- लिव इन रिलेशन में बेटियों की हत्या पर कवियों ने जताई चिंता
- छत्तीसगढ़ की कवियित्री शिरोमणि माथुर ने झकझोर कर रख दिया समाज को
रायपुर देश के नामचीन कवियों ने लिव इन रिलेशन की आड़ में बेटियों की हो रही निर्मम हत्याओं पर अपनी रचनाओं के माध्यम से चिंता जताई और ऐसे कानून को रद्द करने पर जोर दिया। दल्ली राजहरा की वरिष्ठ कवियित्री एवं साहित्य मनीषी श्रीमती शिरोमणि माथुर समेत छत्तीसगढ़ की अन्य कवियित्रियों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के जरिए इस सामाजिक विद्रुपता पर जमकर प्रहार किए और समाज को झकझोर कर रख दिया। अभा हिंदी साहित्य सभा की इंदौर शाखा द्वारा ऑनलाईन आयोजित इस काव्य गोष्ठी का विषय ‘नारी अस्मिता का सम्मान, यानि भारत की संस्कृति महान’ था। विषय पर केंद्रित रचनाएं प्रस्तुत करते हुए सहभागी सभी 41 कवियों ने लिव इन रिलेशन कानून को बेटियों की निर्मम हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया। कहा गया कि इस कानून की वजह से लव जिहाद की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सभी कवियों ने अपनी रचनाओं के जरिए ऐसी घटनाओं पर चिंता जाहिर की और समाज तथा देश को आगाह किया। कलमकारों ने ऐसे कानून को तुरंत खत्म करने पर जोर दिया, जिसकी वजह से देश में बेटियों का कत्लेआम हो रहा है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. बनवारी लाल जाजोदिया यथार्थ ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी हमेशा पूजनीय रही है। नारी के रूप में हमारे बीच देवता निवास करते हैं। सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, सीता, पार्वती सभी शक्तिरूपा हैं। लिव इन रिलेशन कानून की छाया में लव जिहाद चलाकर बेटियों की हत्या, धर्म परिवर्तन कराने जैसे घिनौने कृत्यों को अंजाम दिया जा रहा है।टीवी न्यूज चैनल्स और समाचार पत्र इस तरह की खबरों से भरे पड़े रहते हैं। श्री जाजोदिया ने कहा कि एकल परिवार की परिपाटी ने संस्कारों का सर्वनाश कर डाला है। मां – बाप अपनी संतान से अपेक्षा रखते हैं कि बच्चे बुढ़ापे में सहारा बनेंगे, कन्यादान कर पुण्य कमाएंगे, लेकिन वर्तमान में श्मशान तक पहुंचाने के लिए आज के बुजुर्गों की अर्थी को दूसरों के कंधों की जरूरत पड़ने लगी है। मां -बाप के दुख की यह चरम सीमा है। इस दर्द को कानून निर्माता समझें और सख्त कानून बनाएं। ताकि बेटियां सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकें। मुख्य अतिथि के रूप में सहभागी बनी सहायक आयुक्त जीएसटी, भोपाल रक्षा दुबे के उद्बोधन का सार था कि वे स्त्री पुरुष की योग्यता के आधार पर विरोध और प्रतिस्पर्धा का विरोध करती हैं। सबको समान अवसर दिया जाना चाहिए। कल्पना चावला से लेकर इंदिरा गांधी तक ने अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखते हुए देश को नई दिशा दी। जिस नारी को लक्ष्मी माना जाता है, वह आर्थिक संकट में रहती है, जिसे सरस्वती माना जाता है, उसी के पल्ले अशिक्षा आती है और जिसे दुर्गा का रूप माना जाता है, उसी नारी की अस्मिता पर आंच आ जाती है। सुश्री दुबे ने कहा कि सामाजिक समानता की आकांक्षा रखते हुए भी यदि एक पहिया सायकल का और और एक पहिया हवाई जहाज का हो तो यह कैसी समानता? अतः इस विषय पर चिंतन से और स्त्रियां अपने स्वज्ञान से अपने शौक पूरे करें तभी महिलाओं के मनुष्य होने का पहला चरण निरूपित होगा। सरस्वती वंदना आशा जाखड़ ने तथा स्वागत गीत शोभा तिवारी ने प्रस्तुत किया। मुख्य अथिति का परिचय डॉ. स्वाति सिंह ने दिया।सम्मान पत्र का वाचन अशोक द्विवेदी ने, संचालन शोभारानी तिवारी व राजकुमार हांडा ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ. राजेंद्र खरे ने किया। इस गंभीर विषय पर अपनी सख्त लेखनी से कहा कि नारी की अस्मिता हमारे देश की पुरानी संस्कृति की धरोहर है। इसे हर हाल में कायम रखना होगा।वर्तमान वातावरण पर गंभीर चिंता जताई गई। अपनी ओजस्वी वाणी से रचना पाठ करने वालों में रानी नारंग, शोभारानी तिवारी, मीना अग्रवाल, संतोष तोषनीवाल, शेषणारायण चौहान बेंगलोर, राजकुमार हांडा, डॉ. रामस्वरूप साहू मुंबई, हुकमचंद कटारिया सनावद, अरविंद अरविंद श्रीवास्तव, पूर्णचंद्र शर्मा, राज गोस्वामी, मनीराम शर्मा सभी दतिया, अंजुल कंसल, दिनेद्र दास कबीर आश्रम, जयप्रकाश नेपाल, मोहन त्रिपाठी गुजरात, राजेश रामनगीना, डॉ. बनवारी जाजोदिया, शिशिर देसाई सनावद, डॉ. राजेंद्र खरे, शिरोमणि माथुर दल्ली राजहरा छ्ग, प्रो. शुभकुमार मधुबनी, निर्मल सिंघल, महेंद्र शर्मा, बिनोद हंसोड़ा, डॉ. विजयलक्ष्मी आगरा, रक्षा दुबे भोपाल, अनिल वर्मा अलीगढ़ शामिल थे।