बस्तर में स्थित भारत के सबसे पुराने चार सागौन पेड़ लड़ रहे हैं अपने अस्तित्व की लड़ाई

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  •  भरत के बाद अब लक्ष्मण भी सूखने की कगार पर
  • चारों प्राचीन पेड़ों को राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का नाम दे रखा है ग्रामीणों ने

अर्जुन झा

जगदलपुर छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है। घने जंगल, यहां के वाटरफॉल और नैसर्गिक गुफाएं पूरे देश और विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। इसी बस्तर में भारत के सबसे पुराने पेड़ स्थित हैं, मगर दुर्भाग्य की बात है कि जिन पेड़ों को यहां के आदिवासी भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में सदियों से पूजते आ रहे हैं, वही देवतुल्य पेड़ आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक वनग्राम है तिरिया। तिरिया गांव की वादियों से ही माचकोट का घना जंगल शुरू हो जाता है। यहां कच्चे रास्ते और पहाड़ी नाला पार करके 10 किलोमीटर जंगल के भीतर तोलावाड़ा बीट अंतर्गत कंटीले तारों से चार अति विशालकाय सागौन के पेड़ों को संरक्षित किया गया है। इन पेड़ों को देखकर आपके मन में जरूर यह सवाल उठेगा कि भला इतने विशाल पेड़ों की बाड़बंदी की क्या जरूरत है? दरअसल कहानी ही कुछ ऐसी है कि इन पेड़ों की सच्चाई जानकर आप निसंदेह आश्चर्य में पड़े बिना नहीं रहेंगे। माचकोट वन क्षेत्र के घने जंगल में इस रेंज के सबसे विशालकाय सागौन के पेड़ों को वन विभाग और आसपास के आदिवासियों ने राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का नाम दिया हुआ है। खास बात यह है कि सिर्फ 20 मीटर के दायरे में यह चारों पेड़ एक सीधी कतार में खड़े हुए हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो त्रेतायुग के चारों भाई इन पेड़ों के रूप में यहां साक्षात एकसाथ खड़े हैं। बस्तर में यही भारत के सबसे प्राचीन सागौन के पेड़ हैं। इन पेड़ों की उम्र लगभग 600 साल है। इनमें से एक पेड़ को भगवान श्रीराम का नाम दिया गया है। इसे भारत का सबसे प्राचीन सागौन का पेड़ माना जाता है। इस पेड़ के अगल बगल में तीन और सागौन के पुराने पेड़ हैं, जिन्हें लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम से जाना जाता है। दरअसल इन पेड़ों की वास्तविक आयु की गणना के हिसाब से देखा जाए तो यह अयोध्या में श्रीराम लला के जन्म स्थान निर्माण के पहले से अस्तित्व में हैं।

पेड़ों से आई थी इंसानी आवाज

स्थानीय ग्रामीण और जानकार रोहन कुमार बताते हैं कि भगवान राम का इस दंडकारण्य से गहरा संबंध रहा है। इसलिए इन पेड़ों की उम्र के आधार पर नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न किया गया है। ऐसी भी मान्यता है कि कुछ ग्रामीण बरसों पहले सागौन के इन पुराने पेड़ों को काटने पहुंचे थे लेकिन जैसे ही कुल्हाड़ी चली, इन पेड़ों से इंसानी आवाजें आने लगीं। आवाज सुनकर ग्रामीण डर गए। तब से इन्हें देव पेड़ मानकर ग्रामीण इन पेड़ों की पूजा करते आ रहे हैं। पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के चातुर्मास के दौरान गुप्तेश्वर आश्रय स्थल रहा है। गुप्तेश्वर जाने वाले भक्त इन रामनामी सागौन को देखना शुभ मानते हैं। यह पेड़ तिरिया- गुप्तेश्वर मुख्य मार्ग से छह किमी दूर हैं। पास ही सागौन के दो पुराने पेड़ और मिले हैं। इन्हें क्रमश: सीताजी और हनुमान जी का नाम दिया गया है। अब क्षेत्रवासी तोलावाड़ा जंगल में पूरा राम दरबार होने की बात श्रद्धा से कहने लगे हैं।

दुर्लभ सागौन पेड़ों का ब्यौरा

राम नाम वाले सागौन पेड़ की गोलाई 600 सेमी और ऊंचाई 43.05 मीटर, लक्ष्मण नाम वाले पेड़ की गोलाई 520 सेमी और ऊंचाई 38.40 मीटर, भरत नाम वाले पेड़ की गोलाई 536 सेमी एवं ऊंचाई 45.50 मीटर और शत्रुघ्न नाम वाले सागौन पेड़ की गोलाई 314 सेमी एवं ऊंचाई 33.05 मीटर है। इस विवरण से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सागौन के पेड़ इतनी ज्यादा गोलाई और ऊंचाई वाले और कहीं नहीं मिलते। गोलाई और ऊंचाई के आधार पर ही पेड़ों की आयु का आंकलन किया जाता है। दुख की बात है कि अंचल के आदिवासियों के लिए पूज्यनीय बन चुके ये पेड़ लगातार क्षरित होते जा रहे हैं और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।