- असल सवाल तो यह है कि प्रतिबद्धता कहां होगी? कांग्रेस या आदिवासी समाज के साथ?
अर्जुन झा
जगदलपुर किसी जमाने में बस्तर की राजनीति के चमकदार सितारे रहे और केंद्रीय मंत्रिमंडल में शोभित होने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता अरविंद नेताम बदलते वक्त में पार्टी में बेगाने हो कर सर्व आदिवासी समाज नाम के सामाजिक संगठन की राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्हें कांग्रेस ने अपनी तरफ से घर बैठा दिया। लेकिन अब उनके लिए कांग्रेस में बहार के दिन फिर से आने के संकेत मिल रहे हैं। रायपुर में होने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्हें स्वागत समिति में शामिल किया गया है। जबकि बीते दिनों में उन्हें कांग्रेस में अहमियत नहीं दी जा रही थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक अवसर पर उन्हें संदेश दे चुके हैं कि उनकी पारी समाप्त हो चुकी है, अब दीपक बैज और राजमन बेंजाम को खेलने दें। मतलब यह कि अब बस्तर में नई पौध को कांग्रेस के बगीचे में खिलने दिया जाए। वैसे भी प्रकृति का नियम यही है। सूखे पत्ते या तो खुद ब खुद झर जाते हैं अथवा झरा दिए जाते हैं। राजनीति में ऐसा कुछ ज्यादा ही होता है। सूखे पत्तों को मार्गदर्शक बताकर मूकदर्शक बना दिया जाता है। कांग्रेस की बात है तो सिर्फ कांग्रेस की ही बात की जा रही है अन्यथा भाजपा में भी यही रीत है कि आशीर्वाद तो सब लेते हैं लेकिन सुनता कोई नहीं। अब बस्तर में कांग्रेस की तरुणाई को आशीर्वाद देने के लिए बुजुर्ग नेता अरविंद नेताम और उनकी पत्नी छबीली नेताम को मान देने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने सुध ली है। इस अवसर पर यह भी स्मरण किया जा सकता है कि कुछ अरसे पहले अरविंद नेताम ने मंत्री कवासी लखमा को उपदेश दिया था तो जवाब में कवासी लखमा ने नसीहत दे दी थी कि नाती पोते खिलाने की उम्र है तो नेताम घर बैठकर नाती पोते खिलाएं। आशय यही है कि नेताम राजनीति में दखल नहीं दें। नेताम भी राजनीति के पुराने योद्धा हैं। योद्धा कितना भी बुजुर्ग हो जाये, उसका जोश कम नहीं होता। महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से बुजुर्ग सेनापतियों ने ही नेतृत्व किया था। राजनीति भी एक युद्ध का मैदान ही है तो यहां भी बुजुर्गों की स्थिति भीष्म पितामह और गुरु द्रोण जैसी ही है। बुढ़ापे में मोतीलाल वोरा जैसे तपे तपाये नेता की राज्यसभा टिकट काटकर दूसरे आंगन की तुलसी छत्तीसगढ़ के आंगन में स्थापित करना इसका एक उदाहरण समझ में आता है लेकिन यह भी राजनीतिक जरूरत है कि नवीनता को स्थान प्राप्त हो अन्यथा बूढ़ी कांग्रेस देश भर में कृशकाय हो गई है। कांग्रेस में अनुभव और जोश का सामंजस्य बिठाने की परंपरा है, इसलिए अनुभव के धनी मल्लिकार्जुन खड़गे आज कांग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष हैं। इस हिसाब से देखें तो कांग्रेस अब भी बुजुर्ग पीढ़ी के अनुभव को मान्यता दे रही है। नई और पुरानी पीढ़ी के बीच विचारों में फर्क होता है। यहां समन्वय की दरकार है। अब अरविंद नेताम की याद छत्तीसगढ़ कांग्रेस को क्यों आई है तो सीधी सी बात है कि चुनाव सिर पर है। बस्तर में अरविंद नेताम एक बड़ी शख्सियत हैं। उनके संरक्षण में चल रहा सर्व आदिवासी समाज संगठन तेजी से प्रभाव बढ़ा रहा है। इसकी बानगी भानुप्रतापपुर उपचुनाव में सामने आ चुकी है। अब अरविंद नेताम जिस मुकाम पर खड़े हैं, वहां सर्व आदिवासी समाज के संगठन को अधर में छोड़कर वे कांग्रेस के लिए पूर्ण समर्पित होने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस ने उन्हें मान दिया है, जिसे उन्होंने पुराने रिश्तों की वजह से स्वीकार किया है किंतु सवाल यह है कि उनकी प्रतिबद्धता कहां होगी? कांग्रेस के प्रति या आदिवासी समाज के साथ?