अब जल्द बेनकाब होंगे नकली आदिवासी, होगी कड़ी कार्रवाई

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  • कोंटा तहसील में फर्जी तरीके से नौकरियां पाने के मामले की जांच

जगदलपुर/कोंटा सुकमा जिले की कोंटा तहसील में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे 32 कर्मचारियों पर कार्रवाई की तलवार लटक गई है। श्रमबिंदु में प्रकाशित खबर का बड़ा असर हुआ है। ऐसे कई कर्मचारियों को आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त ने दस्तावेजों के साथ अपने कार्यालय में तलब किया है। इन कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जानी है।ज्ञात हो कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने का खेल कोंटा के एसडीएम कार्यालय में लंबे समय से चलता रहा है। इसमें एसडीएम कार्यालय के एक बाबू का अहम रोल है। इस कर्मचारी की दफ्तर में तूति बोलती है। ये कर्मचारी कई वर्षों से इसी कार्यालय में पदस्थ हैं। स्थानीय स्तर पर जाति प्रमाण पत्र मामले की जांच नहीं होने पर कोंटा तहसील के निवासी सतवम राजाराव ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में शिकायत कर निष्पक्ष जांच कराने की मांग की थी। ग्रामीण की शिकायत पर आयोग ने संज्ञान लिया और आयोग के जांच अधिकारी एचआर मीणा ने इसी साल अप्रैल माह की शुरुआत में सुकमा एवं दंतेवाड़ा कलेक्टर को पत्र जारी कर मामले की जांच कराने के निर्देश देते हुए 15 दिवस में जांच रिपोर्ट मांगी थी। चार माह बाद भी जांच रिपोर्ट तैयार नहीं हो सकी है। जबकि वर्ष 2011 में ही जाति प्रमाण पत्र फर्जी साबित हो गए थे। आरोप है कि कोंटा एसडीएम कार्यालय में पदस्थ रीडर भी फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे आदिवासियों का हक मारकर पद पर काबिज हैं। कोया कुटमा समाज के ब्लाक अध्यक्ष गणेश माड़वी ने पूर्व में मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र की जांच कराने की मांग की थी।

ज्ञातव्य हो कि सुकमा जिले के कोंटा इलाके में फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के सहारे आदिवासियों केलिए आरक्षित सीटों पर 36 गैर आदिवासियों ने कब्जा जमा रखा है। इनमें स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, पुलिस विभाग के कर्मचारी शामिल हैं। सर्वाधिक संख्या में कोंटा तहसील के लोगों ने फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी पाई है। अब इनकी नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है।

फर्जीवाड़े में कोंटा तहसील अव्वल

फर्जी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के मामले में कोंटा तहसील सबसे आगे है। कोंटा क्षेत्र के ही अधिकांश लोगों ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरियां पाई हैं। वर्ष 2010-11 में तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ द्वारा मामले की जांच कराई गई थी, जिसमें आधा दर्जन से अधिक कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्र फर्जी साबित होने के बाद उन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया था। कुछ माह बाद ही जुगाड़ लगाकर ये सभी कर्मचारी अपने पदों पर वापस कब्जा पाने में कामयाब हो गए। फर्जी जाति प्रमाणपत्र के सहारे जिन 36 लोगों ने नौकरी पाई है, उनमें से कोंटा एसडीएम के रीडर, कुछ पार्षद, शिक्षक, भृत्य जांच के दायरे में शामिल हैं। लंबे समय से एसडीएम दफ्तर में पदस्थ कर्मचारी के फर्जीवाड़ा का खामियाजा दर्जनों शासकीय सेवकों को भुगतना पड़ सकता है। चंद रूपयों के लालच में फर्जी प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं, जो अब उन कर्मचारियों के लिए आफत बन गए हैं। इस तरह के ज्यादातर मामले जगरगुंडा इलाके के हैं, जहां आ बसे दूसरे राज्यों के लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर आदिवासियों के हक की सरकारी नौकरियां पा चुके हैं।

वर्सन

जांच में फर्जी पाए गए प्रमाण पत्र राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से मिले पत्र का जवाब भेजा जा चुका है। फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी पाने वाले 35 कर्मचारियों के दस्तावेजों की जांच जारी है। 21 जुलाई को 17 लोगों को दस्तावेजों के परीक्षण के लिए बुलाया गया था, जिनमें से 15 उपस्थित हुए थे। जांच में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए हैं।ऐसे लोगों के खिलाफ जल्द कार्रवाई की जाएगी।