- खींचतान के बाद अपने समर्थक जतिन को टिकट दिलाने में सफल रहे बाबा
- सत्ता मिलने के बाद कम न होंगे कका की राह के कांटे
अर्जुन झा
जगदलपुर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के बीच खुन्नस कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस के टिकट वितरण में भी इस खुन्नस की झलक साफ दिखाई देती रही। लंबी खींचतान और बड़ी जद्दोजहद के बाद जगदलपुर विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशी चयन में बाबा बाजी मार ले गए। टीएस सिंहदेव बस्तर में अपने इकलौते समर्थक जतिन जायसवाल को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। इसमें खुद को भूपेश बघेल का हमदर्द बताने वाले कुछ स्थानीय नेताओं ने भी अपरोक्ष रूप से बाबा की ही मदद की है। प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी भूपेश बघेल की राह के कांटे कम नहीं होंगे, बल्कि और भी बढ़ जाएंगे।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की दो धुरी हैं – एक हैं भूपेश बघेल और दूसरे हैं राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव बाबा। कांग्रेस के इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच जो क्लेश रही है, वह जग जाहिर हो चुकी है। इस क्लेश की गूंज दिल्ली के 10 जनपथ और 7 अकबर रोड तक पहुंच गई थी। विवाद दरअसल मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर रहा है। इस कुर्सी पर बाबा की नजर शुरू से रही है। पार्टी हाईकमान के कथित फिफ्टी – फिफ्टी वाले फार्मूले की दुहाई देते हुए टीएस सिंहदेव बाबा कई बार खुलकर ताल ठोंक चुके हैं। जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तब, कांग्रेस हाईकमान ने बीच का रास्ता निकाला और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को डूबने से बचा लिया। इस बीच वाले रास्ते के तहत बाबा को उप मुख्यमंत्री पर देकर उनके असंतोष के आवेग को रोकने की कोशिश कांग्रेस नेतृत्व ने जरूर की है, मगर चिंगारी अभी भी बुझी नहीं है। यह चिंगारी चुनाव परिणाम आने के बाद शोला बनकर भड़क सकती है। इस दबी हुई चिंगारी की हल्की तपिश जगदलपुर विधानसभा सीट समेत सरगुजा की कुछ अन्य सीटों के टिकट वितरण में महसूस की गई। जगदलपुर सीट के मामले में राज – पुत्र बाबा ने किसान – पुत्र कका को फिर से सीधी चुनौती दे डाली है। या यूं भी कह सकते हैं कि सिंहदेव ने भूपेश बघेल का गढ़ बन चुके बस्तर संभाग में बड़ी सेंध लगा दी है। जगदलपुर सीट के लिए काफी कश्मकश के बाद आखिरकार पूर्व महापौर जतिन जायसवाल के नाम पर कांग्रेस हाईकमान ने मुहर लगा दी। पूर्व विधायक रेखचंद के स्थान पर जतिन कांग्रेस के नए प्रत्याशी होंगे। इससे पहले राजीव शर्मा, मलकीत सिंह गैदू के नाम पर भी काफी जोर लगाया गया था। छत्तीसगढ़ में यह किवदंति प्रचलन में है कि राज्य की सत्ता का रास्ता बस्तर संभाग की बारह सीटों से ही तय होता है। ऐसे में सफगोई के साथ कहा जा सकता है कि माई दंतेश्वरी की धरा पर दृढ आस्था रखने वाले भूपेश बघेल के अभेद्य किले बस्तर में टीएस सिंहदेव बाबा ने बड़ी सेंधमारी कर दी है। बाबा के इकलौते समर्थक जतिन जायसवाल को कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किए जाने से यह स्पष्ट है कि भूपेश बघेल पूर्व विधायक रेखचंद जैन के नाम पर आलाकमान की सहमति प्राप्त करने में सफल नहीं हो सके। यही नहीं टीएस सिंहदेव जिनके वर्चस्व वाला इलाका प्रदेश के दूसरे हिस्से में है, वे बस्तर संभाग की एकमात्र अनारक्षित सीट पर अपने प्रत्याशी को स्थान दिलाने में सफल हो गए हैं। राजनीति के चश्मे से देखें तो टिकट के मामले में जगदलपुर की सीट कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि भूपेश बघेल और और टीएस सिंहदेव की निजी प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी थी। हो रहे चुनाव में भी यहां सिंहदेव की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। अब टीएस के प्रत्याशी जतिन को यहां से कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी बनाए जाने के बाद क्या समीकरण बनते हैं, यह देखने वाली बात है। जतिन की जीत व हार से बस्तर में टीएस सिंह देव का सिक्का किस हद तक जम पाएगा, यह तो समय ही बताएगा।
इस तरह बना बस्तर अभेद्य किला
राजनीति में बस्तर जहां सत्ता का रास्ता दिखाता है, वहीं यह हमेशा से बड़े नेताओं को आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग के भय से भी डराता है। यही कारण है कि बस्तर के नेताओं को पहले चरण में ही पदों से नवाज दिया जाता है। ताकि आगे चलकर आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठ न सके।
राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बस्तर के नेताओं को महत्वपूर्ण पद देकर खुश कर दिया। सबसे पहले सुकमा जिला अंतर्गत कोंटा के विधायक और वरिष्ठ आदिवासी नेता कवासी लखमा को आबकारी एवं उद्योग मंत्री बनाया गया। श्री लखमा को ही बस्तर संभाग के छह जिलों का प्रभारी मंत्री भी बना दिया गया। बस्तर सीट के विधायक लखेश्वर बघेल को बस्तर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष, मिथिलेश स्वर्णकार को क्रेडा का अध्यक्ष, राजीव शर्मा को इंद्रावती विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष, एमआर निषाद को मछली बोर्ड का अध्यक्ष, सत्तार अली को उर्दू बोर्ड अध्यक्ष, नारायणपुर के विधायक चंदन कश्यप को हस्तशिल्प विकास बोर्ड का अध्यक्ष, सुजाता जायसवाल को उपभोक्ता फोरम अध्यक्ष, कोंडागांव विधायक मोहन मरकाम को प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष बना दिया गया। बाद में मोहन मरकाम की जगह बस्तर लोकसभा सीट के सांसद दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष का जिम्मा सौंप दिया गया। श्री मरकाम को केबिनेट मंत्री बना दिया गया। इस तरह बस्तर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का अभेद्य किला बन गया।
किसने उपलब्ध कराई छैनी – हथोड़ी ?
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अभेद्य किले में टीएस सिंहदेव बाबा सेंध लगाने में कामयाब हो गए हैं। ऐसा कर पाना किसी के लिए भी अकेले दम की बात नहीं है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि इस सेंधमारी में मददगार कौन कौन से नेता बने, अभेद्य किले में विकराल छेद करने के लिए बाबा को छैनी हथोड़ी आखिर किसने उपलब्ध कराई, आस्तीन के वो सांप कौन हैं, जिन्हें भूपेश बघेल दूध पिलाते रहे हैं? जगदलपुर में इस बात की बड़ी चर्चा है कि खुद को भूपेश बघेल का सच्चा हमदर्द और खास सिपहसालार बताने वाले जगदलपुर के ही कुछ बड़े नेताओं ने भूपेश बघेल की पीठ में छूरा घोंपने का काम किया है। भूपेश ने इन जयचंदों को जिम्मेदार ओहदों से नवाजा है, मगर इन मौकापरस्त तथाकथित कांग्रेसियों ने ही भूपेश बघेल से गद्दारी कर दी है। भूपेश बघेल को इन गद्दारों की पहचान कर उनसे दूरी बनाए रखने की जरूरत है। अन्यथा उन्हें चुनाव के बाद कांटों भरा ताज पहनना पड़ जाएगा।
कहीं खुशी, कहीं गम
पांच साल के दौरान बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी से काफी पानी बह चुका है और इस बीच सियासत में कई उतार चढाव आए। कभी कोरोना, तो कभी व्यापार व्यवसाय में उतार चढ़ाव। सरकार को पूरे कार्यकाल में तरह – तरह की चुनौतियों से जूझते रहना पड़ा। इस बीच सीएम की कुर्सी को लेकर टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल में खींचतान की खबरें आम हुईं। सत्ता चलाने के लिए प्रदेश के मुखिया ने कई निर्णय लिए। इससे कई खुश हुए, तो कुछ नाराज भी। बस्तर के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के आबकारी मंत्री और बस्तर संभाग के छह जिलों के प्रभारी मंत्री कवासी लखमा को रायपुर में हुई कांग्रेस की राष्ट्रीय बैठक से दूर रखा गया। इससे वे खासे खफा हुए थे। बस्तर के टिकट वितरण के दौरान भी श्री लखमा की भूमिका खुलकर नजर नहीं आई। कोंडागांव विधायक मोहन मरकाम को ठीक चुनाव के पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटाया गया। इससे उनमें भी नाराजगी रही। मोहन मरकाम को मनाने के लिए उन्हें केबिनेट मंत्री बना दिया गया। इसके अलावा बस्तर की बारह सीटों में से तीन स्टैंडिंग विधायकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इनमें कांकेर से शिशुपाल सोरी, चित्रकोट से राजमन बेंजाम और जगदलपुर से रेखचंद शामिल हैं।