- कोर्ट के फैसले से बन आई है शिक्षकों की नौकरी पर
अर्जुन झा-
जगदलपुर यह कैसी विडंबना है कि जिस छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री आदिवासी हैं और जहां शिक्षक पद पर भर्ती के लिए बीएड की योग्यता अनिवार्य कर दी गई है, उसी राज्य में बीएड डिग्रीधारी आदिवासी सहायक शिक्षक अपनी नौकरी बचाने की गुहार लगाते आदिवासी मुख्यमंत्री के पीछे पीछे भटक रहे हैं।
प्रदेश के तीन हजार से अधिक बीएड डिग्रीधारी सहायक शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने बेचैन कर रखा है, उन्हें अपनी नौकरी जाने का डर सता रहा है। इन बीएड सहायक शिक्षकों में अधिकांश आदिवासी समुदाय से हैं। विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के पास लगातार गुहार लगाते आ रहे ये शिक्षक लगातार मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ दिन पहले बस्तर संभाग के बीएड सहायक शिक्षकों ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मिलकर उन्हें अपनी पीड़ा सुनाई थी। इसके बाद 9 दिसंबर को बड़ा बाजार चिरमिरी में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के प्रवास के दौरान कोरिया और मनेन्द्रगढ़, चिरमरी- भरतपुर जिलों के बीएड डिग्री वाले सहायक शिक्षकों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्हें ज्ञापन सौंपा। शिक्षकों ने अपनी सेवाएं सुरक्षित रखने और उच्च कक्षाओं में समायोजन की मांग रखते हुए अपनी समस्याओं को मुख्यमंत्री के सामने रखा।शिक्षकों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के हालिया फैसलों ने उनकी नौकरी पर संकट खड़ा कर दिया है, जिससे लगभग 1500 से अधिक आदिवासी सहित लभगभ 3000 बीएड उपाधि धारक सहायक शिक्षकों का भविष्य गंभीर सकंट में आ गया है। इस फैसले से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा और परिवारों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।शिक्षकों ने अपनी सेवाओं को बचाने और न्यायपूर्ण समाधान के लिए मुख्यमंत्री जी से हस्तक्षेप करने की मांग की। मुख्यमंत्री ने शिक्षकों की समस्याओं को गंभीरता से सुना और आश्वासन दिया कि सरकार उनकी नौकरी बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दौरान उप मुख्यमंत्री अरुण साव, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल और क्षेत्रीय सांसद एवं विधायक भी उपस्थित रहे। शिक्षकों ने कहा कि उनकी नौकरी समाप्त हो जाने पर न केवल उनका व्यक्तिगत नुकसान होगा, बल्कि यह आदिवासी समाज के बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।मुख्यमंत्री ने शिक्षकों को आश्वस्त किया कि सरकार उनकी मांगों पर सकारात्मक विचार कर रही है और जल्द ही समाधान का प्रयास करेगी। यह कदम आदिवासी समाज में शिक्षा और रोजगार के प्रति विश्वास को बनाए रखने में सहायक होगा।