गुजरा हुआ जमाना, आ सकता है दोबारा क्या रमन पर दांव लगायेगी भाजपा

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(अर्जुन झा)

रायपुर भाजपा की राजनीति के चाणक्य अमित शाह ने छत्तीसगढ़ की चुनावी कमान संभाल ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 जुलाई को रायपुर आ रहे हैं। मोदी यहां जनता से मुखातिब होंगे लेकिन उनके आने के पहले 5 और 6 जुलाई को चुनिंदा नेताओं के साथ छत्तीसगढ़ भाजपा की आंतरिक बैठक करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री शाह रायपुर पहुंच रहे हैं। वह प्रदेश भाजपा कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में या फिर किसी आलीशान होटल में नवंबर 2023 में होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर बैठक लेंगे। कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार की योजनाओं का तोड़ तलाशने की जिम्मेदारी भाजपा ने अमित शाह को सौंपी है। शाह के इस दौरे से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के भविष्य की संभावनाएं भी जुड़ी हुई बताई जा रही है। आम तौर पर कहा जाता है कि गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा, लेकिन छत्तीसगढ़ में गुजरा हुआ जमाना लौटकर आने के आसार नजर आ रहे हैं। क्योंकि यहां रमन सिंह के कद का कोई नेता भाजपा के पास नहीं है। वे सत्ता से हटने के बाद निराश नहीं हुए। चुनाव में जीत हार तो एक प्रक्रिया है। भाजपा को लगातार तीन बार उन्हीं के नेतृत्व में सफलता मिली है। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जो चमत्कारी वादे किए थे, उनके सामने तो कोई भी ठहर नहीं सकता था। रमन सिंह इतने बड़े वादे करने की स्थिति में नहीं थे। वरना वे कांग्रेस को अवसर ही नहीं देते। केंद्र में भाजपा की सरकार होने के कारण वे पार्टी की राष्ट्रीय स्थिति के मुताबिक ही कार्य कर सकते थे। कांग्रेस विपक्ष में थी, इसलिए उसने किसान का कर्जा माफ और 2500 रुपये में धान खरीदी का वादा किया और सत्ता में आने पर इन वादों को पूरा कर दिया। अब कांग्रेस के इन वादों की पूर्ति ने भाजपा के सामने तगड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। शिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता, हर किसान से प्रति एकड़ 20 क्विंटल के मान से संभावित 2800 रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदी, गोबर खरीदी, आदिवासी बहुल राज्य में तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए बनाई गई योजना भाजपा पर भारी पड़ रही हैं। ऐसी तमाम योजनाओं के तोड़ के लिए शाह मंथन करेंगे। कहा जा रहा है कि है कि छत्तीसगढ़ में रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियों के साथ कुछ बुद्धिजीवियों से उनकी अलग से इस बाबत चर्चा हो सकती है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ भाजपा गुटबाजी का शिकार है यहां जितने भी प्रभारी बनाए गए हैं उनकी जो रिपोर्ट दिल्ली पहुंची है, वह इस पर चिंता व्यक्त कर रही है और जो पार्टी की सर्वे रिपोर्ट और इंटेलिजेंट ब्यूरो की रिपोर्ट दिल्ली पहुंची है उससे केंद्र सरकार में बैठे रणनीतिकारों और केंद्रीय संगठन के लिए यह चुनौती है कि भूपेश बघेल सरकार को हटाने के लिए जनता को अपने संकल्प पत्र में किन ठोस वादों को प्राथमिकता दी जाए। एक चुनौती यह भी है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में चेहरे को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। 15 साल सरकार में रहे लोग फिर तेजी से सक्रिय हैं और उनका कहना है कि डॉ. रमन सिंह को चेहरा घोषित किया जाए, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व अब तक सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चुनाव लड़ने की बात कर रहा है और मुख्य चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रहेगा, ऐसा बयान बार बार आ रहा है। वैसे रमन सिंह पिछले साल से जिस तरह सक्रियता दिखा रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि वह अपने स्तर पर दौड़ से बाहर नहीं हुए हैं और मोदी सरकार ने जिस तरह से रमन सिंह का तगड़ा सुरक्षा इंतजाम बरकरार रखा है और संगठन में उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर अमित शाह के बाद जेपी नड्डा की कार्यकारिणी में भी बनाए रखा है उससे उनकी अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। फिर कांग्रेस के निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ही रहते हैं, इससे भी स्पष्ट संकेत मिलता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार भी कांग्रेस का मुकाबला रमन सिंह की 15 साल की पूर्ववर्ती सरकार से ही है।