ये हरियाली और सत्ता का रास्ता वनवासियों से कितना किसका वास्ता

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर वनांचल और वन्य क्षेत्रों से जुड़े 45 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की नजर तेंदूपत्ता संग्राहकों पर है। भाजपा ने तेंदूपत्ता संग्राहकों की विभिन्न समस्याओं को लेकर प्रभारी नियुक्त कर उन्हें आंदोलन करने का निर्देश दिया है। जाहिर है कि भाजपा तेंदूपत्ता संग्राहकों का चुनावी समर्थन हासिल कर कांग्रेस के किसान मुद्दे का मुकाबला करना चाहती है। चुनाव के पहले हर उस वर्ग को लुभाने के जतन विपक्ष करता है, जो सत्ता के सामने कोई मांग रख रहा हो अथवा उसका असंतोष जाहिर हो रहा हो। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जन घोषणा पत्र जारी किया था, जिसमें हर तबके को शामिल किया गया था। इसका उसे उम्मीद से अधिक रिस्पॉन्स मिला। भाजपा अब की बार, पैसठ पार का नारा देते देते पंद्रह पर सिमट गई और कांग्रेस अड़सठ सीटें जीत गई। उसके बाद के सभी उपचुनाव जीतते हुए 71 पर है। भाजपा की दुर्गति इसलिए हुई कि उसके संकल्प पत्र के पुराने वादे पूरे नहीं हुए।किसानों को धान का बोनस नहीं मिला। युवाओं को रोजगार नहीं मिला। बेरोजगारी भत्ता बंद कर दिया गया। कर्मचारियों की नाराजगी भी भाजपा को भारी पड़ी। खास तौर किसान ने भाजपा को ठुकरा दिया तो वनांचल में भी भाजपा का सफाया हो गया। बस्तर से लेकर सरगुजा तक भाजपा का साफ होना बता रहा है कि अब जिन तेंदूपत्ता संग्राहकों को भाजपा लुभा रही है, उसने कांग्रेस का साथ दिया। भाजपा का पिछला संकल्प पत्र सूखा हुआ था। जबकि कांग्रेस के जन घोषणा पत्र से रस टपक रहा था। नतीजा वही होना था, जो हुआ। सरकार बनने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जन घोषणा पत्र को अंगीकार कर लिया और लगभग 90 फीसदी घोषणाएं पूरी कर दी। समर्थन मूल्य पर वनोपज खरीदी का दायरा बढ़ाने के साथ तेंदूपत्ता संग्राहकों की आमदनी बढ़ा दी। कोई भी सरकार किसी को सौ फीसदी संतुष्ट कभी नहीं कर सकती। अब तेंदूपत्ता संग्राहकों की कुछ समस्या है तो भाजपा उसे भुनाने की कोशिश करेगी ही। हर राजनीतिक दल को कोशिश करनी ही चाहिए। फैसला तो जनता को करना है। अब यह गणित देखा जाए कि पिछले चुनाव में तेंदूपत्ता संग्राहकों ने भाजपा को ठेंगा दिखा कर कैसे हाथ उठाया था। संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र में करीब 5 हजार तेंदूपत्ता संग्राहक हैं और कांग्रेस उम्मीदवार ने 30 हजार वोटों से चुनाव जीता। महासमुंद विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार जो लघु वनोपज संघ के नेता हैं, वे 23 हजार वोटों से जीते। वहां लगभग 15 हजार तेंदूपत्ता संग्राहक हैं। महासमुंद जिले के सरायपाली विधानसभा क्षेत्र में करीब 15 हजार तेंदूपत्ता संग्राहक हैं और कांग्रेस उम्मीदवार ने 52 हजार वोटों से जीत हासिल की। अब सवाल यह है कि धान के खेल से किसानों को नाराज कर सत्ता से बाहर हुई भाजपा क्या इस बार तेंदूपत्ता के जरिये, आदिवासियों के बीच कुछ नया खेल खेलनी चाहती है। भाजपा हरा सोना तोड़ने वालों के बीच अपने लोग लगाकर आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रही है। लेकिन क्या वह वनवासियों का भरोसा जीत पायेगी, जब उसके कद्दावर आदिवासी नेता भाजपा पर भरोसा न कर कांग्रेस में जा रहे हैं।