मुरिया दरबार की परंपरा को भाजपा ने बना दिया मजाक: रेखचंद जैन

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  •  आनन फानन में निपटाने की सोच से रियासती परंपरा की उड़ाई धज्जियां
  •  मांझी- मुखिया नहीं रख सके अपनी समस्याएं 

जगदलपुर पूर्व विधायक व संसदीय सचिव रहे रेखचंद जैन ने कहा है कि मुरिया दरबार रियासत काल की प्रभावी व उल्लेखनीय व्यवस्था रही है। इसमें स्थानीय ग्रामीणों की बात तथा शिकवा- शिकायतों को सुनकर शासन एवं प्रशासन के द्वारा जो नजीर पेश की जाती थी, वह समूचे राज्य में लागू होती थी, लेकिन भाजपा की छत्तीसगढ़ सरकार ने इस महत्वपूर्ण प्रथा को महज रस्म अदायगी तक सीमित कर बस्तर के लाखों ग्रामीणों व बस्तर दशहरा पर्व में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कार्य किया है।

मंगलवार को यहां आयोजित मुरिया दरबार में अभिव्यक्ति देने मांझी- मुखिया, चालकी आदि बैठे रहे। जन समस्याओं को जानने का प्रयास नहीं किया गया। इससे इनके गांव, घर व क्षेत्र की परेशानी जस की तस बनी रहेगी। पूर्व विधायक रेखचंद जैन ने कहा है कि आदिवासियों को होने वाली समस्याओं को जानने का मंच मुरिया दरबार है। लेकिन मुख्यमंत्री आए और अपना भाषण देकर चले गए। जैन ने कहा है कि मुरिया दरबार में बस्तर के सभी जन प्रतिनिधियों को आमंत्रित करने की परंपरा रही है। तुच्छ राजनीति के कारण भाजपा ने इसे भी खंडित किया है। बस्तर के किसी भी कांग्रेस के विधायक, सांसद को बुलाया नहीं गया था। यह जनादेश का अपमान तो है ही, ग्रामीणों की उपेक्षा की भाजपाई मानसिकता को भी दर्शाता है।  जैन ने कहा है कि आने वाले वक्त में जनता इसका जवाब देगी। पूर्व विधायक के अनुसार बस्तर दशहरा पर्व सभी समाजों व उसके प्रतिनिधियों के समन्वय का प्रतीक रहा है। रियासत काल से आज तक इसमें सर्व समाजों की भागीदारी रही है लेकिन भेदभाव के वशीभूत होकर भाजपा ने अपने अहंकार में इसे भी खंडित किया है। कांग्रेस के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा इसका प्रमाण है।

तीन हजार में गुजारा करके बताएं सीएम

रेखचंद जैन ने मीडिया को जारी बयान में कहा है कि दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी को प्रति माह केवल तीन हजार रुपये ही मिल रहे हैं। शासन- प्रशासन को इस ओर ध्यान देकर यथोचित व मानव मूल्यों के मुताबिक वृद्धि करनी चाहिए। इस दिशा में सार्थक पहल एवं घोषणा न किए जाने से पुजारी परिवारों में निराशा है, जिसका खमियाजा भाजपा को भोगना पड़ेगा। पूर्व विधायक ने कहा है कि इस दिशा में जब तक सार्थक पहल नहीं की जाती, मुख्यमंत्री स्वयं तीन हजार रुपये प्रति माह के हिसाब से खर्च करें। इससे उन्हें भी मंहगाई का भान हो जाएगा। जब सीएम समस्या जानेंगे तब पुजारी परिवार की परेशानी का निराकरण हो सकेगा।