- लगातार घटती जा रही है है जनजाति की आबादी
- धर्म, परंपराओं और संस्कृति का भी पराभव
-अर्जुन झा-
बकावंड आदिम जनजाति में शुमार आदिवासियों की आबादी लगातार घटती जा रही है। इसी के साथ आदिम संस्कृति, धर्म और परंपराओं का भी तेजी से पराभव होता जा रहा है। गांवों में देवगुड़ी व मातागुड़ी की की संख्या कम हो रही है और प्रार्थना घरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसे लेकर आदिवासी समाज के लोग तथा बस्तर के सांसद महेश कश्यप चिंतित हैं। बकावंड में बीते दिनों आयोजित विश्व आदिवासी दिवस समारोह में भी आदिवासियों की घटती जनसंख्या पर मंथन चिंतन किया गया था।
आदिवासियों की घटती आबादी के मूल में जन्म दर या मृत्यु दर उतने बड़े कारक नहीं हैं, जितना बड़ा कारक धर्मान्तरण है। आदिवासियों की आबादी का क्षरण सिर्फ बस्तर संभाग में हो रहा है, बल्कि अन्य जिलों में भी तेजी से हो रहा है। चिंता वाली बात तो यह है कि विशेष संरक्षित पहाड़ी कोरवा, कमार और बैगा जनजाति की भी जनसंख्या लगातार घट रही है। कुछ तथाकथित शोधों और सर्वेक्षणों के हवाले से कहा जाता है कि आदिवासियों में मृत्यु दर ज्यादा है और जन्म दर कम। प्रसव के दौरान जच्चा बच्चा की मौत बढ़ने के कारण आदिवासियों की संख्या घट रही है। मगर हमारे जमीनी सर्वेक्षण में जो तथ्य उभर कर आए हैं, वे बेहद चौकाने वाले हैं। आज सुदूर गांवों की भी गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों ले जाया जाने लगा है। इलाज के लिए भी लोग बैगा गुनिया के पास कम और अस्पतालों में ज्यादा जाने लगे हैं। स्वास्थ्य केंद्र भी ग्रामीणों की पहुंच के करीब स्थापित हो गए हैं। ऐसे में जन्म दर, मृत्यु दर वाली दलील की हवा खुद निकल जाती है। दरअसल मूल वजह जो सामने आई है, वह है धर्मान्तरण। बस्तर संभाग के सभी जिलों के साथ ही ऊपर लिखे तमाम जिलों में भी एक समुदाय विशेष का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। यह समुदाय चमत्कारों और प्रार्थना से हर मर्ज को दूर करने का आडंबर करके आदिवासियों को प्रभावित करने और उन्हें अपने धर्म में शामिल करने में लगातार कामयाब होता जा रहा है। आदिवासी तो भोले भाले होते ही हैं, वे जल्द ही ऐसे भ्रमजाल में उलझ जाते हैं। धर्म परिवर्तन कराने के बाद आदिवासियों को उनके मूल धर्म से पूरी तरह विमुख होने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। उन्हें उनकी परंपराओं और संस्कारों, जो उनकी मूल पहचान है, उनसे भी दूर कर दिया जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत जिन देवी देवताओं की आदिवसी पूजा करते हैं, उन देवी देवताओं की प्रतिमाएं और तस्वीरें तक उनके घरों से हटवा दी जाती हैं, महिलाओं के बिंदी लगाने, मांग में सिंदूर भरने और चूड़ियां पहनने तक पर भी पाबंदी लगा दी जाती है। आदिवासी और अन्य हिंदू समाज में शवों का दाह संस्कार किया जाता है, मगर धर्मान्तरित आदिवासी के शव को दफनाना पड़ता है। इसे लेकर बस्तर में कई बार विवाद की स्थिति निर्मित हो चुकी है।
गांव -गांव में प्रार्थना घर
बस्तर संभाग के अधिकतर गांवों में प्रार्थना घरों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। लोगों के देवगुड़ी और मातागुड़ी में जाकर पूजा करने का चलन कम होता जा रहा है। हर रविवार को इन प्रार्थना घरों में प्रार्थना के नाम पर चमत्कारों, चंगाई सभा का नाटक चलता है। इसे देख और भी लोग इस समुदाय विशेष से जुड़ते चले जाते हैं। लोगों को भरोसा दिलाया जाता है कि प्रभु के चमत्कार से हर रोग दूर हो जाता है, हर बाधा टल जाती है। कई स्थानों पर सेवा की आड़ में भी धर्मान्तरण कराया जा रहा है।
धर्मान्तरण ही मुख्य वजह: महेश
गत दिवस बकावंड में विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भी आदिवासी समाज के प्रमुखों ने आदिवासियों की घटती आबादी पर चिंता जताई थी। बस्तर लोकसभा क्षेत्र के सांसद महेश कश्यप भी बकावंड आए थे। इस दौरान उन्होंने नई दुनिया से चर्चा में आदिवासी समुदाय की घटती जनसंख्या के लिए धर्मान्तरण को ही जिम्मेदार माना है। श्री कश्यप ने कहा कि बस्तर संभाग में आदिवासी तेजी से धर्मान्तरित किए जा रहे है। पिछले कांग्रेस शासनकाल में इसे बढ़ावा मिलता रहा। धर्मान्तरण हमारे आदिवासी समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है। समाज की युवा पीढ़ी और बड़े बुजुर्गों को इस ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा हम भी जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे। सांसद महेश कश्यप ने धर्मान्तरण पर रोक के लिए शासन स्तर पर भी पहल पर जोर दिया।