेश स्तर के नेता बस्तर संभाग का लगातार दौरा कर रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव बस्तर दौरे का पहला राउंड पूरा कर चुके हैं। भाजपा के बस्तर संभाग प्रभारी एवं राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय गाहे बगाहे बस्तर प्रवास पर आते ही रहते हैं। पाण्डेय स्थानीय नेताओं के साथ आदिवासियों के घरों में भोजन कर यह संदेश देने की कोशिश में रहते हैं कि भाजपा आदिवासियों की सबसे बड़ी पैरोकार है। वहीं भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष शालिनी राजपूत दो दिन पहले ही बस्तर दौरे पर आई थीं। वे मोर्चा की स्थानीय पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में जोश भरकर लौटी हैं। जिला महिला मोर्चा अध्यक्ष सुधा मिश्रा भी जिले के सभी 11 मंडलों से सतत संपर्क बनाने में लगी हुई हैं।*बेहद अहम है अमित शाह का प्रवास*केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बस्तर प्रवास को कई मायनों में बेहद अहम माना जा रहा है। शाह 24 मार्च की शाम जगदलपुर आ जाएंगे और 25 मार्च को जगदलपुर से 15 किमी दूर करणपुर में स्थित सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के कार्यक्रम में शिराकत करेंगे। बस्तर संभाग नक्सली गतिविधियों के मामले में काफी ज्यादा संवेदनशील है। यहां केंद्रीय सुरक्षा बलों की बड़े पैमाने पर तैनाती नक्सली गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए की गई है। इन केंद्रीय सुरक्षा बलों ने राज्य की पुलिस और राज्य सुरक्षा बलों के साथ मिलकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में आशातीत सफलता भी पाई है। बीते पांच वर्षों के दौरान 228 नक्सली मारे गए तथा विभिन्न सुरक्षा बलों के 175 जवान शहीद हुए। हालांकि नक्सली हिंसा में 354 निरीह नागरिकों को भी जान गंवानी पड़ी है। मारे गए नागरिकों में अधिकांश आदिवासी समुदाय के ही हैं। सन 2015 में केंद्र सरकार ने नक्सली हिंसा से निपटने के लिए राष्ट्रीय नीति और विशेष कार्ययोजना शुरू की। इसके तहत सुरक्षा उपाय, विकासपरक पहल, स्थानीय समुदायों के अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं। इस नीति के सफल कार्यान्वयन के चलते नक्सली हिंसा से जुड़ी घटनाओं में लगातार कमी आ रही है। नक्सली हिंसा की घटनाओं में सन 2010 के मुकाबले सन 2022 में 77 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। 2010 की तुलना में 2022 में सुरक्षा जवानों और नागरिकों की मौतों में 90 प्रतिशत की कमी आई है। यह बड़ी उपलब्धि है। केंद्र सरकार ने इसके अलावा नक्सल प्रभावित और आदिवासी बहुल इलाकों में ढांचागत विकास पर भी बहुत ज्यादा जोर दिया है। ऐसे संवेदनशील इलाकों में सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है, स्वच्छ एवं शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, चिकित्सा सुविधा, गुणवत्ता युक्त अच्छी शिक्षा, उद्योग स्थापना, आदिवासियों के कल्याण पर विशेष फोकस किया जा रहा है।

घातक होगी कांग्रेस को कमतर समझने की भूल

कांग्रेस और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कमतर समझने की भूल करना भाजपा के लिए घातक ही होगी। भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने साढ़े चार साल में आदिवासियों और वनवासियों के हित में अनेक ऐतिहासिक फैसले लिए हैं और जमीनी तौर पर ठोस कदम उठाए हैं। आदिवासियों को सबसे ज्यादा लगाव अपनी कला संस्कृति, आस्था, आराध्य देवी देवताओं, खानपान से रहता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस नब्ज को बखूबी टटोल लिया है और उसी के अनुरूप वे आदिवासी बहुल इलाकों में काम भी करा रहे हैं। उदाहरण के लिए देवगुड़ियों के संरक्षण संवर्धन, समर्थन मूल्य पर वनोपजों की खरीदी, बस्तर के पर्यटन स्थलों के विकास को ही लें, जिन पर छ्ग सरकार ने काफी कुछ कर दिखाया है। ऐसा करके मुख्यमंत्री श्री बघेल आदिवासियों का दिल जीतने में काफी सफल भी हुए हैं।