बस्तर की वनोपज ने छ्ग को दिलाई विशिष्ट पहचान

0
181
  • राज्य को मिला पृथ्वी अवार्ड, बस्तर की है अहम भूमिका

अर्जुन झा

जगदलपुर लघु वनोपज संघ छत्तीसगढ़ को पर्यायवरण, सामाजिक कल्याण एवं सुशासन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए पृथ्वी अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह एक बड़ा सम्मान है और इसमें बस्तर के आदिवासियों व जंगलों की उल्लेखनीय भूमिका है। छत्तीसगढ़ को सर्वाधिक वनोपज बस्तर के जंगलों से मिलती है।यहां के जंगलों में पाई जाने वाली इमली, महुआ, साल बीज आदि उपजों और वनौषधियों के बूते संभाग के आदिवासियों के जीवन स्तर में जहां बड़ा बदलाव आ रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ की अर्थ व्यवस्था को मजबूती भी मिल रही है। भूपेश बघेल सरकार द्वारा शुरू की गई ग्रामीण औद्योगिक पार्क योजना ने तो वनोपजों के स्थानीय स्तर पर उपयोग, प्रसंस्करण और रोजगार की व्यापक राह खोल दी है। यहां की अशिक्षित आदिवासी महिलाएं और नौकरी की चाह में भटकते आ रहे युवा सफल उद्यमी बनकर औरों को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। बस्तरिहा महिलाओं के स्व सहायता समूह इमली, महुआ, चार, छिंद आदि से विभिन्न खाद्य उत्पाद बनाकर बाजार में उतार रही हैं। यहां की इमली से निर्मित कैंडी की डिमांड तो सात समंदर पार अमरीका जैसे देशों में भी हो रही है। पहले बस्तर के आदिवासी और वनवासी व्यापारियों के पास औने पौने दामों में या फिर सिर्फ नमक के बदले ही महुआ, इमली आदि को बेच दिया करते थे। अब यही वनोपज रीपा की विभिन्न यूनिटों में अच्छी दरों पर बिक रही हैं और इनसे बनने वाले प्रोडक्ट्स की अच्छी कीमत महिला स्व सहायता समूहों को मिलने लगी है। भूपेश बघेल सरकार ने रीप यूनिटों में तैयार होने उत्पादों की मार्केटिंग भी बेहतरीन व्यवस्था कर रखी है। आदिवासी अब व्यापारियों के हाथों शोषित नहीं होते, बल्कि अपने भाग्य निर्माता वे खुद बन गए हैं। बस्तर की इमली अपने बेजोड़ स्वाद के लिए काफी प्रसिद्ध है। पहले स्थानीय व्यापारी मामूली दर पर इमली खरीद कर उसे आंध्रप्रदेश व अन्य राज्य में बेचकर खूब मुनाफा कमाते थे। बीते सत्र में साढ़े चार हजार क्विंटल इमली की खरीदी राज्य सरकार ने की है। सरकार इमली सहित दो दर्जन से भी अधिक वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर करती है। इसका भरपूर लाभ यहां के आदिवासियों को मिल रहा है। यहां के जंगलों में पाई जाने वाली औषधीय जड़ों और वनोपजों की खरीदी भी राज्य सरकार ने सुनिश्चित की है। इन बेशकीमती वनौषधियों को देश विदेश की दवा निर्माता कंपनियां हाथों हाथ खरीदती हैं। कुल मिलाकर लब्बोलुआब यही है कि बस्तर के जंगल और यहां के आदिवासी अब छत्तीसगढ़ की अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान देने लगे हैं।