सुप्रसिद्ध आदिवासी वैद्य हेमचंद मांझी को पद्मश्री सम्मान मिलने से बौखलाए नक्सली, दी धमकी

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  • मांझी के खिलाफ टांगे बैनर, चस्पा किए पर्चे
  • हेमचंद मांझी को बताया कॉर्पोरेट घरानों का दलाल 
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले के प्रसिद्ध आदिवासी वैद्य हेमचंद मांझी को पद्मश्री सम्मान सम्मान मिलना नक्सलियों को शायद चुभने लगा है। यही वजह है कि मांझी को नक्सली संगठन ने कॉर्पोरेट घरानों का दलाल बताते हुए खुली धमकी दे डाली है। हेमचंद मांझी के खिलाफ गांवों में बैनर टांगे गए और पर्चे चस्पा किए गए हैं।
    नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की पूर्व बस्तर डिवीज़न कमेटी ने पर्चे में आरोप लगाया है कि कॉर्पोरेट घरानों के लिए काम करने वाला हेमचंद मांझी निको जायसवाल कंपनी का सेवक है। आमदई पहाड़ को बेचने वाले हेमचंद मांझी को देश की राष्ट्रपति द्वारा पद्‌मश्री पुरस्कार दिए जाने का हम विरोध करते हैं। आगे लिखा है कि जल- जंगल-जमीन को बचाने के लिए संघर्ष करें।नारायणपुर जिले के छोटे बोंगर मुंडाटीका निवासी हेमचंद मांझी प्रसिद्ध वैद्यराज और जनता के सेवक हैं। वे जड़ी बूटियों से जटिलतम रोगों का भी सफल ईलाज करते आ रहे हैं। उनकी जनसेवा को देखते हुए देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है।

उसके बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी हेमचंद मांझी को बधाई देते हुए कहा कि 5 दशकों से ज्यादा समय से बस्तर सहित पूरे छत्तीसगढ़ के ग्रामीणों को प्राकृतिक और किफायती स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रहे अबूझमाड़ के प्रख्यात वैद्यराज हेमचंद माझी जड़ी बूटी की दवाइयों से अपने ज्ञान और सेवाभव की बदौलत मरीजों का उपचार कर रहे हैं। नक्सली संगठन ने इस पर भी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पर्चे में लिखा है कि अगर हेमचंद मांझी पूरे बस्तर और छत्तीसगढ़ के लोगों की जान की परवाह है तो देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री पुरस्कार से क्यों नवाजे गए? हेमचद मांझी अपने वर्ग का आदमी नहीं है। यह तो कॉर्पोरेट घरानों के हाथों बिक चुका है। अपना बस्तर आदिवासी समुदाय के लोगों की भूमि है और छत्तीसगढ़ धान का कटोरा के नाम से प्रसिद्ध है। बस्तर में जंगल पर निर्भर लोग रहते हैं। धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के किसान आत्महत्या करने क्यों मजबूर हैं? आगे लिखा है कि बस्तर और छत्तीसगढ़ की धरती खनिज संपदा से भरी हुई है और यहां के लोग कठोर मेहनती हैं। बस्तर की जनता का जीवन सीधा और सरल है। यहां के लोग अपनी पुस्तैनी जमीन का महत्व को समझ नहीं पाते हैं। जिससे कॉपोरेट घरानों के हाथों आसानी से बिक जाते हैं। इस वजह से लूटेरे वर्गों की गिद्ध दृष्टि बस्तर की संपदा पर पड़ी हुई है। अगर हेमचंद मांझी निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा कर रहा है तो स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई सुविधा और अस्तित्व की जो लड़ाई जनता लड़ रही है, उसके पक्ष में आकर क्यों खड़ा नहीं होता?2020 से पूरे बस्तर संभाग में जन आंदोलन चल रहा है। हेमचंद मांझी जिस जिले में पैदा हुआ है, वहां पर भी छोटे डोंगर थाना अंतर्गत मढ़ोनार पंचायत में ही मढोनार जन आंदोलन 1साल 5 महिने से चल रहा है, लेकिन एक दिन भी धरना स्थल पर जाकर हेमचंद मांझी ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। फिर वह कैसे प्रसिद्ध वैद्यराज और जन सेवक हो सकता है?मढोनार स्थल पर धरना बैठे लोग अपने घर-द्वार छोड़ पेड़ों की छांव तले गर्मी, बारिश ठंड से जूझते हुए जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। फिर हेमचंद मांझी जनता के पक्ष में क्यों खड़ा नहीं हो रहा है। हेमचंद मांझी गरीब, आदिवासी जनता का सेवक नहीं है। छत्तीसगढ़ के मरीजों का इलाज करके उनकी जान बचाने वाले डॉक्टरों, नर्सो को पुरस्कार देना बहुत दूर की बात है, उनकी पहचान तक नहीं होती है। लेकिन न चल पाने वाला हेमचंद मांझी बुजुर्ग अधभक्त सोच रखने वाले ने जड़ी बूटी दवाई देकर पुजारी के नाम से इतना बड़ा
कौन सा काम किया है, जो इसको पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

हिंदू राष्ट्र के लिए इस्तेमाल
नक्सली संगठन ने आगे लिखा है कि इंदिरा गांधी के जमाने से 20 साल की उम्र से लेकर अभी 80- 90 साल का बुजुर्ग को पद्मश्री पुरस्कार देकर उसका इस्तेमाल मोहन भागवत, विजय शर्मा, विष्णुदेव साय का पर्दा न खुले इसके लिए और हिंदू राष्ट्र निर्माण करने लिए किया जा रहा है। आमदई पहाड़ में सर्वे करने से लेकर फर्जी जनसुवाई तक हेमचंद गांझी का ही हाथ है। आमदई पहाड़ पर निको कंपनी के लिए रास्ता बनाना, पुलिस जवानों का मनोबल को बढ़ाया और नया पुलिस कैम्प खोलने के लिए उद्‌द्घाटन करने वाला मुखिया हेमचंद मांझी ही है। सागर साहू, कोमल मांझी, हरी मांझी, गिरी जैसे लोगों को निको जायासवाल कंपनी का दलाल ग्रुप बनाकर आमदई पहाड़ को खदान खोलने का काम शुरू किया गया। हेमचंद मांझी को निको कंपनी कि ओर से 11 करोड़ भी दिया गया है। हेमचंद मांझी को कॉरिटीकरण, सैनिकीकरण, ब्राम्हणीय हिन्दुत्व फासीवादी नीति को अमल करने वाला बताया गया है।