21 साल बाद खुला प्रभु श्रीराम के मंदिर का ताला, तो खुशी से झूम उठे ग्रामीण

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  • नक्सलियों ने ताला जड़ दिया था इस मंदिर में
  •  सीआरपीएफ के जवानों ने तोड़ा ताला, सफाई भी की
    अर्जुन झा-
    जगदलपुर भगवान राम को अपनी जन्मभूमि अयोध्या से लेकर अपने ननिहाल छत्तीसगढ़ तक यंत्रणाओं से जूझना पड़ा। अयोध्या स्थित उनके प्राचीन मंदिर को जहां आक्रांता मुगल बादशाह बाबर ने ढहवा दिया था, वहीं दूसरी ओर ननिहाल छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में स्थित उनके दशकों पुराने एक मंदिर पर नक्सलियों ने ताला जड़ दिया था। ढाई दशक बाद अब जाकर इस मंदिर के पट खुल पाए हैं। जैसे ही मंदिर का ताला टूटा और दरवाजा खुला, ग्रामीण खुशी से झूम उठे।
    छत्तीसगढ़ और इस राज्य के दंडकारण्य यानि बस्तर से भगवान श्रीराम का काफी गहरा नाता रहा है। यह राज्य जहां मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु रामचंद्र का ननिहाल है, वहीं उन्होंने दंडकरण्य बस्तर में अपने वनवास के कुछ वर्ष व्यतीत किए थे। कहा जाता है कि बस्तर संभाग के सुकमा जिले के रामाराम अंचल में प्रभु श्रीराम ने वनवास के दिन गुजारे थे। रामाराम में भी भगवान राम का प्राचीन मंदिर है। इसके अलावा बस्तर संभाग में कई ऐसे स्थान हैं, जहां श्रीराम के चरण रज पड़े थे। सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित गांव केरलापेंदा में सन 1970 में भव्य राम मंदिर बनाया गया था। इस मंदिर को सन 2003 में नक्सलियों ने फरमान जारी कर बंद करवा दिया था। मंदिर में पूजा पाठ पर रोक लगाते हुए ताला जड़ दिया गया था। लेकिन अब सीआरपीएफ के जवानों ने फिर से मंदिर की साफ- सफाई कर दरवाजे खोल दिए हैं।

गत रविवार को केरलापेंदा में सीआरपीएफ कैंप लगाकर मंदिर का ताला खोला। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में 500 वर्ष के इंतजार के बाद मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा इसी वर्ष 22 को हुई है। कुछ ऐसा ही उत्सवी वातावरण सुकमा जिले के चिंतलनार थाना क्षेत्र के केरलापेंदा गांव में देखने को मिल रहा है। गांव कुछ लोगों ने बताया भगवान रामजी के मंदिर दशकों पहले बनाया गया था। मंदिर कब और किसने बनवाया था, इस संबंध में ग्रामीणों के पास कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उनके कई पुरखे इस मंदिर में पूजा करते आए हैं। सन 2003 में नक्सलियों ने इस मंदिर को बंद करने का फरमान सुना दिया था। कुछ ग्रामीणों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि नक्सलियों के कहने के बाद से तकरीबन 21 वर्षों से मंदिर को बंद रखा गया। पर गांव के ही एक परिवार के सदस्य रोजाना नक्सलियों से छिपते छिपाते आकर मंदिर के बाहर से ही पूजा अर्चना करते रहे। हाल ही में सीआरपीएफ और सुकमा पुलिस ने केरलापेंदा से लगे लखापाल गांव में नया कैंप खोला है। सुरक्षा बलों का कैंप खुलने के बाद जवान ग्रामीणों से उनका हाल-चाल जानने केरलापेंदा पहुंचे थे। इसी दौरान ग्रामीणों ने सीआरपीएफ जवानों को मंदिर के बारे में बताया और मंदिर को फिर से खोलने का आग्रह किया। उसके बाद सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के जवानों ने मंदिर परिसर में ही ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य जांच एवं उपचार शिविर लगाया। शिविर में दर्जनों ग्रामीणों का ईलाज कर उन्हें दवाइयां दी गईं। स्वास्थ्य शिविर के दौरान ही सीआरपीएफ के अन्य जवान मंदिर की साफ सफाई करने लगे। जवानों के साथ गांव के ग्रामीणों ने भी मंदिर की सफाई में बढ़ चढ़कर और उत्साह के साथ योगदान दिया। मंदिर परिसर और मंदिर की बाहरी दीवारों की सफाई कर मंदिर के कपाट खोले गए। जिसके बाद ग्रामीणों ने मंदिर में सामूहिक रूप से पूजा अर्चना भी की।

शिखर पर हैं हनुमान जी
केरलपेंदा गांव के भगवान राम के इस मंदिर में हनुमान जी की छवि मंदिर के शिखर पर बनाई गई है। मंदिर काफी पुराना नजर आ रहा है और मंदिर के अंदर भगवान राम, लक्ष्मण और सीता जी की संगमरमर से निर्मित प्रतिमाएं विराजमान हैं। ये प्रतिमाएं अति मनोहारी हैं। वहीं ग्रामीणों के आग्रह पर 21 वर्षों बाद मंदिर में जवानों की मौजूदगी में ग्रामीणों ने पूजा अर्चना भी की। ग्रामीणों ने सीआरपीएफ जवानों से इस मंदिर के जीर्णोद्धार कराने का आग्रह भी किया। जिस पर सीआरपीएफ अफसरों ने जल्द ही मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ कराने का आश्वासन दिया है। इस दौरान मंदिर के कपाट खुलने पर कुछ ग्रामीण ख़ुशी से झूमते नाचते हुए भी दिखाई पड़े।

500 बनाम 21 बरस
आयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भक्तों को जहां पांच सौ वर्षो का इंतजार करना पड़ा वहीं नक्सली दंश झेल रहे सुकमा जिले के केरलापेंदा के ग्रामीणों को अपने गांव के राम मंदिर के दरवाजे खुलने के लिए 21 बरस का लंबा इंतजार करना पड़ा। ग्रामीणों ने बताया कि 1970 में मंदिर की स्थापना बिहारी महाराज द्वारा की गई थी। पूरे गांव के लोग मंदिर के लिए सीमेंट, पत्थर, बजरी, सरिया अपने सिर पर रखकर सुकमा से लगभग 80 किलोमीटर का सफर पैदल तय करके लाते थे।