स्वर्गीय पंडित विष्णु प्रसाद शर्मा, स्वाधीनता सेनानी जिन्हें अपनों ने ही भुला दिया

0
38

(18 जुलाई पुण्यतिथि पर विशेष) यह हमारे देश तथा समाज की विडंबना है कि यहां अपनों को भुला दिया जाता है ,अपनों का मूल्यांकन उनके देहावसान के पश्चात भी कम से कम किया जाता है। आधुनिक समाज द्वारा अपने ही लोगों के लिए मूल्यांकन के पैमाने बड़े कठोर कर दिए गए हैं। गुणों का उल्लेख कम से कम किया जाता है, दोषों का अधिक। यदि किसी के दोष ढूंढे से भी नहीं मिलते, तो समाज के कठोर पैमाने से उनके गुणों का वर्णन ही इस तरीक़े से किया जाता है कि वे दोष मालूम पड़ने लगते हैं। समाज के निकम्मे- निठल्ले आलोचकों ने काँकेर के स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीय पंडित विष्णु प्रसाद शर्मा के साथ यही किया है, जबकि बस्तर और काँकेर के आदिवासियों ने तथा छोटे तबके के ग़रीब ,मज़दूर, किसानों द्वारा आज देहावसान के 15 वर्ष पश्चात भी वे अत्यंत आदर के साथ याद किए जाते हैं। ये भोले-भाले, सीधे-सादे लोग उनके अधिवक्ता ,कानून के ज्ञाता के रूप को ही जानते हैं जबकि विष्णु महाराज वकील के अलावा भी बहुत कुछ थे। समाजसेवी पर्यावरणविद् ,साहित्यकार, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् , प्रगतिशील, ओजस्वी वक्ता, गांधीवादी मनीषी आदि उनके बहुमुखी रूप थे लेकिन दुख का विषय है कि उन्हें इन सभी रूपों मैं जानने वाले कम ही हैं और इन में भी अधिकतर ऐसे हैं जो स्वर्गीय विष्णु महाराज की बहुमुखी प्रतिभा का वर्णन करना पड़े ,तो बड़ी कृपणता के साथ करते हैं । जो लोग सच्चे दिल से उनका सम्मान करते हैं ,वह जानते हैं कि उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में कितने स्कूल खुलवाए , कितने आदिवासियों और ग़रीबों को फ़र्जी मुक़दमों से बचाया। अपने निजी विद्यालयों पर शिक्षा की दुकानों का कलंक नहीं लगने दिया। स्वयं को रामायणी तथा साहित्यकार विद्वान बताने में सदैव संकोच किया। अनेक लोग आज भी नहीं जानते कि विष्णु महाराज सात ज़िलों में निजी स्कूलों कॉलेजों का संचालन करने वाली बस्तर शिक्षा समिति के उपाध्यक्ष तथा अध्यक्ष भी बरसों रह चुके थे। यही नहीं, रायपुर सहकारी बैंक के उपाध्यक्ष तथा बस्तर अंचल के कांग्रेस उपाध्यक्ष भी लंबे अरसे तक रह चुके थे। इस प्रकार अनेक रूपों में उन्होंने देश- प्रदेश की सेवा की। कांकेर नगर पालिका के प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष के रूप में उन्होंने शहर की जो सेवा की है ,उसके निशान आज भी पुराने कुओं के रूप में देखने को मिलते हैं। जिन मुहल्लों में ऐसे कुएँ आज भी सुरक्षित हैं, वहां के लोग बड़ी श्रद्धा के साथ महाराज को याद करते हैं। विष्णु महाराज यदि आज होते तो एक सौ एक वर्ष के होते। आज वे नहीं हैं लेकिन काँकेर वासियों के ह्रदय में उनकी यादें अमर हैं।