पुत्रमोह में धृतराष्ट्र बन बैठे नेता तुल गए हैं कांग्रेस का बेड़ागर्क करने पर

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  • गैर आदिवासी नेताओं की साजिश से कांग्रेस बेहाल
  • कांग्रेस नेतृत्व को खुली रखनी होंगी अपनी आंखें
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस की बस्तर में लुटिया डुबोने के लिए कांग्रेस के ही कुछ नेता ही तुल गए हैं। संतान मोह में धृतराष्ट्र बन चुके ये नेता कांग्रेस का ही बेड़ागर्क कर रहे हैं। रही सही कसर कांग्रेस के बड़े नेता पूरी कर दे रहे हैं। सन 2018 के विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस ने पूरी बारह सीटें जीत ली थी। लंबे वनवास के बाद छत्तीसगढ़ की सत्ता में कांग्रेस के काबिज होते ही यहां के कुछ कांग्रेस नेताओं का अहंकार इतना बढ़ गया कि वे अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं को नीचा दिखाने और कदम दर कदम अपमानित करने में लग गए। केबिनेट मंत्री पद से नवाजे गए बस्तर के एक कांग्रेस नेता तो आसमान में ही उड़ने लगे। अपने उल जलूल हरकतों और एक विशेष आदत की वजह से इस नेता ने बस्तर में कांग्रेस का मटियामेट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बस्तर में टांग खिंचाई की राजनीति यहां के आदिवासी नेताओं ने पहले कभी नहीं की थी। बस्तर के इतर प्रदेश के चंद बड़े गैर आदिवासी नेताओं ने बस्तर के कुछ गैर आदिवासी कांग्रेस नेताओं को मोहरा बनाकर संभाग के एक आदिवासी नेता के इर्द गिर्द उन्हें लगा दिया। इन बस्तरिहा तथा बस्तर के बाहर के गैर आदिवासी नेताओं ने ऐसी चाल चली, ऐसा जाल बुना कि बस्तर का एक आदिवासी नेता उसमे उलझ गया। यह सारी साजिशें तेजी से उभरे एवं छत्तीसगढ़ और नई दिल्ली की राजनीति में बड़ा मुकाम बना चुके बस्तर के उच्च शिक्षित युवा आदिवासी नेता दीपक बैज के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए रची गईं। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की इस चांडाल चौकड़ी ने कांग्रेस की दुर्गति कराने में बड़ी भूमिका निभाई। चित्रकोट विधानसभा सीट से दीपक बैज और अन्य सीटों से कांग्रेस प्रत्याशियों को हराने के लिए पूरी ताकत लगा दी गई, जमकर रुपए बहाए गए, गांव गांव में घूम घूमकर शराब, मुर्गा बकरा, साड़ियां, रकम बंटवाई गई। नतीजा यह हुआ कि दीपक बैज जीती बाजी हार गए। साथ ही बस्तर संभाग की अधिकांश सीटें कांग्रेस को गंवानी पड़ गईं।

मकसद नेतृत्व की नजरों में गिराना
दीपक बैज और अन्य प्रत्याशियों को हराने का खास मकसद दीपक बैज को पार्टी नेतृत्व की नजरों में गिराना रहा है। दीपक बैज जिस तेजी से उभरे, जन मानस में लोकप्रिय हुए। संसद में मुखर रहकर एवं दिल्ली में विपक्षी दलों द्वारा किए गए धरना प्रदर्शनों में उनकी सहभागिता एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से दीपक बैज की बढ़ती नजदीकियां छत्तीसगढ़ के चंद गैर आदिवासी नेताओं को खटकने लगी थी। छत्तीसगढ़ के कुछ कांग्रेस नेता उन्हें अपनी राह का कांटा मान बैठे। हालांकि दीपक बैज निर्विकार, निर्विवाद और साफ सुथरी छवि वाले नेता माने जाते हैं। वे कभी किसी का अहित नहीं चाहते।. पार्टी के लिए उनका समर्पण भाव जग जाहिर है। फिर भी गैर आदिवासी नेताओं में यह डर समा गया था कि अगर खुदा न खास्ता दीपक बैज मुख्यमंत्री बन जाएंगे तो उनकी (गैर आदिवासी नेताओं) की पॉलिटिकल करियर ही खत्म हो जाएगा। इसीलिए इस सारा तिकड़म किया गया।

कांग्रेस की देरी न पड़ जाए भारी
इस बार लोकसभा चुनाव में बस्तर संभाग की दोनों सीटों बस्तर और कांकेर में कांटे के मुकाबले के आसार दिख रहे थे, लेकिन प्रत्याशी चयन में कांग्रेस नेतृत्व द्वारा की जा रही देरी कांग्रेस की संभावनाओं के द्वार को बंद करती प्रतीत हो रही है। भाजपा ने काफी पहले ही अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे और दोनों प्रत्याशी तथा भाजपा के नेता यह जंग जीतने के लिए जी जान लगाकर जुट गए हैं। भाजपा के दोनों प्रत्याशी व्यापक जन संपर्क कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नेताओं को कुछ भी नहीं सूझ रहा है। प्रत्याशी की घोषणा के इंतजार में बस्तर के कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मतदान को माह भर भी नही बचा है और नामांकन को महज एक हफ्ता बाकी है। कांग्रेस की यह देरी पार्टी को ही भारी न पड़ जाए। कांग्रेस आलाकमान ने अब तक प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। लगता है बस्तर में अपना सुपड़ा साफ करवाने खुद कांग्रेस ही तत्पर है। पिछले विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस को अपनो ने ही धोया था। लोकसभा चुनाव में भी इसकी पुनरावृत्ति होती दिख रही है। मैं इधर चला, वो उधर चला के फिल्मी गीत सरीखी हास्यास्पद स्थिति से पार्टी गुजर रही है। कांकेर सीट के लिहाज से देखें तो सरकार में रहते कांग्रेस के वो मंत्री जो ताल ठोंककर एक दूसरे को नीचा दिखाते थे, अब लोकसभा चुनाव लडने के नाम पर कन्नी काटते फिर रहे हैं।