इंडोनेशिया को भारतमय और भारत को इंडोनेशियामय बनाया कवियों ने

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  • दल्ली राजहरा की शिरोमणि माथुर की प्रस्तुति को मिली सराहना

रायपुर रोटरी काव्य मंच की 142 वीं ऑनलाइन काव्यगोष्ठी इंडोनेशिया की मेजबानी में आयोजित की गई। यह काव्य गोष्ठी ‘भारत के प्रति सनातन आस्था का प्रतीक है इंडोनेशिया’ विषय पर आधारित थी। मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के धार्मिक संत रस आचार्य डॉ. धर्मयश थे। आयोजन में छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ साहित्यकार, कवियित्री एवं ओजस्वी वक्ता श्रीमती शिरोमणि माथुर ने भी भाग लिया। श्रीमती माथुर दल्ली राजहरा की निवासी हैं। उनकी प्रस्तुति को सभी ने जमकर सराहा। मुख्य अतिथि रस आचार्य डॉ. धर्मयश और संस्था के अध्यक्ष डॉ. बनवारी लाल जाजोदिया के आग्रह पर सभी 48 सहभागी कवियों एवं कवियत्रियों ने अपनी रचनाओं की ऐसी प्रस्तुति दी कि भारत इंडोनेशियामय हो गया और इंडोनेशिया भारतमय। कुछ घंटों तक भारतीय कवियों ने इंडोनेशिया की संस्कृति और सभ्यता के दर्शन किए।अपने सारगर्भित उद्बोधन में संस्था के अध्यक्ष डॉ. बनवारी लाल जाजोदिया ने कहा कि आस्था और विश्वास ही आध्यात्म की धुरी है। इसका प्रमाण भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का प्रभाव इंडोनेशिया के जन जीवन पर स्पष्ट झलकना है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से ही वहां के लोग हिंदू और बौद्ध धर्म को मानते थे। तब वहां हिंदू राजाओं का राज था। कालांतर में विदेशी मुस्लिम व्यापारी अपने साथ इस्लाम धर्म लेकर आए और अपना धर्म फैलाने लगे। फिर भी हिंदू धर्म की जड़ वहां अभी भी मजबूत है।आज भी वहां नाम संस्कृत और अरबी में रखे जाते हैं। वहां की करंसी भारत की करंसी से कमजोर है। भारत के 500 रू. वहां के 1लाख रुपए के बराबर है। दक्षिण के व्यापारी अपने साथ हिंदू धर्म लेकर इंडोनेशिया पहुंचे थे। वहां के राजघरानों ने भारतीय धर्मों और संस्कृति का स्वागत किया। आज भी वहां के बाशिंदे चाहे हिंदू हो या मुसलमान, त्यौहारों पर रामलीला का मंचन जरूर करते हैं। इंडोनेशिया की मुख्य सड़कों पर भारतीय देवी देवताओं की प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। इंडोनेशिया के मंदिरों की वास्तुकला मन को अभिभूत और आनंदित कर देती है। मुख्य अथिति बाली इंडोनेशिया के धार्मिक संत श्रीरस आचार्य डॉ. धर्मयश ने गीता, रामायण और भारतीय धर्म ग्रंथ लिखे हैं और उनका प्रचार प्रसार किया है। आचार्य डॉ. धर्मयश ने अपने आशीष उद्बोधन में कहा कि भारतवर्ष के पुराने नक्शे में 8 महाद्वीप और 8 उपमहाद्वीप दर्शाए गए थे। उनमें से दो महाद्वीप इंडोनेशिया के थे जो स्वर्ण दीप और द्रुपद दीप के नाम से जाने जाते रहे हैं। पुराने प्रमाण पर नजर डालें तो पता चलता है कि वाल्मिकी रामायण के किष्किंधा कांड में वर्णन है कि जब सीता माता को खोजने के लिए निकली वानर सेना को सुग्रीव जी ने सही रास्ता सुझाया था। इंडोनेशिया में भगवान श्रीराम, हनुमान जी और गणेश जी को ज्यादा माना एवं पूजा जाता है। पूर्व में वहां की करंसी पर गणेशजी का चित्र प्रकाशित रहता था। इस तरह इंडोनेशिया के जन जन में भारत का वास है।

इन्होंने की काव्य गोष्ठी में शिरकत

काव्य गोष्ठी की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई। डॉ. स्वाति सिंह ने स्वागत गीत गाया। शोभारानी तिवारी ने सम्मान पत्र का वाचन किया और भेंट किया रोटेरियन अशोक द्विवेदी ने। संचालन रोटेरियन राजकुमार हांडा ने किया। शोभारानी, मीना अग्रवाल, संतोष तोसनीवाल, शेषनारायण चौहान, राजकुमार हांडा, डॉ. राज गोस्वामी, डॉ. अरविंद श्रीवास्तव, मनीराम शर्मा, पूर्णचंद्र शर्मा दतिया, अशोक गर्ग, प्रो. शुभकुमार, डॉ. जवाहर गर्ग, शिशिर देसाई सनावद, जयप्रकाश अग्रवाल काठमांडू, मीना परिहार, मोहन त्रिपाठी गुजरात, चंद्रकला जैन चंडीगढ़, हंसा मेहता, डॉ. विजय लक्ष्मी अनु आगरा, विनोद कुमार हंसौड़ा दरभंगा, शिरोमणि माथुर दल्ली राजहरा छत्तीसगढ़, डॉ. राजेंद्र खरे, डॉ. बनवारी जाजोदिया, डॉ. श्याम मनोहर सिरोठिया सागर, महेंद्र शर्मा इंदौर, मंजू पोद्दार कलकता, अनिल वर्मा अलीगढ़, डॉ. मनोहर गोरे, सत्संगी, आशा जाखड़, निर्मल सिंघल, हुकुमचंद कटारिया, डॉ. अंजुल कंसल, मीला धुनुकचंद मॉरिशस, तीन भाषाओं में श्रीरस आचार्य डॉ. धर्मयश इंडोनेशिया और रोटेरियन नवीन नाहर देवास ने काव्य पाठ किया।आभार प्रदर्शन डॉ. राजेंद्र खरे ने किया। इंडोनेशिया और भारत के राष्ट्रगान के साथ काव्य गोष्ठी का समापन हुआ।