बच्चों को खिचड़ी और शिक्षकों के लिए छप्पन भोग

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  •  प्राथमिक शाला बेलपुटी में चल रही है खूब मनमानी
  • स्कूल में नहीं है शौचालय, कैंपस में उग आईं झाड़ियां

अर्जुन झा

बकावंड विकासखंड बकावंड के सरकारी स्कूलों में बच्चों को तो पनियाली दाल के साथ सिर्फ चावल परोसा जा रहा है। उन्हें सब्जी कभी – कभार ही नसीब हो पाती है, मगर शिक्षक – शिक्षिकाएं तो छप्पन भोग का आनंद उठा रहे हैं। गुरुजनों के लिए कभी अंडे व मुर्गा पकाए जाते हैं, तो कभी मछली पकाई जाती है। बच्चों को बिठाकर परोसने के बजाय कैदियों की तरह लाइन लगवाकर खाना दिया जाता है। वहीं शिक्षक -शिक्षिकाएं स्कूल की टेबलों पर थालियां सजाकर डाइनिंग टेबल का लुत्फ उठाते हैं।

बकावंड ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत चीतालुर के आश्रित ग्राम बेलपुटी की शासकीय प्राथमिक शाला में बच्चों को भात के ऊपर बहुत ही पतली दाल डालकर परोसने की अजीब परंपरा चल रही है। दाल भी ऐसी कि उसमें दाल न कहकर पीले रंग का गरम पानी कहें, तो ज्यादा बेहतर होगा। मध्यान्ह भोजन के मीनू के अनुसार कभी भोजन नहीं परोसा जाता।जिस दिन बच्चों की थाली में सब्जी नजर आ जाती है, वह दिन बच्चों के लिए नसीबों वाला होता है। बच्चों को भोजन उसी अंदाज में दिया जाता है, जैसा कि जेलों में कैदियों को। मध्यान्ह भोजन तैयार होते ही बच्चों को थालियां पकड़वाकर लाईन से खड़े करवा दिया जाता है और बारी बारी से पास बुलाकर उनकी थालियों में भात तथा दाल डाल दी जाती है। सब्जी कभी दी नहीं जाती। बच्चे जमीन पर बैठकर अपनी भूख मिटाने जुट जाते हैं। वहीं दूसरी ओर शिक्षक – शिक्षिका भी स्कूल में ही बने मध्यान्ह का लुत्फ उठाते हैं। ये बात अलग है कि उनकी थाली अलग ही अंदाज में सजी नजर आती है। थाली के एक कोने में पका चावल और दूसरे कोने में गाढ़ी दाल से भरी कटोरी और जायकेदार सब्जी वाली कटोरी रखी होती है। रसोईया टेबल पर उनकी थालियों को सलीके से रख आती है। फिर वे कुर्सी पर बैठकर मजे से खाना खाते हैं। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि स्कूल में शिक्षकों के लिए मुर्गा, अंडे, मछली भी अक्सर पकाई जाती है। बच्चों की थाली में भात के ऊपर पतली दाल डाले जाने और उन्हें सब्जी न परोसे जाने के सवाल पर शिक्षक बेतुका जवाब देते हैं। स्कूल की शिक्षिका ज्योति कश्यप कहती हैं कि बच्चे छोटे हैं। उनके थाली लेकर चलने से दाल इधर- उधर दाल गिर जाती है, इसीलिए दाल को भात में मिलाकर दिया जाता है। प्रधान पाठक मोहन कश्यप ने कहा कि बच्चों की आज उपस्थिति कम रहने के कारण सब्जी कम बनाई गई है। अब सवाल यह उठता है कि जब सब्जी कम पकाई गई थी, तो शिक्षकों को कटोरी भर भरके सब्जी और गाढ़ी दाल क्यों परोसी गई? पहले बच्चे खाना खा लेते, फिर शिक्षक खाते।

स्कूल में नहीं है शौचालय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांव – गांव और घर – घर में शौचालयों का निर्माण कराया है। स्कूलों में भी टॉयलेट और वाशरूम के लिए शासन पर्याप्त फंड आवंटित किया गया है। हर स्कूल में टॉयलेट, वाशरूम और पेयजल की व्यवस्था अनिवार्य है, मगर बेलपुटी की प्राथमिक शाला में ये सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। पानी का इंतजाम तो हो जाता है, मगर शाला अवधि में किसी बच्चे को शौच करने की नौबत आ जाए, तो उसे स्कूल से कुछ दूर लोटा या डब्बा लेकर झाड़ियों की शरण में जाना पड़ता है। स्कूल कैंपस में गंदगी, घासफूस और झाड़ियों का भी अंबार है। बरसात के मौसम में झाड़ियों से सांप बिच्छू निकलते रहते हैं। ऐसे में बच्चों की जान दांव पर लगी रहती है। झाड़ियों और घांसफूस की सफाई कभी नहीं कराई जाती। सीएससी सोनल कश्यप ने कहा कि अभी मैं आज फील्ड में हूं। सीएससी ने कहा कि बच्चों को लाईन में लगाकर खाना बांटना और शिक्षकों के लिए स्पेशल थाली सजाना गलत है।

वर्सन

होगी कार्रवाई

बेलपुटी स्कूल में अव्यवस्था की जानकारी आपसे मिल रही है। मामले पर संज्ञान लेकर कार्रवाई की जाएगी। सीएससी को तुरंत जांच के लिए कहा जाएगा।

श्री पाण्डेय

बीआरसी, बकावंड