भाजपा प्रत्याशियों के चयन में फंसा पेंच

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  • पैराशूट प्रत्याशियों को लेकर कार्यकर्त्ताओं की नाराजगी पर भी पार्टी की है कड़ी नजर
  • नए सिरे से सर्वे कराकर तय किए जाएंगे प्रत्याशी

-अर्जुन झा-
रायपुर छत्तीसगढ़ में संभावित भाजपा प्रत्याशियों की सूची वायरल होने के बाद प्रत्याशी चयन में पेंच फंस गया है। बाहरी प्रत्याशी थोपे जाने से कार्यकर्त्ताओं के बीच से उठ रहे नाराजगी के स्वर ने भी भाजपा नेतृत्व को सांसत में डाल दिया है। प्रत्याशियों की सूची लीक होने से नरेंद्र मोदी और अमित शाह और राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष बेहद नाराज बताए जा रहे हैं। इसी बात को लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और प्रदेश महामंत्री संगठन पवन साय को नई दिल्ली तलब किया गया था और प्रदेश भाजपा के प्रभारी एवं केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य ओमप्रकाश माथुर के यहां मैराथन बैठक हुई।
विश्वसनीय सूत्र बता रहे हैं कि जिन सीटों पर संभावित भाजपा प्रत्याशी के नाम पर विरोध प्रारंभ हो चुका है, वहां पुनः सर्वे करवाया जाएगा। इंटेलिजेंस ब्यूरो से भी रिपोर्ट मांगी गई है। बैठक में उन चेहरों की पहचान करने का प्रयास किया गया, जिन्होंने यह सूची वायरल की है। सूत्र बता रहे हैं कि 15 -20 नए नामों पर विचार चल रहा है। विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से कार्यकर्ता प्रदेश भाजपा कार्यालय में आकर विरोध दर्ज करा रहे हैं।

कार्यकर्त्ता खुश रहेंगे, तभी बनेगा काम
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रमुख नेताओं और विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों के जिला एवं मंडल पदाधिकारियों और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से फोन पर हुई चर्चा के अनुसार उनकी भावना है कि कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर आम सहमति से प्रत्याशी का नाम तय किया जाए। यह सर्वे की प्रक्रिया बंद होनी चाहिए, क्योंकि जमीन पर कार्यकर्ता काम करते हैं सर्वे टीम नहीं। लोगों की भावना है कि हाल ही में भाजपा प्रवेश करने वाले को बिल्कुल टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। अगर यह प्रक्रिया बंद नहीं हुई, तो छत्तीसगढ़ में भाजपा को जबरदस्त नुकसान होगा। बाहरी प्रत्याशियों को कार्यकर्ता बिल्कुल पसंद नहीं करेंगे और फिर वह मजबूर हो जाएंगे 2018 की तरह परिणाम देने के लिए। कुछ मीडिया से जुड़े लोगों, किसानों व्यापारियों और आदिवासियों से हुई चर्चा के अनुसार उनका भी यही मानना है कि पार्टी के काम करने वाले लोगों को महत्व दिया जाना चाहिए। जनता और पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर बाहरी प्रत्याशी को थोपा नहीं जाना चाहिए।

विरोध इस बात पर भी है
लोगों का यह भी कहना है कि 2018 में जो परिणाम आए थे, वह भाजपा के विरोध में नहीं बल्कि भाजपा सरकार में बैठे भ्रष्ट लोगों के कारनामों के कारण जनता और कार्यकर्ताओं की नाराजगी का परिणाम था। ऐसे चेहरों से भाजपा को दूरी बनाकर रखना चाहिए और ऐसे कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाना चाहिए, जो वर्षों से पार्टी का काम कर रहे हैं और बदनाम चेहरे का टिकट हर हालत में काट देना चाहिए। लोग यह भी कहते पाए गए हैं कि अगर वायरल सूची को सही माना जाए, तो 8 विधानसभा क्षेत्र में ठाकुर वर्ग के लोगों को टिकट दे दिए गए हैं, यह भी गलत निर्णय है। अब किसकी अनुशंसा पर यह निर्णय लिया गया है और इसके पीछे क्या षड्यंत्र है इस पर भी केंद्रीय संगठन को संज्ञान में लेना चाहिए।

कई समाज हैं भाजपा से नाराज
सिंधी समाज, गुजराती समाज और ब्राह्मण समाज भी टिकट से वंचित होने के कारण नाराज हैं। जहां पर इनकी बहुलता है वहां पर इन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए और कम से कम उपरोक्त समाज के एक-एक व्यक्ति को तो टिकट दिया ही जाना चाहिए। केंद्रीय चुनाव समिति को इस बात पर भी संज्ञान लेना चाहिए कि साहू समाज और कुर्मी समाज के साथ ही अति पिछड़ा वर्ग के लोगों को भी सामाजिक दृष्टिकोण से और वोटों के गणित के अनुसार टिकट दिया जाना चाहिए। साहू समाज का 2018 में 14 सीटें प्राप्त हुई थीं, लेकिन सिर्फ एक सीट पर भाजपा ने विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। वह सीट धमतरी है, जहां से रंजना दीपेंद्र साहू जीती थीं और यह जीत भी कांग्रेस के बागी आनंद पवार के चुनाव लड़ने के कारण मिली थी। इसका परिणाम यह है कि भाजपा आज भी वहां कमजोर है।
विधानसभा चुनाव में स्थानीय स्तर के नेताओं व कार्यकर्ताओं और जिला पदाधिकारियों को महत्व दिया जाना चाहिए। बाहरी नेताओं को थोपा नहीं जाना चाहिए। क्योंकि 2018 के परिणाम बताते हैं कि बाहर से आए नेताओं ने अपना वर्चस्व बना लिया था और दबाव पूर्वक कार्रवाई करने के लिए निर्देश दिया करते थे, जिसे स्थानीय कार्यकर्ताओं ने बर्दाश्त नहीं किया और कई लोग घर बैठ गए। ऐसी स्थिति 2023 के विधानसभा चुनाव में ना हो इसके लिए प्रदेश संगठन को संज्ञान में लेना चाहिए।