खाट ही है इनके लिए एंबुलेंस, बीमारों को लेकर उफनती नदी को पार करना इनकी है मजबूरी

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  • गंभीर महिला को खाट पर लादकर बाढ़ग्रस्त नदी से निकले ग्रामीण
  • मारुडबाका से 22 किमी पैदल चले परिजन, ग्रामीण
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर आजादी के अमृतकाल का यह स्याह पहलू ही है कि स्वतंत्रता के 78 वर्षों बाद भी बस्तर संभाग के दर्जनों गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। मेडिकल इमरजेंसी आ जाए, तो खाट ही इन ग्रामीणों के लिए एंबुलेंस बन जाता है और ग्रामीणों के कदम इस एंबुलेंस के पहिए। खाट पर मरीज को लादकर उफान मारती नदी को पार करने और 22- 25 किलोमीटर का सफर पैदल तय करने की मजबूरी इन ग्रामीणों के समक्ष आज भी मौजूद है। ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए आजादी का अमृत महोत्सव बेमानी ही है।

हमने हाल ही में स्वतंत्रता दिवस की 78वीं वर्षगांठ मनाई है और इन दिनों समूचा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भारत देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। आजादी के सात दशक बाद भी उपेक्षित रहे देश के आदिवासी बाहुल्य इलाकों और वहां के रहवासियों के समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार बहुआयामी कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री जन मन योजना इसीलिए लाई गई है। इस योजना के जरिए आदिवासी गांवों में सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा, पुल पुलिया जैसी तमाम बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इतना ठोस पहल केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा की जाने के बावजूद बस्तर संभाग के गांव बेपरवाही का शिकार बने हुए हैं। कई गांव ऐसे हैं, जो नदी – नालों से घिरे हुए हैं और पहुंच मार्ग विहीन हैं। इन नदी नालों में पुल पुलिया नहीं हैं। लिहाजा बरसात के मौसम में इन गांवों के लोग 4-5 माह तक शेष दुनिया से कटे रहते हैं। इस बीच उनके सामने मेडिकल इमरजेंसी आ जाए तो भगवान ही मालिक होता है। बस्तर संभाग का बीजापुर जिला इस मामले सर्वाधिक पिछड़ा हुआ है। इन दिनों बीजापुर जिले में हो रही तेज बारिश से जिले के सभी छोटे-बड़े नदी नाले उफान पर हैं। पहाड़ी पानी के तेज बहाव व बाढ़ से से ग्रामीण भी मुसीबत में पड़ रहे हैं। ऎसी ही एक बड़ी त्रासदी बीजापुर जिले के उसूर ब्लाक के अंदरूनी गांव मारुड़बाका में देखने को मिली है। यहां एक महिला द्वारा फूड पॉइजनिंग का शिकार हो गई थी। उल्टी- दस्त व शारीरिक कमजोरी से तबीयत बिगड़ने पर 37 वर्षीया महिला जोगी पोड़ियामी की स्थिति गंभीर हो गई थी। पति कोसा पोडियामी ने जोगी पोड़ियामी की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। उसने गांव के लोगों से मदद की गुहार लगाई। ग्रामीण युवकों ने अपनी जान को जोखिम में डाल महिला को खाट पर लादकर उफनती नदी से महिला को पार कराया। और महिला को लगभग 20-22 किमी पैदल गलगम तक खाट के सहारे लाया गया। महिला की गंभीर स्थिति पर ग्रामीण युवकों ने रस्सी के सहारे खाट में लादकर नाला पार कराया। जहां उसे 108 एंबुलेंस की मदद से जिला अस्पताल लाया गया। जिला अस्पताल में महिला का इलाज जारी है।

आती रहती है ऎसी नौबत
इस संबंध में उसूर के चिकित्सक से बात करने पर बताया कि मारूडबाका काफी संवेदनशील व अंदरूनी गांव है। वहां तक एंबुलेंस का पहुंचना मुश्किल है। महिला ने किसी विषाक्त पदार्थ का सेवन किया था। स्थिति गंभीर होने पर बीजापुर रेफर किया गया। जिले में बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो अभी भी कई ऐसे इलाके हैं जहां बरसात में ऐसी स्थिति निर्मित होती है। क्षेत्र के आदिवासी बारिश में इलाज के लिए संघर्षरत रहते है। पिछले दिनों 26अगस्त को कमकानार की गर्भवती महिला को खाट से नदी पार कराया गया था। इसी तरह 22 जुलाई को उसूर के नंबी इलाके में सीआरपीएफ के जवानों ने भी ड्रम की मदद से प्रसव के बाद महिला को नदी पार कराया था।