लो फिर शुरू हो गई बस्तर के हरे सोने की ओड़िशा तक तस्करी

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  • शबरी नदी पार कर ओड़िशा भेजा जा रहा है बस्तर का तेंदूपत्ता
  • जानकर भी अनजान बने हुए हैं वन विभाग के अधिकारी – कर्मचारी


जगदलपुर कोंटा बस्तर संभाग के सीमावर्ती जंगलों से बस्तर के हरे सोने की तस्करी धड़ल्ले से ओड़िशा में की जा रही है। सुकमा वन मंडल के कोंटा, दोरनापाल वन परिक्षेत्र के मेटागुड़ा, फंदीगुड़ा, पेटाकुरती सहित आस-पास के आधा दर्जन से अधिक गांवों से तेंदूपत्ता की अवैध खरीदी बाहरी लोग कर रहे हैं। ये लोग स्थानीय ग्रामीणों से खरीदे गए तेंदूपत्ता को शबरी नदी के रास्ते ओड़िशा ले जा रहे हैं। अब तक बस्तर संभाग से 5 हजार मानक बोरा से भी अधिक तेंदूपत्ता की तस्करी की जा चुकी है।
इस अवैध कारोबार को वनोपज समितियों के प्रबंधकों , पोषक अधिकारियों एवं ठेकेदार की सांठगांठ से अंजाम दिया जा रहा है। वर्ष 2022 में भी 15 हजार से अधिक मानक बोरा तेंदूपत्ता ओड़िशा भेजा गया था। मामले की शिकायत होने पर स्थानीय वन विभाग की टीम ने ओड़िशा के मलकानगिरी से सुकमा के कोंटा इलाके के तेंदूपत्ताा की जप्ती की कार्रवाई की थी। तब तस्करों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई थी। इसी सरकारी उदासिनता के कारण तेंदूपत्ता तस्कर इस साल फिर सक्रिय हो गए और हजारों मानक बोरा तेंदूपत्ता ओड़िशा ले जाने में कामयाब रहे। बस्तर संभाग का सुकमा वन मंडल हरा सोना की अफरा तफरी को लेकर हर वर्ष सुर्खियों में रहता है। उसकी यह परंपरा इस वर्ष भी जारी रही। वर्ष 2022 की तुलना में इस साल तेंदूपत्ता दीगर प्रांतो में कम भेजा गया है।

तस्करों ने लिया नाव और छोटे वाहनों का सहारा
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ठेकेदार इस बार तेंदूपत्ता को शबरी नदी पार कराने का नया पैंतरा अपनाकर अपने मंसूबे पर कामयाब रहे हैं। ठेकेदार ग्रामीणों को ढाल बना पोषक अधिकारी व प्रबंधकों से सांठगांठ कर पांच हजार से अधिक मानक बोरा तेंदूपत्ता शबरी नदी पार कराकर ओड़िशा पहुंचा चुके हैं। वन विभाग सुकमा के अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। इस बार हरा सोना की तस्करी में बाहरी दलालों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। इस दफे उन्होंने बस्तर संभाग से तेंदूपत्ता को ओड़िशा तक पहुंचाने के लिए छोटे वाहनों और नावों का सहारा लिया है।

संग्राहकों को लाभांश राशि का घाटा
विभागीय खरीदी होने पर बिक्री के एवज में प्राप्त लाभ में से कुछ हिस्सा तेंदूपत्ता संग्राहकों को भी दिया जाता है। इसे लाभांश राशि कहा जाता है।तेंदूपत्ता की अवैध ढंग से खरीदी कर दीगर प्रांतों में भेजे जाने से संग्राहकों को तो लाभांश राशि का घाटा होता ही है, साथ ही राज्य सरकार को भी राजस्व की हानि उठानी पड़ती है। खबर है कि इसे सरकारी खरीदी में न दिखाकर सीधे ठेकेदार तक पहुंचाने में बिचौलियों को भी मोटी रकम प्राप्त होती है। इस रकम का हिस्सा वन विभाग के अफसरों तक भी पहुंचाए जाने की खबर है।

अटका है पिछले वर्ष तक भुगतान
वर्ष 2022 में कोंटा एवं दोरनापाल वन परिक्षेत्र में कई समितियों के सैकड़ों संग्राहकों का भुगतान आज भी बकाया है। ठेकेदारों द्वारा अतिरिक्त दर की राशि का भुगतान आज तक नहीं किया गया है। कोंटा की एर्राबोर समिति की 60 लाख से अधिक की राशि बकाया है। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री तक की जा चुकी है। वन विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी ने बताया कि कुछ स्थानों पर अवैध ढंग से फड़ संचालित कर तेंदूपत्ता खरीदी की भी शिकायत मिली है। विभाग द्वारा ऐसी जगहों से तेंदूपत्ता जप्ती की कार्रवाई की जा रही है।

जांच के बाद मामला फाईलों में बंद
वर्ष 2022 में तेंदूपता खरीदी एवं परिवहन में दोनों बार परिक्षेत्र में जांच के आदेश दिए गये थे लेकिन जांच फाईलों में ही दफन हो गई। जांच के बाद अब तक क्या कार्रवाई हुई वह पहेली बनकर ही रह गई है। इस मामले में सुकमा डिवीजन के जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।